Commerce Notes

लेखांकन की आवश्यकता और वित्तीय लेखांकन की सीमाएँ

लेखांकन की आवश्यकता और वित्तीय लेखांकन की सीमाएँ
लेखांकन की आवश्यकता और वित्तीय लेखांकन की सीमाएँ
लागत लेखांकन को परिभाषित कीजिए। लागत लेखांकन की आवश्यकता और वित्तीय लेखांकन की सीमाएँ का वर्णन कीजिए।

लागत लेखांकन की परिभाषा—किसी वस्तु के निर्माण में या किसी सेवा को प्रदान करने में जो लागत पड़ती है उसका लेखांकन रखना ही लागत लेखांकन है। आर.एन. कार्टर के अनुसार- “वस्तु के निर्माण या किसी उपकार्य में लगे माल अथवा श्रम के खाते में लेखा करने की प्रणाली को लागत लेखांकन कहते हैं।

लागत लेखांकन की आवश्यकता एवं वित्तीय लेखांकन की सीमाएं (Need of Cost Accounting and limitation of financial Accounting) – लेखाकन की विभिन्न अवधारणाओं में वित्तीय लेखांकन का अपना ही महत्व है एवं सभी व्यवसायों में वित्तीय लेखे रखे जाते हैं परन्तु वित्तीय लेखांकन की कुछ सीमाएँ हैं। वित्तीय लेखांकन की सीमाओं के सम्बन्ध में जी.आर. ग्लोवर एवं आर. सी. विलियम्स का कथन काफी महत्वपूर्ण हैं: “वित्तीय खातें की एक विशुद्ध प्रणाली की विद्यमानता एक व्यवसाय की सामान्य स्थिति ही प्रकट करेंगी, परन्तु यह विशिष्ट एवं व्यापक वह सूचना प्रदान नहीं कर पाएगी जो एक कुशल लागत लेखांकन प्रणाली से प्राप्त होती है— ऐसी सूचना जो एक व्यवसाय के आन्तरिक नियन्त्रण एवं प्रबन्ध के लिए आवश्यक होती है।” अतः वित्तीय लेखांकन की प्रमुख कमियाँ या सीमाएँ निम्नलिखित हैं, जिसके कारण लागत लेखाकन की आवश्यकता होती है:-

1. सामग्री पर नियन्त्रण का अभाव (Lack of control on materials)- वित्तीय लेखांकन में सामग्री एवं स्टॉक का विस्तृत विवरण नहीं रखा जाता। वित्तीय लेखों में सामग्री का प्रारम्भिक स्टॉक का मूल्यांकन अवश्य किया जाता है परन्तु यह ज्ञात नहीं किया जा सकता कि विभिन्न विभागों (Departments) या उपकायों (Jobs) को कितनी सामग्री तथा किस मूल्य पर निर्गमित की गई है और न ही सामान्य एवं असामान्य क्षयों में कोई अन्तर किया जाता है। इस प्रकार वित्तीय लेखांकन में सामग्री के क्षय गवन एवं दुरुप्रयोग पर उचित नियन्त्रण नहीं किया जा सकता। लागत लेखांकन द्वारा यह नियन्त्रण हो सकता है।

2. लागत पर नियन्त्रण का अभाव (Lack of control on labour) – वित्तीय लेखांकन से यह जानकारी तो मिल जाती है कि श्रमिक को वर्ष में कितना पारिश्रमिक (remuneration) दिया गया, परन्तु यह ज्ञात नहीं होता कि विभिन्न विभागों या उपकायों पर अलग-अलग कितना पारिश्रमिक दिया गया। इसके अतिरिक्त वित्तीय लेखों में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष मजदूरी तथा कुशल एवं अकुशल श्रमिकों का ब्यौरा भी अलग-अलग नहीं रखा जाता। इन कारणों से यह ज्ञात करना कठिन हो जाता है कि पारिश्रमिक बढ़ाने से या श्रमिकों की संख्या बढ़ाने से उत्पादन की मात्रा उसी अनुपात में बढ़ी है या नहीं। लागत लेखांकन नियन्त्रण रखता है।

