वाद-विवाद विधि पर विस्तार से चर्चा कीजिये।
वाद-विवाद विधि :- आधुनिक शिक्षा- विचारधाराओं के अनुसार सीखने को सरल, सुगम एवं बोधगम्य बनाने के लिए यह आवश्यक है कि छात्र कक्षा में सक्रिय रूप से भाग लें। उसे कक्षा में एक निष्क्रिय श्रोता मात्र नही रहना है। सामाजिक अभिव्यक्ति-पद्धति एवं अन्य आधुनिक पद्धतियों ने उपरोक्त सिद्धांत पर्याप्त मात्रा में अपनाया है। कक्षा-शिक्षण के समय यदि छात्र विषय से सम्बन्धित परस्पर बातचीत करते हैं तो वर्तमान शिक्षाविद् उसे भी शैक्षिक क्रिया मानते है। फलतः कक्षा में विषय से सम्बन्धित बातचीत या वाद-विवाद भी अब शिक्षा का एक आवश्यक एवं जनतांत्रिक तत्व माना जाने लगा है। कक्षा में विषय-वस्तु से सम्बन्धित सुनियोजित वाद-विवाद करना समय को नष्ट करना नहीं है क्योकि वाद-विवाद करने के लिये विषय का ठोस ज्ञान होना आवश्यक है। वाद-विवाद के लिये तैयारी करनी पड़ती है, विषय-वस्तु का चयन एवं संगठन करना पड़ता है, विचार-विमर्श करना पड़ता है, कुछ बातें सीखनी पड़ती हैं, अपने विचारों को स्पष्ट करना पड़ता हैं और अन्त में एक सामूहिक निष्कर्ष पर आना पड़ता है: इस प्रकार के वाद-विवाद के निष्कर्ष शैक्षिक दृष्टिकोण से बड़े उपयोगी होते हैं।
साधारण बातचीत में पाये जाने वाले विचारों से कहीं अधिक तार्किक एवं व्यापक रूप में पाये जाने वाले विचारों के आदान-प्रदान को वाद-विवाद कहते है। साधारण रूप में वाद-विवाद में महत्वपूर्ण विचार एवं समस्याएं सम्मिलित की जाती है। वाद विवाद आवश्यक तथा निरर्थक तथ्यों को संग्रह करना नहीं है। वाद-विवाद तार्किक, शिष्ट एवं ज्ञानयुक्त विचार-विमर्श है। यह प्रश्नों के उत्तर देना मात्र नहीं है। वैज्ञानिक वाद-विवाद वह वाद-विवाद है जिसमें सभी छात्र समान रूप से भाग ले, पर यह आवश्यक नहीं कि सभी बोलें। “इसी तरह वाद-विवाद व्यक्ति का अहम् भाव प्रदर्शित करने हेतु बातचीत करना भी नहीं है और न यह अपने दृष्टिकोण को दूसरों पर लादना ही है। ” वास्तव में यह भाषण देना भी नहीं है और न यह सामाजिक अभिव्यक्ति ही है। यह तो इन सबसे पृथक हैं।
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वाद-विवाद का संचालन :-
वाद-विवाद का प्रारम्भ छात्र तथा अध्यापक दोनों में से कोई भी कर सकता है। वाद-विवाद का प्रारम्भ छात्र या अध्यापक कोई कहानी कहकर, कोई समस्या खड़ी करके, कोई चित्र दिखाकरण, कोई वस्तु-दिखाकर या घटना का वर्णन करके कर सकते हैं। किस प्रकार वाद-विवाद प्रारम्भ किया जाएं, यह वाद-विवाद के उद्देश्यों पर निर्भर करता है। वाद-विवाद प्रारम्भ हो जाने पर उसे आगे अपने उद्देश्यों तक पहुँचाने की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए योग्य संचालन जरूरी है। संचालन इस प्रकार किया जाएं कि वाद-विवाद में भाग लेने वाले सभी छात्र अपने विचारों को सरलता, स्वतन्त्रता तथा इच्छानुसार प्रयुक्त कर सकें। संचालन में वाद विवाद के द्वारा पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों की तरफ सदैव ध्यान रखना चाहिए। वाद-विवाद को उद्देश्यों की तरफ ले जाने के लिए के बीच-बीच में प्रश्नों का सहारा लिया जा सकता है और अन्त में सम्पूर्ण वाद-विवाद का सारांश भी निकाला जा सकता है। इस प्रकार वाद-विवाद के सचालन में निम्नलिखित चार सोपान सम्मिलित होते हैं:-
- प्रारम्भ
- विश्लेषण
- व्याख्या
- सारांश
