राजनीति विज्ञान / Political Science

वर्तमान राजनीतिक सिद्धान्त की समस्याएँ | Problems of Current Political Theory in Hindi

वर्तमान राजनीतिक सिद्धान्त की समस्याएँ | Problems of Current Political Theory in Hindi
वर्तमान राजनीतिक सिद्धान्त की समस्याएँ | Problems of Current Political Theory in Hindi
वर्तमान राजनीतिक सिद्धान्त की समस्याओं का वर्णन करो।”

आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्त को पूर्ववर्ती सिद्धान्तों से हटकर नवीन विधियों एवं दृष्टिकोणों के अध्ययन के कारण अनेक समस्याओं से जूझना पड़ रहा है और उनका सामना करना पड़ रहा है जो निम्नलिखित हैं-

1. वैज्ञानिक सिद्धान्तों का अभाव- राजनीति विज्ञान में वैज्ञानिक सिद्धान्तों का अभाव है। विद्वानों का मत है कि यूरोपीय देशों में राजनीतिक सिद्धान्त मृतप्राय हो गया है और साम्यवादी देशों में उसका अस्तित्व नहीं है। देश देशों में भी यह अन्तिम सांसे गिन रहा है। विद्वान मेयो का कहना है कि “विभिन्न राजनीतिक सिद्धान्त अपूर्ण हैं, क्योंकि उनमें कोई समस्त व्यवस्था से सम्बन्धित नहीं है।” इस वैधानिकता के अभाव में राजनीति विज्ञान को अनेककानेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

2. वैज्ञानिक विकास का अभाव- राजनीति विज्ञान में विभिन्न वैज्ञानिक उपकरणों, विधियों एवं वैज्ञानिक उपागमों के अपनाने पर भी वैज्ञानिकता का समावेश नहीं हो पाया है। राजनीतिक सिद्धान्तों में आज तक भी वैज्ञानिक स्तर का विकास सम्भव नहीं हो पाया है।

3. मूल्यों की समस्या – आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्त में मूल्यों की समस्या विकराल है। राजनीतिकविद मूल्यों की उपस्थिति को लेकर कई वर्गों में बँट गये हैं। एक वर्ग राजनीति विज्ञान को मूल्य निरपेक्ष बनाना चाहता है और दूसरा वर्ग मूल्यों को विशेष महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करना चाहता है। कुछ विद्वान जो इन दोनों धाराओं से अलग हैं मध्य मार्ग अपनाना चाहते हैं। प्रथम वर्ग अनुभववादी दूसरा वर्ग परानुभववादी तथा तीसरा वर्ग समन्वयवादी कहलाता है।

4. मानवीय सम्बन्धों की समस्या- आधुनिक राजनीतिक सिद्धान्त की एक बड़ी समस्या अनेक ऐसे विषयों का होना भी है जो मानवीय सम्बन्धों से जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भूख व बेरोजगारी अशिक्षा, निर्धनता, संकीर्णता एवं रूढ़िवादिता आदि कुछ ऐसे ही विषय हैं जो मानवीय सम्बन्धों को प्रगाढ़ करने में बाधक हैं।

5. एक सामान्य राजनीतिक सिद्धान्त संभव नहीं- राजनीति विज्ञानमें एक सामान्य राजनीति सिद्धान्त का निर्माण सम्भव नहीं है और न उसका विशेष महत्व है। कुछ विचारकों का मत है कि सामान्य सिद्धान्त का विचार सैद्धान्तिक क्षेत्र में तो कारागार हो सकता है, व्यवहारिक पक्ष में नहीं, क्योंकि राजनीतिक सिद्धान्त की विषय वस्तु मनुष्य है, जिसका स्वभाव एवं प्रकृति हमेशा परिवर्तनीय है तथा स्थान, समय परिस्थितियों एवं आयु के अनुसार बदलती रहती है इसलिए एक सामान्य राजनीतिक सिद्धान्त के निर्माण की सम्भावना भी बहुत कम है।

6. अन्य विज्ञानों से अन्तर सम्बन्ध- राजनीतिक सिद्धान्त के माध्यम से राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध अन्य विज्ञानों से स्थापित करना भी आवश्यक है जिससे सम्बन्धित विज्ञानों में स्व अनुशासन स्थापित हो सके। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राजनीति विज्ञान को सिद्धान्तों की सीमाओं में बाँधना आवश्यक भी नहीं है।

7. पद्धति सम्बन्धित समस्या – राजनीति सिद्धान्त के निर्माण में जहाँ वैज्ञानिक पद्धति का अभाव एक समस्या है वहीं उसके विकास में प्रयोग भी समस्या पैदा करता है। सिद्धान्त को आनुभविक बनाने पर उसकी सामान्यता और अधिक सामान्य बनाने के कारण उन सिद्धान्तों की आनुभविकता में कमी आ जाती है।

8. विभिन्न अनुशासनों में समन्वय की समस्या – राजनीति विज्ञान में विभिन्न मानवीय व्यवहारों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए अन्य विषयों तथा अनुशासनों का ज्ञान तथा उसमें सामंजस्य एक कठिन समस्या है।

9. विषय सामग्री- राजनीति विज्ञान की विषय सामग्री सदैव परिवर्तित होती रहती है जिसके वर्तमान यथार्थवादी सिद्धान्त भविष्य में अयथार्थवादी हो जाता है परिवर्तनीय विषय सामग्री भी एक गम्भीर समस्या बन जाती है।

10. राजनीति विद्वानों द्वारा राजनेताओं में सम्पर्कय अभाव- इस विषय की एक गम्भीर समस्या राजनीतिक सिद्धान्त निर्माण करने वाले शोधकर्ताओं से राजनीतिक नेताओं का कोई भी सम्पर्क नहीं रहता है। इसके परिणामस्वरूप राजनीतिक सिद्धान्त में अयथर्थाता तथा औपचारिकताओं का समावेश तो हो जाता है जिससे सिद्धान्त की वैज्ञानिकता कम हो जाती है।

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Anjali Yadav

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