शिक्षा के विभिन्न उद्देश्यों की विस्तृत विवेचना कीजिए।
शिक्षा के विभिन्न उद्देश्य (Various Aims of Education)
विभिन्न विद्वानों ने शिक्षा के विभिन्न उद्देश्य बताये हैं, जिनकी चर्चा यहाँ की जा रही है-
1. जीविकोपार्जन का उद्देश्य (Aims of Living ) – विद्वानों का विचार है कि जीविकोपार्जन का प्रश्न ही मानव जीवन का सबसे बड़ा प्रश्न है। इसलिए किसी व्यवसाय की शिक्षा देना, कोई हस्त-कौशल सीखना ही शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य होना चाहिए। आधुनिक शिक्षाशास्त्री जॉन डीवी ने लिखा है, “यदि व्यक्ति अपनी जीविका स्वयं नहीं कमा सकता तो वह दूसरों के काम पर जीवित रहने वाला अर्थात् परजीवी (Parasite) है। वह जीवन के बहुमूल्य अनुभव खो रहा है।” महात्मा गांधी ने भी लिखा है- “सच्ची शिक्षा बालक एवं बालिकाओं के विरुद्ध एक प्रकार की बीमा होती है।” स्पेन्सर के अनुसार- “जीविकोपार्जन के लिए तैयार करना हमारी शिक्षा का आवश्यक अंग है।”
2. बौद्धिक विकास का उद्देश्य (Aims of Mental Development)– इस उद्देश्य के निम्न दो पहलू हैं-
(क) शिक्षा के लिए शिक्षा – “कामेनियस” आदि कुछ प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्रियों का मत है कि शिक्षा का उद्देश्य शिक्षा ही होना चाहिए अर्थात् विद्या के लिए विद्या (Knowledge for the sake of knowledge)। जिस शिक्षा द्वारा मनुष्य ज्ञान संचय न कर सके वह निरर्थक है। इन लोगों के विचार से ज्ञान प्राप्त करना और प्राप्त किये हुए ज्ञान को दूसरों तक पहुँचाना यही शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है, परन्तु कोरा ज्ञान प्राप्त करना शिक्षा का उद्देश्य नहीं हो सकता उससे जीवन में कोई लाभ नहीं है।
(ख) मानसिक विकास के लिए शिक्षा- बुद्धि के महत्त्व से प्रभावित होकर कुछ शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा में कोरे ज्ञानार्जन के स्थान पर मानसिक विकास का उद्देश्य अधिक उपयोगी माना है। शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य की विचार-शक्ति को पुष्ट बनाना तथा उसकी बुद्धि की तीव्रता व क्रियात्मकता प्रदान करना है। शिक्षा का यह उद्देश्य कोरे ज्ञानार्जन की अपेक्षा अधिक मान्य है क्योंकि मानसिक विकास होने पर मनुष्य अपनी शिक्षा तथा ज्ञान का समुचित उपयोग कर सकता है।
3. शारीरिक विकास का उद्देश्य (Aim of Physical Development)– स्वास्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क वास करता है। अस्वस्थ शरीर मानसिक व्याधियों का घर है। शक्तिशाली शिक्षा की सार्थकता इसी में है कि वह शिक्षार्थियों का शारीरिक विकास करे। दार्शनिक प्लेटो ने शारीरिक शिक्षा को अत्यधिक महत्त्व दिया है और रूसो भी शारीरिक विकास के पक्ष में था।
4. सांस्कृतिक उद्देश्य (Aim of Cultural Development)– कुछ शिक्षार्थियों का विचार है कि मनुष्य को सुसंस्कृत बनाना ही शिक्षा का एकमात्र उद्देश्य होना चाहिए। अच्छे संस्कारों के प्रभाव से व्यक्ति का स्वभाव, रहन-सहन और व्यवहार भी एक विशेष रूप ग्रहण कर लेता है। बालक पर जितने अच्छे संस्कार पड़ते हैं उसका जीवन भी उतना ही अधिक तेजस्वी और दिव्य बनता है। प्राचीन व्यवस्था एवं सांस्कृतिक परम्परा को सुरक्षित रखना और उसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरित करते जाना ही शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य होना चाहिए। बालक को संस्कृति के विभिन्न उपादानों से सम्बन्धित शिक्षा विद्यालय में अनिवार्य रूप से दी जानी चाहिए तभी राष्ट्र की सांस्कृतिक परम्परा और जातिगत विशिष्टताओं की सुरक्षा हो सकती है। जे० एस० मिल का कथन है- “शिक्षा वह संस्कृति है जो प्रत्येक पीढ़ी जान-बूझकर अपने उत्तराधिकारियों को देती है।”
5. चरित्र-निर्माण का उद्देश्य (Aim of Character Developing)— अनेक शिक्षा शास्त्रियों का कथन है कि शिक्षा का उद्देश्य बालक में सच्चरित्रता का विकास करना होना चाहिए। चरित्र के कारण ही मनुष्य पशु से ऊँचा समझा जाता है। प्राचीन तथा अर्वाचीन, सभी कालों में चरित्र की यह महत्ता अक्षुण रही है। इसीलिए शिक्षा के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए एक स्थान पर डॉ० राधाकृष्णन ने लिखा है- “शिक्षा का उद्देश्य न तो राष्ट्रीय आत्माभिव्यक्ति है और न सांसारिक एकता बल्कि उसका उद्देश्य व्यक्ति को यह अनुभव कराना है कि उसमें स्वयं से बढ़कर भी कुछ है जिसको आत्मा कहा जा सकता है।”