वाद-विवादों के संचालन की व्यवस्था का जहां तक प्रश्न है, वाद-विवाद हेतु कक्षा को या तो विभिन्न टुकड़ों में विभाजित किया जा सकता है या सम्पूर्ण कक्षा एक साथ ही वाद-विवाद कर सकती है। यदि कक्षा टुकड़ों में विभाजित की जाती हैं तो प्रत्येक टुकड़े में चार-पाँच से अधिक छात्र नहीं रखने चाहिए। प्रत्येक टुकड़ा दी हुई समस्या के सम्बन्ध में परस्पर वाद-विवाद कर एक निष्कर्ष पर पहुंचेंगे और अन्त में अपनी रिपोर्ट कक्षा के सम्मुख प्रस्तुत करेंगे। इसी प्रकार सभी टुकड़े अपनी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे, फिर सम्पूर्ण कक्षा में इन समस्त रिपोर्टों पर वाद-विवाद किया जायेगा।
वाद-विवाद का मूल्यांकन :- वाद-विवाद का मुख्य उद्देश्य छात्रों में वाछनीय परिवर्तन लाना है। यदि वाद-विवाद किसी भी प्रकार के परिवर्तन नहीं लाता है तो निरर्थक माना जायेगा और यदि परिवर्तन लाता है तो प्रश्न उठता है कि छात्रों में कितना परिवर्तन हुआ? उस वांछित परिवर्तन का मूल्यांकन करना आवश्यक हो जाता है। वांछित परिवर्तनों का मूल्यांकन छात्र स्वयं तथा अध्यापक कोई भी कर सकता है। मूल्यांकन हेतु हम विभिन्न प्रकार की प्रश्नावलियाँ का प्रयोग कर सकते हैं और ज्ञात कर सकते हैं कि विभिन्न क्षेत्रों में क्या परिवर्तन हुए? उदाहरणस्वरूप विषय-वस्तु के ज्ञान में कितनी वृद्धि हुई, कितना बोद्धिक विकास हुआ, कितनी बोद्धिक क्षमताएँ बढ़ी, रूचियों में क्या परिवर्तन हुए, अभियोग्यता, तथा मूल्यों में क्या परिवर्तन हुए आदि-आदि।
- वाद-विवाद निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करने में कहाँ तक सफल रहा ?
- वाद-विवाद में कहाँ-कहाँ कठिनाइयाँ एवं कमियाँ आयी तथा इनके क्या कारण थे ?
- क्या प्रत्येक छात्र ने भाग लिया?
- क्या कुछ एक छात्र ही वाद-विवाद पर छाए रहे?
अन्तिम दो प्रश्नों के उत्तर के लिए हम एक वाद-विवाद पार्श्व रेखाचित्र (Discussion Flow Chart) बनाते हैं।
वाद-विवाद विधि के गुण
वाद-विवाद विधि में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं:-
- व्यक्तिगत विभिन्नताओं पर निर्भर है,
- स्वतन्त्र अध्ययन पर जोर देती है,
- छात्रो में तर्क-शक्ति का विकास करती है।
- क्रिया के सिद्धान्त पर आधारित है,
- स्वाध्याय का विकास करती है।
- छात्रों को सोद्देश्यपूर्ण रूप से अध्ययन करना सिखलाती है,
- छात्रों को विषय-वस्तु का चयन एवं संगठन करना सीखाती है,
- छात्रों में सहयोगपूर्ण प्रतियोगिता का विकास करती है।
वाद-विवाद विधि के दोष
- निरर्थक वाद-विवाद में समय नष्ट किया जा सकता है,
- सम्पूर्ण विषय-वस्तु का अध्यापन सम्भव नहीं है,
- सभी अध्यापक कुशलतापूर्वक वाद-विवाद का संचालन नहीं कर सकते,
- पद्धति अधिक समय चाहती है,
- वाद-विवाद में कुछ ही छात्र प्रमुख रूप से भाग लेकर अन्य छात्रों को अवसर प्राप्त नहीं करने दे सकते हैं,
- लज्जालु छात्र इससे विशेष लाभ नहीं उठा सकते हैं।
कुछ सुझाव
वाद-विवाद-पद्धति को अपनाते समय अध्यापक को नीचे लिखे सुझावों को ध्यान में रखना चाहिए:-
- समस्या का भली प्रकार निर्माण किया जाये,
- वाद-विवाद प्रारम्भ होने से पूर्व सभी आवश्यक तैयारियाँ कर ली जाएं,
- वाद-विवाद का संचालन नियमानुसार जनतान्त्रिक विधि से किया जाएं,
- निरर्थक एवं असम्बन्धित वाद-विवाद को चतुराई से रोका जाएं,
- सभी छात्रों को समान रूप से भाग लेने के अवसर प्रदान किए जाएं,
- मूल्यांकन बिना किसी पक्षपात के किया जाएं।
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