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शिक्षा की विभिन्न अवधारणाएँ | Different Concepts of Education in Hindi

शिक्षा की विभिन्न अवधारणाएँ | Different Concepts of Education in Hindi
शिक्षा की विभिन्न अवधारणाएँ | Different Concepts of Education in Hindi

शिक्षा की विभिन्न अवधारणाओं की विवेचना कीजिए।

शिक्षा की विभिन्न अवधारणाएँ (Different Concepts of Education)

शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है। समय-समय पर शिक्षा के अर्थ में परिवर्तन हुए हैं। विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों एवं दार्शनिकों ने शिक्षा के प्रति अलग-अलग विचार व्यक्त किए हैं जिनकी व्याख्या करने से यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा न तो ज्ञान या प्रशिक्षण का पर्याय है तथा न ही इसका प्रयोग ज्ञान की शाखा विशेष अथवा अनुशासन के लिए करना उचित है। शिक्षा मानव की जन्मजात के शक्तियों के विकास तथा ज्ञान और कला-कौशल में वृद्धि एवं व्यवहार में परिवर्तन करने वाली सामाजिक प्रक्रिया है। प्रक्रिया रूप में भी इसे व्यापक अर्थ में स्वीकार करना चाहिए। शिक्षा की प्रक्रिया मनुष्य में जीवनपर्यन्त चलती है जिसमें विद्यालयी जीवन इसका केवल एक अंग है।

विश्व का प्रत्येक प्राणी अपनी जाति के प्राणियों के बीच में रहकर अनुकरण द्वारा अनुसार घूमना-फिरना, खाना-पीना तथा बोलना आदि सीखता है। पशु-पक्षियों की सीखने की प्रक्रिया केवल परिस्थितियों के साथ समायोजन कर आत्मरक्षा के कार्यों तक ही सीमित रहती है लेकिन मनुष्य की शिक्षा उसे केवल परिस्थितियों के साथ समायोजन करना ही नहीं सिखाती बल्कि उसमें अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करने की क्षमता भी विकसित करती है। शिक्षा के द्वारा मनुष्य के रहन-सहन, खान-पान और विचारों तथा जीवन को सुखमय बनाने हेतु साधन और उपसाधनों के निर्माण में सदा परिवर्तन होता रहता है तथा उसी परिवर्तन का दूसरा नाम विकास है। विकास करना मनुष्य जाति का लक्षण है।

शिक्षा की विभिन्न अवधारणायें निम्न प्रकार हैं-

(1) शिक्षा मानव का विकास है (Education is Development of Man) – शिक्षा के इस पहलू पर बहुत अधिक बल दिया गया है। इस सम्बन्ध में जॉन ड्यूवी ने लिखा है-

“शिक्षा व्यक्ति की उन सब शक्तियों का विकास है, जिनसे वह अपने वातावरण पर अधिकार कर सके और अपनी भावी आशाओं को पूरा कर सके।”

“Education is the development of all those capacities in an individual which will enable him to control his environment and fulfil his possibilities.”     – John Dewey

अतएव जिस व्यक्ति में सोचने-समझने की शक्ति होती है, उसी को विकसित कहा जा सकता है। जो व्यक्ति अपने चारों ओर होने वाली घटनाओं की आलोचना कर सकता है, वही व्यक्ति समाज में वांछित परिवर्तन ला सकता है। ऐसे व्यक्ति को सदैव बदलने वाले समाज से अपना सामंजस्य स्थापित करने में कोई कठिनाई नहीं होती है। उसे इस स्थिति में शिक्षा द्वारा ही पहुँचाया जाता है।

(2) शिक्षा एक सामाजिक कार्य है (Education is a Social Work) – शिक्षा सामाजिक कार्य है। इसका अर्थ है कि शिक्षा की प्रक्रिया सामाजिक है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि व्यक्ति को सामाजिक वातावरण में ही अत्यधिक लाभप्रद ढंग से शिक्षा दी जा सकती है।

जॉन ड्यूवी का कथन है- “सामाजिक वातावरण में उसके प्रत्येक सदस्य की सभी क्रियायें आ जाती हैं। इसका प्रभाव उतनी ही मात्रा में वास्तविक रूप में शिक्षाप्रद होती है जितनी मात्रा में एक व्यक्ति समाज की सहयोगी क्रियाओं में भाग लेता है।”

“The social environment consists of all activities of any one of its members. It is truly educative in its effect in the degree in which an individual shares or participates in some conjoint activity.”

– John Dewey

अतएव उपरोक्त कथन से स्पष्ट हो जाता है कि सामाजिक वातावरण ही व्यक्ति को वास्तव में शिक्षित करता है। ऐसा प्राचीन समाज में भी था और आज भी है। प्राचीन काल में बालक अपने माता-पिता के कार्यों को देखते थे और अपने खेल या कार्य में उनका अनुकरण करते थे। माता-पिता उनके खेल या कार्य में सुधार करते थे और कुछ कार्यों को स्वयं करके दिखाते थे। इस प्रकार बालक उनसे शिक्षा ग्रहण करते थे।