शिक्षा के क्षेत्र में चरित्र की महत्ता की प्रशंसा करने वालों की संख्या बहुत बड़ी है। वूल्जे के कथनानुसार- “संसार में न तो धन का प्रभुत्व है और न बुद्धि का प्रभुत्व होता है चरित्र और बुद्धि के साथ उच्च पवित्रता का।” बारतोल ने (लगभग 1500 ई०) में कहा था- “चरित्र ही वह वीरा है जो सब पत्थरों से अधिक मूल्यवान है।” वाल्टेयर के अनुसार- “सब धर्म परस्पर भिन्न हैं, क्योंकि उनका निर्माता मनुष्य है किन्तु चरित्र की महत्ता सर्वत्र एक समान है; क्योंकि चरित्र ईश्वर बनाता है।” इसलिए प्रसिद्ध विद्वान रेमण्ट का कथन है- “शिक्षक का प्रमुख कार्य शारीरिक सम्पन्नता, ज्ञान की पूर्णता या विचारों की शुद्धता ही नहीं बल्कि चरित्र की शक्ति और पवित्रता प्रदान करना है।”
6. जीवन को पूर्णता प्रदान करने का उद्देश्य (Complete Living Aim) – प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री हरबर्ट स्पेंसर के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य जीवन को पूर्णता प्रदान करना है। एक विद्वान के शब्दों में उस उद्देश्य का यह तात्पर्य है कि, “मनुष्य की शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो उसके जीवन के सभी अंगों का विकास कर सके अर्थात् उसके जीवन को पूर्णता की ओर ले जाय।”
7. समविकास का उद्देश्य (The Harmonious Development Aim)- कुछ शिक्षाशास्त्रियों का मत है कि शिक्षा का सर्वोत्तम उद्देश्य व्यक्ति की व्यक्तिगत शक्तियों का समविकास है। इस सम्बन्ध में पेस्टालॉजी ने लिखा है- “शिक्षा मनुष्य की अन्तर्निहित शक्तियों का स्वाभाविक, सर्वांगीण और प्रगतिशील विकास है। पेण्टर (Painter) के मत में, “शिक्षा का उद्देश्य पूर्ण मानव विकास है।”
इस उद्देश्य के समर्थकों के अनुसार शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिससे समस्त प्रवृत्तियाँ समरूप में विकसित हो जाएँ अर्थात् केवल शारीरिक शक्ति या व्यावसायिक दक्षता अथवा सौन्दर्यानुभूति की शक्ति ही विकसित न हो वरन् समस्त शक्तियाँ समान रूप से विकसित हों। इस प्रकार की शिक्षा से एकांगीपन दूर हो जाता है और बालकों में सन्तुलित व्यक्तित्व का विकास होता है।
8. व्यक्ति के विकास का उद्देश्य (Development of Individuality Aim ) – इस मत के समर्थकों की यह धारणा है कि व्यक्ति के उत्थान से समाज का उत्थान स्वतः होता है। अतः व्यक्ति की शिक्षा सामाजिक तथ्यों को सामने रखकर होनी चाहिए, अपितु स्वतन्त्र ढंग में वैयक्तिक विकास को प्रोत्साहन मिलना चाहिए। इसमें उद्देश्य के सर्वश्रेष्ठ पोषक सर पर्सीनन साहब हैं, जिनका कथन है व्यक्तित्व का विकास जीवन का उद्देश्य है। शिक्षा की किसी योजना का मूल्यांकन इस बात से होता है कि वह व्यक्तित्व के विकास में किस सीमा तक सफल हुई।”
9. सामाजिक तथा नागरिकता का उद्देश्य (Social and Citizenship Aim )- इस उद्देश्य के पोषक ने सामाजिकता को व्यक्तित्व से श्रेष्ठता प्रदान की है। उनका कहना है कि व्यक्तित्व का कोई स्वतन्त्र महत्त्व नहीं। वह समाज का अंग है अतः शिक्षा उद्देश्य समाज को दृष्टिपथ में रखकर निर्धारित होना चाहिए, व्यक्ति को रखकर नहीं। समाज के विकास में व्यक्ति का विकास भी सन्निहित है।
10. परिस्थिति के अनुकूल बनाने का उद्देश्य (Adjustment Aim)– कुछ शिक्षा – विशारदों का यह कहना है कि शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को अपनी परिस्थितियों के अनुकूल अपने आप को बना लेने की क्षमता प्रदान करता है। अतः शिक्षा जो मानव-निर्माण की प्रमुख सहायिका है विशेषतः इस उद्देश्य को लेकर दी जानी चाहिए कि मनुष्य अपने आपको परिस्थितियों के अनुकूल कर लेने के लिए सक्षम हो जाये अथवा परिस्थितियों को स्वयं अपनी प्रकृति के अनुरूप परिवर्तित कर ले।
11. आत्म-बोध का उद्देश्य (Aim of Self-Realisation)- आत्म-बोध को भी कुछ लोगों ने शिक्षा के मुख्य उद्देश्य के रूप में स्वीकार किया है। प्राचीनकाल में भारत में शिक्षा का यही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य था। आत्म-बोध का अर्थ प्रकृति, पुरुष और ईश्वर को समझना है। आत्म-बोध से मनुष्य को सुख-शान्ति और आनन्द की उपलब्धि होती है। अतः आत्मबोध का उद्देश्य अत्यन्त ही उच्च और महान उद्देश्य है।
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