वैज्ञानिक विधि को ‘प्रयोगशाला विधि’ (Laboratory Method) भी कहते हैं। इस विधि में छात्र सक्रिय रहते हैं। छात्र शिक्षक द्वारा किये गये प्रयोगों को बहुत ही ध्यानपूर्वक देखते हैं, और स्वयं भी अपने हाथों से प्रयोग करते हैं। वे क्रिया के हर स्तर का वर्णन करते हैं तथा अपने प्रयोगों के परिणाम निकालते हैं। वैज्ञानिक विधि में छात्र अपने हाथों और आँखों दोनों का प्रयोग करते हैं।
‘प्रयोगशाला’ शब्द का अर्थ तीन बातों से है-
प्रेक्षण द्वारा सीखना ( Learning by observation),
क्रिया द्वारा सीखना ( Learning by doing),
खोज द्वारा सीखना (Learning by Investigation)
वृहद् रूप में प्रयोगशाला विधि का अर्थ छात्रों को वैज्ञानिक क्रियाओं द्वारा ज्ञान प्राप्त करना है, जैसा कि डाल्टन योजना में होता है।
इस विधि का उपयोग प्राकृतिक भूगोल (Physical Geography) और मनचित्र (Mapwork) बनाने में सफलतापूर्वक किया जा सकता है। भूगोल के निम्नलिखित विषय प्रयोगशाला विधि से पढ़ाये जा सकते हैं-
1. वर्षा की मात्रा का रेन गेज नामक यन्त्र से पता लगाना।
2. पृथ्वी की दैनिक व वार्षिक गतियों को एक गेंद को लैम्प के चारों ओर घुमाकर समझाना।
3. भीगे कपड़ों से वाष्पीकरण एवं बर्फ के टुकड़े रक्खे गिलास से बादलों का बनना समझा जा सकता है।
4. वायु की दिशा व वायु भार विभिन्न यन्त्रों का प्रयोग करके पता लगाना।
5. दिन-रात का होना ग्लोब व एक लैम्प की मदद से समझाया जा सकता है।
6. चुम्बक सुई का प्रयोग उत्तर-दक्षिण दिशा दिखाने के लिये किया जा सकता है।
मॉडल बनाना तथा मानचित्र बनाना भी प्रयोगशाला विधि’ के अन्तर्गत आते हैं। मानचित्र, वस्तियाँ, नगरों का विकास एवं विभिन्न उद्योग-धन्धे आयात-निर्यात, जानवर एवं कारखानों आदि के मॉडल तथा मानचित्र आदि बनाये जा सकते हैं भौगोलिक यात्राओं के लेख लिखवाये जायें।
प्रयोगशाला विधि की सफलता के लिये यह आवश्यक है कि प्रयोग करने से पूर्व यन्त्रों व औजारों की जाँच कर ली जाय ताकि यन्त्र समय पर ठीक प्रकार से कार्य कर सकें।
गुण
1. इस विधि में विषयवस्तु अधिक रुचिकर व स्थायी हो जाती है।
2. छात्र यन्त्रों का उचित प्रयोग करना सीख जाते हैं।
3. इस विधि में छात्र स्वयं क्रिया करके सीखता है। इस प्रकार प्राप्त किया हुआ ज्ञान स्थायी होता है।
4. बालक की अन्वेषणात्मक शक्ति का विकास होता है।
दोष
1. प्रयोगशाला विधि से भूगोल का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इस विधि से भूगोल का कुछ ही ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
2. यह विधि बहुत खर्चीली है। प्रयोगशाला, यन्त्र व औजारों के लिये काफी धन खर्च करना पड़ता है।
वास्तव में देखा जाय तो भूगोल की शिक्षा प्रयोगशाला विधि के माध्यम से उचित प्रकार से दी जा सकती है। इससे छात्रों का ज्ञान स्थानी होता है, क्योंकि वे अपने अनुभव तथा क्रिया द्वारा सीखते हैं।
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