3. निविदा मूल्य ज्ञात करना कठिन (Difficulty in the determination of tender price) — निविदा मूल्य वह मूल्य होता है जिसका अनुमान वस्तु एवं सेवा का उत्पादन करने से पूर्व लगाया जाता है और उसी के आधार पर निविदा (Tender) दिए जाते हैं। इन्हें तैयार करने के लिए गत वर्ष के मूल्यों और चालू वर्ष के मूल्यों में होने वाले परिवर्तनों का ज्ञात होना जरूरी है, परन्तु यह वित्तीय लेखों के द्वारा नहीं हो सकता है। लागत लेखांकन से निविदा मूल्य ज्ञात किया जाता है।

4. उत्पादन लागत निर्धारण करने में कठिनाई (Difficulty in determining the cost of production) – वित्तीय लेखों के द्वारा वस्तु की सही लागत की जानकारी नहीं हो सकती क्योंकि व्ययों का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष स्थिर एवं परिवर्तनशील, नियन्त्रणीय एवं अनियन्त्रणीय आदि रूपों में वर्गीकरण नहीं किया जाता है जबकि सही लागत की गणना करने के लिए इस प्रकार का वर्गीकरण आवश्यक है। लागत लेखांकन द्वारा उत्पादन लागत निर्धारित किया जा सकता है।

5. अपूर्ण वस्तु की लागत का ज्ञान नहीं (No knowledge of cost of incomplete product) – किसी वस्तु के उत्पादन करने पर अब तक क्या खर्च हुआ है और पूरा होने पर कितनी लागत आएगी, यह लागत प्रस्तावित लागत (Budgeted Costs) से कितनी कम या अधिक होगी, इसका उत्तर वित्तीय लेखे नहीं दे सकते। केवल लागत लेखों से ही इन प्रश्नों का उत्तर मिल पाता है।

6. अपव्यय के कारणों का ज्ञान नहीं (No knowledge of causes of wastage) – वित्तीय लेखों से बहुत से अपव्ययों की कोई जानकारी नहीं होती जैसे— उत्पादन में कितने श्रम-घण्टे (Labour hours) व्यर्थ हुए। एक महीने में मशीन कितने समय तक प्रयोग में नहीं आई तथा कार्य क्यों नहीं हुआ ? परन्तु लागत लेखों में इनका सही-सही लेखा किया जाता है।

7. मूल्य निर्धारण करना आसान नहीं (Fixation of price is not easy) – वित्तीय लेखांकन से विस्तृत वित्तीय सूचनाएँ प्राप्त नहीं होती, इसलिए मूल्य निर्धारित करना एक कठिन कार्य है। आधुनिक व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य वस्तुएँ एवं सेवाएँ प्रदान करके विद्यमान् आवश्यकताओं की संतुष्टि करना ही नहीं है बल्कि माँग का सृजन करना भी है। विस्तृत विज्ञापन के द्वारा भावी ग्राहकों को उत्पादन से पहले ही वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्यों एवं बनावट के बारे में जानकारी प्रदान करनी होती हैं। वित्तीय लेखांकन के द्वारा प्रदान की गई सूचनाएं इस सम्बन्ध में पूरी तरह से अपर्याप्त रही हैं, परन्तु लागत लेखांकन द्वारा सम्भव है।