(3) शिक्षा प्रशिक्षण कार्य है (Education is an Act of Training) – कुछ विचारकों का मत है कि शिक्षा प्रशिक्षण का कार्य है जिसके द्वारा व्यक्ति सामाजिक जीवन में अपना उचित स्थान ग्रहण करता है। मनुष्य मूलतः पशु होता है अर्थात् वह पशु-प्रवृत्ति रखता है। अतः उसे प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, जिससे कि वह अपनी भावनाओं, अभिलाषाओं और व्यवहारों पर अधिकार करना सीख जाये। ऐसा प्रशिक्षण प्राप्त करके ही वह समाज का उत्तरदायी सदस्य बन सकता है। उसे यह प्रशिक्षण शिक्षा द्वारा ही दिया जाता है। इस प्रशिक्षण के बिना वह नैतिक और व्यवस्थित जीवन व्यतीत करने में कठिनाई का अनुभव कर सकता है।

(4) शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है (Education as a Dynamic Process)- शिक्षा के द्वारा व्यक्ति अपनी सभ्यता और संस्कृति का निरन्तर विकास करता है। इस विकास हेतु उसकी एक पीढ़ी अपने ज्ञान और कौशल आदि को दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित करती है। इस हस्तान्तरण के लिए प्रत्येक समाज विद्यालयी शिक्षा का नियोजन करता है।

(5) शिक्षा वर्तमान युग की माँग है (Education is an inevitable need of Modern Age ) – वर्तमान युग वैज्ञानिक युग । आज कोई भी व्यक्ति विज्ञान की प्रगति से अपरिचित नहीं है। तकनीकी क्षेत्र के विकास में शिक्षा की आवश्यकता प्रत्येक क्षेत्र में दिखाई पड़ती है। राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास करने में भी शिक्षा अनेक प्रकार से सहायता प्रदान करती है। इसी कारण आज हम जनसंख्या शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा तथा समाज शिक्षा आदि पर जोर देते हैं।

(6) शिक्षा एक सतत् प्रक्रिया है (Education as Continuous Process )- शिक्षा जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। शिक्षा का प्रभाव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में दिखाई देता है। मनुष्य शिक्षा द्वारा अपने जीवन में नित्य नये-नये अनुभव प्राप्त करता है तथा उनसे नई-नई बातें सीखता है। इस प्रकार शिक्षा का कार्यक्रम निरन्तर चलता रहता है। इसे कभी विश्राम नहीं मिलता है। अतः निरन्तरता शिक्षण का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण हैं।

(7) शिक्षा अभिवृद्धि है ( Education is Growth) – शिक्षा बालक की अभिवृद्धि की ओर ध्यान देती है। शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक प्रत्येक क्षेत्र में विकास की आवश्यकता है। इस कार्य को केवल वही व्यक्ति कर सकता है जो स्वयं विकसित तथा परिपक्व हो । शिक्षा के कार्य में लगा व्यक्ति बालक की अभिवृद्धि की ओर ध्यान देता है। बालकों को इस प्रकार निर्देशन दिया जाना चाहिए कि उनके व्यक्तिगत गुणों तथा सामाजिक सम्बन्धों का विकास हो सके। बालकों की अभिवृद्धि जीवन के उचित लक्ष्यों, आकांक्षाओं तथा महानताओं की दिशा में होनी चाहिए। इस प्रकार की अभिवृद्धि तभी सम्भव है जब बालक के व्यक्तित्व के प्रत्येक पहलू का समान रूप से विकास किया जाये।

(8) शिक्षा द्विध्रुवीय प्रक्रिया है (Education is a Bi-polar Process) – रॉस के शब्दों में-‘‘चुम्बक के समान शिक्षा में भी दो ध्रुवों का होना आवश्यक है। इसलिये शिक्षा द्विध्रुवीय प्रक्रिया है शिक्षा की प्रक्रिया दो पाटों के बीच चलती है। एक वह जो प्रभावित होता है दूसरा वह जो प्रभावित करता है।” अमेरिकी शिक्षाशास्त्री जॉन डीवी ने भी शिक्षा के दो माने हैं, परन्तु उन्होंने उनको मनौवैज्ञानिक तथा सामाजिक नाम दिए हैं। मनोवैज्ञानिक से उनका अभिप्राय बालक के सामाजिक पर्यावरण से है। डीवी के अनुसार सामाजिक पर्यावरण के अभाव में शिक्षा की प्रक्रिया नहीं चल सकती परन्तु आलोचकों का मत है कि केवल सामाजिक पर्यावरण ही नहीं बल्कि भौतिक पर्यावरण भी सीखने-सिखाने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। नियोजित शिक्षा के सन्दर्भ में शिक्षक, शिक्षण के उद्देश्य, पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियाँ प्रभावी तत्त्व होते हैं। इन सभी को हम सीखने-सिखाने की परिस्थितियाँ कहते हैं। अतः शिक्षा की प्रक्रिया सीखने वाले (विद्यार्थी) तथा सीखने-सिखाने की परिस्थितियों के मध्य चलती है। इस दृष्टि से भी शिक्षा के दो अंग होते है सीखने वाला तथा सीखने-सिखाने की परिस्थितियाँ ।

(9) शिक्षा मार्गदर्शन है ( Education is Direction) – शिक्षा का उद्देश्य बालकों की योग्यताओं, क्षमताओं, रुचियों तथा शक्तियों को मार्गदर्शन देना है। शिक्षा गतिशील प्रक्रिया है। समाज, स्थान या समाज की बदलती आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा मनुष्य का मार्गदर्शन करती है। मार्गदर्शन करते समय शिक्षक को उसका उचित प्रकार से ज्ञान होना चाहिए। बालकों के ऊपर किसी भी प्रकार का अनावश्यक दबाव नहीं डालना चाहिए।

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Anjali Yadav

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