व्यवहारवाद व सकारात्मक (Positivism) विचारधारा के उदय के क्या कारण थे? वर्णन करे।
व्यवहारवाद के उदय और विकास के कारण (Causes of rise and evolution of Behavioralism )
राजनीति विज्ञान के इतिहास में व्यवहारवादी मान्यताओं के बिखरे सूत्र प्लेटो, अरस्तू, मेकियावेली, जॉन लॉक, मॉन्टेस्क्यू इत्यादि के चिन्तन में देखने को मिलते हैं, परन्तु एक सिद्धान्त के रूप में व्यवहारवाद वर्तमान शताब्दी की उपज है। यह अध्ययन पद्धति 20वीं शताब्दी की एक महत्वपूर्ण देन है, जिसे विकसित करने का श्रेय अमरीकी राजनीति विद्वानों (शिकागो आन्दोलन) को है। व्यवहारवाद के उदय और विकास के प्रमुख कारण निम्नलिखित है—
1. परम्परागत राजनीति विज्ञान की अध्ययन पद्धतियों के परिणामों से निराशा- व्यवहारवादियों का विचार था कि परम्परागत अध्ययन पद्धतियों से राजनीतिक जीवन की वास्तविकता का चित्र हमारे सामने नहीं हो सकता है। असन्तोष के इन्हीं कारणों के परिणाम स्वरूप व्यवहारवादी आग्रह के अन्तर्गत अन्तः सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय सन्दर्भ में राजनीतिक प्रक्रिया एवं व्यवहार के अध्ययन को उपयोगी माना गया।
2. द्वितीय महायुद्ध का प्रभाव – द्वितीय विश्वयुद्ध के समय राजनीति विज्ञान के विद्वानों के मन में यह बात बैठ गई कि राजनीतिक जीवन की जटिलताओं को पूरी तरह समझने के लिए संस्थाओं और उनकी संरचनाओं के अध्ययन की जगह उन संस्थाओं में कार्य करने वाले व्यक्तियों के व्यवहार का अध्ययन करना होगा।
3. अन्य सामाजिक विज्ञानों से प्रेरणा एवं नवीन अध्ययन पद्धतियों का प्रयोग- अन्य सामाजिक विज्ञानों में अध्ययन के नवीन तरीकों और उपकरणों के प्रयोग को प्रोत्साहन मिला। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद के दशकों में राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में नवीन अध्ययन पद्धतियों के प्रयोग पर बल दिया जाने लगा। परीक्षण, उपकरणों, सर्वेक्षण पद्धतियों, सांख्यिकीय गणितीय प्रारूपों, निदर्शन सर्वेक्षण जैसी प्रविधियों के बढ़ते हुए प्रयोग ने राजनीति व्यवहार के अध्ययन को वस्तुनिष्ठ बनाकर व्यवहारवाद का पोषण सहज किया।
व्यवहारवाद की प्रमुख विशेषताएँ (मूल-मान्यताएँ और स्वरूप )- व्यवहारवादी पद्धति के प्रबल समर्थक डेविड ईस्टन ने अपने लेख ‘The Current Meaning of Behaviouralism’ में इस पद्धति की प्रमुख विशेषताएँ बतलाई हैं। वे इस प्रकार हैं।
1. नियमितताएँ (Regularities )- व्यवहारवादियों का विचार है कि मानव व्यवहार में सामान्य तत्वों की खोजकर उनके आधार पर किये गये सामान्यीकरण के आधार पर मनुष्य के व्यवहार का नियमऩ किया जाना चाहिए।
2. सत्यापन (Verification )- मानवीय व्यवहार के सम्बन्ध में एकत्रित सामग्री को दोबारा जाँचने और उसकी पुष्टि करने की क्रिया को सत्यापन कहते हैं। व्यवहारवादी अध्ययन पद्धति की एक विशेषता यह है कि उसके अन्तर्गत एकत्रित की गई सामग्री का सत्यापन किया जाता है।
3. तकनीकी प्रयोग (Use of Techniques ) – विश्वसनीय जानकारी प्राप्त करने के लिए कुछ सर्वमान्य तकनीकों का प्रयोग किया जाना चाहिए। जैसे- प्रश्नावली पर्यवेक्षण, सहभागी पर्यवेक्षण आदि।