8. प्रबन्धकीय निर्णयों के लिए सूचनाओं का अभाव (Lack of knowledge of information for managerial decisions) – आधुनिक समय में व्यवसाय की प्रकृति में महत्वपूर्ण परिवर्तन हो गया है। जिससे व्यवसाय को समय-समय पर निर्णय लेने के लिए विभिन्न आंकड़ों की आवश्यकता होती है। प्रबन्ध के महत्वपूर्ण निर्णय निर्माण या क्रय निर्णय (Make or Buy decision), मूल्य निर्धारण निर्णय (Price fixation decision), सीमित साधनों का कुशल प्रयोग सम्बन्धी निर्णय (Decision regarding proper utilisation of limited resources), सर्वाधिक लाभप्रद वस्तु निर्धारण निर्णय (Decision regarding most profitable product) और लागत नियन्त्रण सम्बन्धी निर्णय (Cost control decision) आदि। परन्तु ऐसे निर्णय लेने में वित्तीय लेखांकन कोई सहायता नहीं करता। लागत लेखांकन प्रबन्धकीय निर्णयों के लिए महत्वपूर्ण है।

9. लाभ की कमी के कारण (Causes of lower profits)– वित्तीय लेखों के द्वारा लाभ कम होने के कारणों की जानकारी सम्भव नहीं है परन्तु लागत लेखों द्वारा यह जानकारी आसानी से प्राप्त हो सकती है।

10. ऐतिहासिक प्रकृति (Historical in nature)– वित्तीय लेखांकन व्यवसायिक लेन-देनों का केवल ऐतिहासिक लेखा ही प्रदान करता है परन्तु आधुनिक समय में निर्णय भावी अनुमानों पर आधारित होते हैं न कि ऐतिहासिक तथ्यों पर। ऐतिहासिक सूचनाएँ निर्णय लेने में प्रबन्ध की कुछ तो सहायता करती हैं परन्तु केवल वे पर्याप्त नहीं होती क्योंकि आधुनिक प्रबन्ध का सम्बन्ध भविष्य से भी है। इसलिए ऐतिहासिक तथ्यों के साथ-साथ भविष्य के अनुमान भी प्रबन्धकों के लिए महत्वपूर्ण हैं, यह पूर्वानुमान लागत लेखांकन द्वारा सम्भव है।

11. खातों का वर्गीकरण ( Classification of accounts )- वित्तीय लेखांकन में खातों को व्यक्तिगत, वास्तविक एवं नाममात्र खातों में वर्गीकृत किया जाता है इस तरह के वर्गीकरण से विभिन्न, उपकायों एवं उत्पादों की अलग-अलग उत्पादन लागत ज्ञान नहीं हो सकता है। लागत लेखांकन तभी सम्भव होता है।

12. प्रमापों की उचित प्रणाली उपलब्ध नहीं ( No system of tandards is available)- वित्तीय लेखांकन में प्रमापों की कोई निश्चित प्रणाली नहीं है बड़ी मात्रा में हो रहे उत्पादन के इस आधुनिक युग में संस्था का प्रत्येक कार्य प्रबन्धको के द्वारा स्वयं नहीं किया जा सकता। लागत लेखांकन में कार्य किए जाने से पहले ही प्रमाणों का निर्धारण या जाता है आर वास्तविक निष्पादन की तुलना प्रभापों से की जाती है ताकि विचलन (Deviations) ज्ञात करके उनका विश्लेषण किया जा सके और सुधारात्मक कार्यवाही की जा सके।

13. विभिन्न ऐजन्सियों को रिपोर्ट देने के लिए अपर्याप्त आंकड़े ( Inadequate data for reporting to various agencies)- वित्तीय लेखांकन में व्यवसाय के विभिन्न क्षेत्रों की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट तैयार करने के लिए कोई प्रावधान नहीं है जबकि इस तरह की रिपोर्ट कई बाहरी संस्थाओं के द्वारा मांगी जाती है, जैसे- चैम्बर ऑफ कॉमर्स, व्यापारिक संघ, बैंक, वित्तीय संस्थाएँ, केन्द्रीय एवं राज्य सरकार एवं श्रम संघ आदि। लागत लेखांकन के द्वारा विश्लेषणात्मक रिपोर्ट आसानी से तैयार की जा सकती है।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment