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संकेन्द्रिय विधि (Concentric Method)
संकेन्द्रिय योजना से कुछ लोगों का विचार है कि पहले पृथ्वी का ज्ञान कराया जाय फिर महाद्वीप का, फिर राज्य का और तत्पश्चात् जिले तथा तहसील का, परन्तु यह विचार उचित प्रतीव नहीं होता है।
परन्तु इस विधि का आशय एक ऐसे पाठ्यक्रम से है, जिसके अनुसार लघु माध्यमिक तथा माध्यमिक कक्षाओं में प्रतिवर्ष ही संसार का भूगोल विभिन्न दृष्टिकोण और कठिनाई के क्रम में पढ़ाया जाता है। प्रतिवर्ष भूगोल का अध्ययन. छात्र के ऊँची कक्षा में पहुँचने के साथ अधिक विस्तारपूर्ण हो जाता है।
मिक स्तर पर संसार के विभिन्न भौगोलिक वातावरणों में रहने वाले मनुष्यों का अध्ययन तथा कुछ वस्तुओं के उत्पादन का ज्ञान कराया जाता है। इसके पश्चात् संसार के प्राकृतिक प्रदेशों का ज्ञान विभिन्न शीर्षकों के अन्तर्गत कराया जाता है। तत्पश्चात् उच्च कक्षाओं में संसार का आर्थिक का ज्ञान कराया जाता है और संसार का पूर्ण ज्ञान विस्तार के साथ दिया जाता है। इस स्तर पर पूर्व के वर्षों का या भी जाता है।
संकेन्द्रिय विधि पर आधारित पाठ्यक्रम की एक रूपरेखा नीचे दी जा रही है-
कक्षा 6- कुछ चुने हुये जनसमूहों पर आधारित संसार के भूगोल का प्रारम्भिक सर्वेक्षण कराया जाय। एक जन-समूह के भौगोलिक वातावरण से दूसरे की समता व विषमता का ज्ञान कराया जाय।
कक्षा 7- पृथ्वी का अध्ययन प्राकृतिक भू-आकृति रचना की दृष्टि से कराया जाय। प्राकृतिक दशा का अध्ययन पर्याप्त भौगोलिक सहायक सामग्री की सहायता से कराया जाय।
कक्षा 8- संसार की जलवायु प्राकृतिक वनस्पति तथा पशु जीवन का अध्ययन कराया जाय और छात्रों को भौगोलिक तथ्यों को कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित करके समझाया जाय।
कक्षा 9- संसार का आर्थिक भूगोल भोजन, उपज, प्रसिद्ध मंडियाँ, निर्यात तथा यातायात के साधनों का वर्णन हो।
कक्षा 10- संसार का पूर्ण ज्ञान पूर्व के चार वर्षों के कार्य को दृढ़ीकरण करके किया जाये और संसार में स्वदेश की स्थिति पर विशेष बल दिया जाय, जिससे छात्रों को अपने देश का प्रारम्भिक ज्ञान हो सके।
गुण
1. भूगोल शिक्षण की इस विधि में वास्तविकता एवं निरन्तरता है। छात्रों के समक्ष ग्लोब का दृष्टिकोण रखा जाता है, जो संसार को प्राकृतिक अथवा राजनैतिक विभागों में बाँटने से समाप्त हो जाता है।
2. यह विधि मनोवैज्ञानिक विधि है, क्योंकि छात्रों के मानसिक विकास के साथ विषय का अध्ययन कठिन एवं विस्तारपूर्ण होता जाता है।
दोष
इस विधि से माध्यमिक कक्षाओं के सभी वर्षों में भूगोल का शिक्षण व्यावहारिक दृष्टिकोण से सम्भव नहीं है, क्योंकि भारतीय माध्यमिक विद्यालयों में भूगोल के पाठ्यक्रम की व्यवस्था भिन्न है। इसलिए हमारे विद्यालयों में शिक्षक इस विधि का प्रयोग बहुत कम करते हैं।
विद्यालय के पाठ्यक्रम में भूगोल के अतिरिक्त सम्भवतः दूसरा कोई ऐसा विषय नहीं है, जो इतनी विभिन्न पद्धतियों से पढ़ाया जा सके। भूगोल शिक्षण की इतनी अधिक विधियाँ होने से तथा एक निश्चित विधि के अभाव में भूगोल शिक्षण में अनिश्चितता, अस्पष्टता एवम् अव्यवस्था न आ जाय यह एक समस्या अध्यापक के समक्ष रहती है। इसलिये आवश्यकता इस बात की है भूगोल शिक्षक को केवल विषय-सामग्री का समुचित ज्ञान ही न हो, बल्कि पाठ्यक्रम की विभिन्न अवस्थाओं में वह किस विधि से पढ़ाये इसका भी उसे स्पष्ट ज्ञान होना चाहिये ।
भूगोल के पाठ्यविषय का सम्बन्ध एक ओर प्राकृतिक विज्ञान से है तो दूसरी ओर इतिहास व अर्थशास्त्र जैसे मानवीय विज्ञानों से। भूगोल इन दोनों वर्गों के बीच एक स्वाभाविक कड़ी के रूप में है। इसलिये यह सम्भव है कि भूगोल का शिक्षण, विज्ञान की प्रयोग पद्धति तथा मानवीय विषयों की कक्षा अध्यापन पद्धति (मौखिक पद्धति) इन दोनों के मध्यवर्ती हो। इसलिए हम कह सकते हैं कि भूगोल की शिक्षण पद्धति एक मिश्रित विधि है, जिसमें पाठ की आवश्यकतानुसार तथा पाठ्यक्रम की अवस्थानुसार प्रयोग विधि, मौखिक पद्धति, निरीक्षण पद्धति, कहानी विधि आदि का प्रयोग किया जाता है।
किसी भी पद्धति से भूगोल पढ़ाया जाय भूगोल शिक्षक को अपने अध्यापन के समय चार मूल सिद्धान्तों पर जोर देना चाहिये-
1. अनुकूलन – भूगोल शिक्षण में अनुकूलन के सिद्धान्त पर जोर देना चाहिए, जिससे बालक यह समझ सकें कि विभिन्न परिस्थितियों में पड़कर जड़- जीव एवं मनुष्य कैसे अपने को अनुकूल बनाता है।
2. भूगोल का अन्य विषयों से समन्वय- भूगोल का समन्वय व सहसम्बन्ध पाठ्यक्रम में अन्य विषयों से स्थापित करना चाहिये ।
3. मानवीय भाव – भूगोल में मानव क्रियाओं की प्रधानता है। मानव और उसके वातावरण की आपस की क्रिया व प्रतिक्रिया ही भूगोल अध्ययन की मुख्य वस्तु है। इसीलिये भूगोल शिक्षण में मानवीय भाव पर अधिक जोर देना चाहिये।
4. अन्योन्याश्रय सम्बन्ध- कोई भी देश पूर्ण रूप से स्वावलम्बी नहीं है। सम्पूर्ण विश्व में परस्पर सम्बन्ध का एक जाल-सा बिछा हुआ है। प्रत्येक वस्तु, स्थान और मनुष्य आपस में एक-दूसरे से किसी न किसी प्रकार सम्बन्धित हैं।
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