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राष्ट्रीय एकीकरण (एकता) या समाकलन का अर्थ | राष्ट्रीय एकीकरण में समस्या और बाधा उत्पन्न करने वाले तत्त्व | राष्ट्रीय समाकलन (एकता) समिति द्वारा दिये गये सुझाव

राष्ट्रीय एकीकरण (एकता) या समाकलन का अर्थ | राष्ट्रीय एकीकरण में समस्या और बाधा उत्पन्न करने वाले तत्त्व | राष्ट्रीय समाकलन (एकता) समिति द्वारा दिये गये सुझाव
राष्ट्रीय एकीकरण (एकता) या समाकलन का अर्थ | राष्ट्रीय एकीकरण में समस्या और बाधा उत्पन्न करने वाले तत्त्व | राष्ट्रीय समाकलन (एकता) समिति द्वारा दिये गये सुझाव

राष्ट्रीय एकता से आपका क्या तात्पर्य है ? शिक्षा द्वारा राष्ट्रीय एकता के उद्देश्य को किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है ? अथवा राष्ट्रीय एकता समिति द्वारा दिये गये सुझावों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।

राष्ट्रीय एकीकरण या समाकलन (National Integration )

राष्ट्रीय समाकलन और राष्ट्रीय एकता का तात्पर्य एक ऐसी भाव-स्थिति है जिसमें लोग सभी भेदभाव को त्यागकर सम्पूर्ण रूप में अपने को एक सूत्र में बाँध लेते हैं। ऐसी दशा में राष्ट्रीय समाकलन और राष्ट्रीय एकता राष्ट्रीय भावना के दो अभिन्न पहलू हैं और इसी कारण बहुत से लोग दोनों को एक समान अथवा एक ही मानते हैं, क्योंकि दोनों का आधार राष्ट्रीय भावना या संवेगात्मक एकीकरण (इमोशनल इण्टीग्रेशन) है। फिर भी राष्ट्रीय एकीकरण या समाकलन एवं राष्ट्रीय एकता (नेशनल इण्टीग्रेशन एण्ड नेशनल यूनिटी) में दृष्टिकोण का अन्तर है। प्रथम में सम्पूर्ण जीवन की स्थिति होती है और दूसरे में केवल राजनैतिक एवं सामाजिक स्थिति पर बल दिया जाता है।

राष्ट्रीय एकीकरण में समस्या और बाधा उत्पन्न करने वाले तत्त्व (Obstacles and Problems in National Integration)

स्वतंत्र भारतीय राष्ट्र के समक्ष आज कुछ संकटपूर्ण स्थिति कुछ तत्त्वों के द्वारा उपस्थित हो गई है और ऐसे तत्त्व राष्ट्रीय एकीकरण के लिए बाधक सिद्ध हो रहे हैं। ये बाधक तत्त्व नीचे दिये जा रहे हैं-

1. साम्प्रदायिक भावना- देश में हिन्दू व मुसलमान दो मुख्य सम्प्रदाय हैं। एक तीसरा सम्प्रदाय सिखों का है, आपसी झगड़े व राजनैतिक माँगों के लिए लड़ाई होती है। यह राष्ट्रीय समाकलन के लिए बाधा है।

2. जातीय भेदभावना – इस देश में बहुत पहले से जातीय भेद चला आ रहा है। इससे छुआछूत, बड़े-छोटे, ऊँच-नीच की भावना आ गई है। हरिजन, पिछड़े वर्ग, जनजातियाँ सभी संघर्ष में रत हैं। इसमें राष्ट्रीय समाकलन का भय है।

3. भाषावाद की भावना- देश के विभिन्न स्थानों पर विभिन्न भाषाएँ प्रयोग में आती हैं इससे भाषा बोलने वालों में मेल-ऐक्य नहीं पाया जाता है। यह भी एक बाधा राष्ट्रीय समाकलन के लिए है।

4. प्रादेशिक भावना- देश के विभिन्न प्रदेशों का अपनापन वहाँ के लोगों में भर गया है। इसमें असम, मिजोरम, मेघालय, बिहार, मध्य प्रदेश, पंजाब, केरल, महाराष्ट्र आदि प्रदेशों में केवल अपने प्रदेश के लोग सेवा में लगें, बाहर वाले निकल जायें ऐसी भावना आ गई है। इससे राष्ट्रीय समाकलन खतरे में हो गया है।

