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वर्तमान परीक्षा प्रणाली को सुधारने के लिए सुझाव | Suggestions for the Improvement in the Present Examination System in Hindi

वर्तमान परीक्षा प्रणाली को सुधारने के लिए सुझाव | Suggestions for the Improvement in the Present Examination System in Hindi
वर्तमान परीक्षा प्रणाली को सुधारने के लिए सुझाव | Suggestions for the Improvement in the Present Examination System in Hindi

वर्तमान परीक्षा प्रणाली को सुधारने के लिए सुझाव (Suggestions for the Improvement in the Present Examination System)

वर्तमान परीक्षा प्रणाली में यद्यपि अनेक कमियाँ हैं परन्तु उसके बावजूद इसे पूरी तरह समाप्त कर एकाएक कोई नई प्रणाली नहीं लाई जा सकती है। सरकार द्वारा गठित विभिन्न आयोगों एवं समितियों ने समय-समय पर परीक्षा प्रणाली में सुधार के लिए कई सुझाव दिए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख एवं उपयोगी सुझाव निम्नलिखित हैं-

1) सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन (Continuous and Comprehensive Assessment)-उत्तम शिक्षा एवं परीक्षा कार्यक्रम में सुधार के लिए शिक्षा प्रणाली में दो सुधारों पर सर्वाधिक बल दिया जाता है। इनमें प्रथम है- सतत् आंकलन एवं द्वितीय व्यापक मूल्यांकन। सतत् आंकलन हमेशा उसी (शिक्षक) व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए जो अध्यापन करता है। द्वितीय मूल्यांकन का कार्य सत्र के अन्त में परीक्षा प्राप्तांकों के आधार पर न हो कर शैक्षिक सत्र की अवधि में अध्यापन कार्य कर रहे शिक्षक द्वारा समय-समय पर लगातार किया जाए। सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन से शिक्षकों तथा छात्रों को कमियों का ज्ञान होता रहता है। इससे शिक्षक छात्रों की कमियों को दूर करने के लिए आवश्यक निर्देश दे सकता था तथा अपनी शिक्षण रणनीतियों में भी आवश्यक परिवर्तन करता है।

2) सेमेस्टर परीक्षा प्रणाली (Semester Examination System) – वर्तमान वार्षिक परीक्षा प्रणाली के मध्य काफी समयान्तराल रहता है। इस त्रुटि को दूर करने के उद्देश्य से सेमेस्टर प्रणाली को विभिन्न स्तरों पर लागू करने का सुझाव दिया गया है।

सेमेस्टर प्रणाली में पाठ्यक्रम को निश्चित इकाइयों में विभाजित कर छात्रों को गहन अध्ययन कराया जाता है। सेमेस्टर प्रणाली में दो वर्षों में पूर्ण किया जाने वाला पाठ्यक्रम छः-छः माह के चार भागों में विभाजित कर दिया है। प्रत्येक सेमेस्टर की समाप्ति पर छात्रों की शैक्षिक उपलब्धियों एवं अधिगम की जाँच की जाती है। ये जाँच आन्तरिक परीक्षा या बाहृय परीक्षा द्वारा की जाती है। इस प्रकार से चारो सेमेस्टर के योग के आधार पर छात्र को उपाधि प्रदान की जाती है।

3 ) ऑनलाइन परीक्षा (Online Exam)-तकनीकी विकास एवं वस्तुनिष्ठता (Objectivity) के उद्देश्य से ऑन लाइन परीक्षा बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। परीक्षा कार्य को गति प्रदान करने एवं मानवीय त्रुटियों को कम करने के लिए वर्तमान समय में कम्प्यूटर का प्रयोग अत्यन्त आवश्यक है। शैक्षिक विकास में कम्प्यूटर का निम्नलिखित कार्य है-

i) परीक्षण पदों एवं अभ्यास के प्रश्नों के निर्माण में सहायता प्रदान करना। ii

ii) परीक्षा की सामग्री, फलांकन एवं पद-विश्लेषण में लाभकारी।

iii) परीक्षा परिणामों में विश्वसनीयता, शुद्धता, वैधता एवं वस्तुनिष्ठता। iv) कम्प्यूटर की सहायता से अध्ययन एवं अध्यापन इत्यादि ।

4) ग्रेडिंग प्रणाली (Grading System) – भारतीय शिक्षा प्रणाली ने सत्र 2009-10 में ग्रेडिंग प्रणाली की शुरूआत के साथ शिक्षा प्रणाली को पुनःजीवित करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम आगे बढ़ाया। इसके द्वारा परीक्षा के दौरान छात्रों पर दबाव को कम करने में सहायता मिलेगी। पिछले वर्षों के दौरान छात्रों के लिए शिक्षा का अर्थ ज्ञान के स्थान पर मात्र अंकों को प्राप्त करना था, इसी के परिणाम स्वरूप इस तरह की नीतियों को बनाने की व्यवस्था हुई।