4. परिमाणीकरण (Quantification )- मनुष्य के सामान्य व्यवहार की खोज में पुनरावृत्तियों का सहारा लिया जाता है और उनसे निष्कर्ष निकाले जाते हैं। इस प्रविधि को परिमाणीकरण कहते हैं। निष्कर्षों को अधिक शुद्ध बनाने के लिए परिमाणीकरण में सांख्यिकी का भी प्रयोग किया जाता है
5. मूल्य निर्धारण व आदर्श निर्माण (Value Determination and Model Building ) – सामान्यतया व्यवहारवादी मूल्यों की दृष्टि से तटस्थ रहना चाहते हैं, फिर भी नैतिक मूल्यांकन के लिए कुछ मूल्यों व आदर्शों का प्रतिपादन और प्रयोग आवश्यक हो जाता है। इस सम्बन्ध में अपनाए गए मूल्यों व आदर्शों को अध्ययनकर्ता के मूल्यों व आदर्शों से अप्रभावित रहना चाहिए।
6. व्यवस्था बद्धीकरण (Systeminatixation )- अनुसन्धान आवश्यक रूप से क्रमबद्ध होना चाहिए अर्थात् अध्ययन सामग्री को व्यवस्थाबद्ध किया जाना चाहिए। फिर उसी के आधार पर सामान्य सिद्धान्तों का निर्धारण किया जाता है।
7. अध्ययन की वैज्ञानिक प्रकृति (विशुद्ध-विज्ञान) (Pure Science ) व्यवहारवादी मानव-व्यवहार का वैज्ञानिक अद्ययन करने के लिए कोई भी सिद्धान्त पहले से बनाकर नहीं चलते। वे जीवन की वास्तविकताओं और मानव के यथार्थ व्यवहार से सामग्री संग्रहीत कर सिद्धान्त निरूपण करते हैं, जिससे वे अधिकाधिक वैज्ञानिक सिद्ध हो सकें।
8. समग्रता (Intergration ) – व्यवहारवादी विद्वानों की यह मान्यता है कि मानव व्यवहार का अध्ययन पृथक-पृथक भागों में नहीं किया जा सकता है। सम्पूर्ण मानव व्यवहार में एक सारभूत एकता पायी जाती है। अतः मानव जीवन के समीप पहलुओं का ध्यान रखते हुए मौलिक समानता को लक्ष्य बनाकर ही अध्ययन किया जाना चाहिए।
इस सूची में व्यवहारवादी पंथ के सभी प्रमुख आधार आ गये हैं, जिसे लगभग सभी व्यवहार वादी कम-अधिक रूप में स्वीकार करते हैं।
व्यवहारवाद की उपयोगिता या व्यवहारवाद का राजनीति विज्ञान पर प्रभाव या योगदान – व्यवहारवाद की उपयोगिता को निम्नलिखित रूपों में प्रस्तुत कर सकते हैं।
1, राजनीति विज्ञान की समस्त विषय-वस्तु को नवीन रूप में प्रस्तुत – व्यवहारवाद ने राजनीति विज्ञान को नए मूल्य, नई भाषा, नयी पद्धतियाँ, उच्चतर परिस्थिति, नवीन दिशाएँ और सबसे बढ़कर ‘अनुभवात्मक वैज्ञानिकता’ प्रदान की है।
2. अध्ययन के दृष्टिकोण का व्यापकीकरण- व्यवहारवाद ने राज्य वैज्ञानिकों के दृष्टिकोण को व्यापक बनाया है। उनको अन्य समाज विज्ञानों के सन्दर्भ में अध्ययन करने के लिये प्रेरित किया है।
3. अध्ययन में वास्तविकता के तत्व का समावेश-व्यवहारवाद में राजनीति विज्ञान के अध्ययन में इस बात पर बल दिया है कि उसका सम्बन्ध ‘क्या होना चाहिए’ (आदर्श) से न होकर क्या है (यथार्थ) से भी होना चाहिए। इस तरह व्यवहारवाद ने राजनीति विज्ञान के अध्ययन को यथार्थ बनाने का महत्वपूर्ण कार्य किया है।
इस प्रकार राजनीति विज्ञान को अधिक वैज्ञानिक बनाने में सहायता की।
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