5. वैयक्तिकता की भावना- जनतन्त्र एवं स्वतन्त्रता के कारण लोगों में वैयक्तिक लाभ की भावना भर गयी है इससे भी लोग राष्ट्रहित की उपेक्षा करते हैं तथा राष्ट्रीय समाकलन पर आघात करते हैं।

6. भारतीय संस्कृति त्यागने की भावना- भारतीयों में भारतीय संस्कृति त्यागने की भावना आ रही है। गाँव छोड़कर शहर में आना, शहर में नई संस्कृति सभ्यता को स्वीकार करना, विदेशों में जाना व रहना, राष्ट्र नेताओं द्वारा अपने लड़कों को विदेश में शिक्षा दिलाना, यहाँ तक कि अपने धन को भी विदेशी बैंकों में रखना भारतीय राष्ट्रीय समाकलन में बाधा डालते हैं।

7. धर्मविहीनता की भावना- भारत ने अपने को धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया है। इसके परिणामस्वरूप लोगों में धर्मविहीनता की भावना आ गई और राष्ट्रीय समाकलन पर आघात हुआ है।

8. अनैतिकता की भावना- राष्ट्र के लोगों में चोरबाजारी, तस्करी, रिश्वतखोरी, ‘स्कैंडल’ घटनाएँ, भ्रष्टाचार, कामचोरी, अनुशासनहीनता, हत्याकाण्ड, डकैती आदि का फैलना, अनैतिकता की भावना व नैतिक पतन प्रकट करता है। यह भी राष्ट्रीय समाकलन में बाधा है।

राष्ट्रीय समाकलन (एकता) समिति द्वारा दिये गये सुझाव (Suggestions by the National Integration Committee)

इस समिति ने शिक्षा के माध्यम से लोगों में राष्ट्रीय समाकलन की भावना लाने पर बल दिया और शिक्षा के क्षेत्र में हेर-फेर के लिए सुझाव भी दिया। ये सुझाव निम्नवत् हैं-

(1) शिक्षा का पाठ्यक्रम धर्मनिरपेक्ष भारतीय राष्ट्र की आवश्यकताओं के अनुकूल बनाया जाये। धार्मिक स्वतन्त्रता के लिए जोर दिया जाये।

(2) प्राथमिक स्तर पर प्रतिदिन मात्र सामूहिक प्रार्थना करें। राष्ट्रगान, गीत, कविता आदि के द्वारा राष्ट्रनिष्ठा दृढ़ की जाये।

(3) माध्यमिक स्तर या सामाजिक विषयों, भौतिक विज्ञानों के अध्ययन सामाजिक क्रियाओं पर बल दिया जाये जिससे शुरू से ही राष्ट्रीय भावना बढ़े।

(4) उच्च स्तर पर विभिन्न भारतीय भाषाओं, साहित्य, संस्कृति, संगीत कला, कौशल आदि के सीखने, करने पर बल दिया जाये जिससे राष्ट्र के सभी लोगों में राष्ट्रीयता का स्थायी भाव बढ़े।

(5) वयस्क छात्रों व अध्यापकों को विभिन्न प्रदेशों के छात्रों, अध्यापकों व जनसमूहों से सम्पर्क, मेल-जोल आदि के अवसर दिये जायें, भ्रमण कराया जाये तथा साथ-साथ रहने के अवसर दिये जायें।

(6) सभी स्तर के विद्यालयों में राष्ट्रीय पर्व, त्यौहार, उत्सव युवक समारोह, सेवायोजन कैम्प की व्यवस्था हो ताकि जनसम्पर्क एवं राष्ट्रीय भावना का विकास, प्रचार-प्रसार हो।

(7) चलचित्र, रेडियो, टी० वी०, पोस्टर एवं विभिन्न जनसंचार साधनों का प्रयोग विद्यालयों में हो जिससे राष्ट्रीय समाकलन का विकास हो ।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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