सी.बी.एस.ई. ने कक्षा 6 से 10 तक के बच्चों के लिए यह प्रणाली प्रारम्भ की है। इस प्रणाली द्वारा परीक्षा के समय पढ़ाई के बोझ को कम करने में सहायता मिलेगी क्योंकि इसके अन्तर्गत छात्रों को सत्र के दौरान केवल एक नहीं बल्कि कई परीक्षाओं से गुजरना पड़ेगा। ग्रेडिंग प्रणाली का उद्देश्य बालकों का सम्पूर्ण विकास करना है। यदि छात्र किसी एक विषय या क्षेत्र में दक्ष होता है तो उसे उसी क्षेत्र में प्रोत्साहित किया जाता है। यदि बालक शैक्षिक रूप से कमजोर होता है तो उसे कला, खेल-कूद आदि में अच्छे अंक अथवा ग्रेड प्राप्त हो जाते हैं।

प्राचीन अंकन प्रणाली में दोष एवं वैचारिक भिन्नता के कारण समय-समय पर इसकी भी आलोचना होती रही, प्राप्तांक के आधार पर ही छात्रों की मानसिक स्थिति एवं ज्ञान का आंकलन होता था। यदि 59.99% प्राप्त करने वाला द्वितीय श्रेणी में आता है तो वहीं 60% प्राप्त करने वाला प्रथम श्रेणी में आ जाता है जबकि इससे यह स्पष्ट होता है कि दोनों छात्रों की योग्यता में कोई विशेष अन्तर नहीं है। अंकन प्रणाली की इन्हीं कमियों को दूर करने के लिए माध्यमिक शिक्षा आयोग (1952-1953) तथा शिक्षा आयोग (1964-66) ने अंको के स्थान पर ग्रेड प्रणाली का सुझाव दिया।

विषय विशेषज्ञों एवं परीक्षा सुधार विशेषज्ञों ने ग्रेड प्रणाली को आरम्भ करने के लिए सिफारिश की। उनका मानना है कि इसके द्वारा आंकिक प्रक्रिया की त्रुटियों को कम किया जा सकता है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने सन् 1975 और 1976 में कार्यशालाएँ आयोजित कीं और इसके आधार पर 7 बिन्दु ग्रेड प्रणाली अपनाने का प्रावधान किया गया। ये सात बिन्दु ही ग्रेड कहे गए जो कि O, A, B, C, D, E और F है।

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आयोजित कार्यशाला में यह भी विचार आया कि तकनीकी संस्थान एवं कृषि विश्वविद्यालयों में 5 ग्रेड बिन्दु प्रणाली अपना सकते हैं जो उनकी परिस्थितियों के लिए उपयुक्त हो सकती है।

परीक्षक प्राप्तांकों के आधार पर प्रत्यक्ष रूप से ग्रेड प्रदान कर सकते हैं और आवश्यकता पड़ने पर इन प्राप्तांकों को सामान्य सम्भाव्यता वक्र (NPC) के आधार पर 7 भागों में बाँट सकते हैं। विभिन्न विषयों में न्यूनतम ग्रेड औसत, परीक्षा परिषद् अथवा विश्वविद्यालय निर्धारित कर सकता है। सामान्यतया न्यूनतम् औसत ग्रेड सम्पूर्ण पाठ्यचर्या के लिए 2 या D होना चाहिए, न्यूनतम् 2 या D ग्रेड प्राप्तांक छात्रों को ही अगली कक्षा में भेजने का प्रावधान होना चाहिए। यदि कोई छात्र किसी विषय में D से कम तथा अन्य विषय में D से उत्तम है तो उसे अगली कक्षा में इस शर्त पर भेजा जाना चाहिए कि D से कम वाले औसत ग्रेड के वह अगले वर्ष उत्तीर्ण कर लेगा।

5) खुली पुस्तक परीक्षा (Open Book Examination) – इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों के विश्लेषण के आधार पर ये कहा जा सकता है कि विभिन्न आयोगों एवं समितियों के सुझावों को यद्यपि धीरे-धीरे विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा अपनाया जा रहा है, जिससे छात्रों को ठीक प्रकार से अधिगम प्रदान कर उनका सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन किया जा सके। इन सबके बावजूद यदि अपेक्षित परिणाम नहीं आ रहे हैं तो इसका कारण नीतियों का ठीक से क्रियान्वयन न करना तथा शिक्षा के परम्परागत ढाँचे में सुधार न होना है। इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा शिक्षा पर न्यूनतम खर्च करना भी है।

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Anjali Yadav

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