Commerce Notes

साझेदारी संलेख के अभाव में लागू होने वाले नियम | Laws Applicable in the Absence of a Written Partnership Agreement in Hindi

साझेदारी संलेख के अभाव में लागू होने वाले नियम | Laws Applicable in the Absence of a Written Partnership Agreement in Hindi
साझेदारी संलेख के अभाव में लागू होने वाले नियम | Laws Applicable in the Absence of a Written Partnership Agreement in Hindi
साझेदारी संलेख के अभाव में लागू होने वाले नियम का वर्णन कीजिए।

साझेदारी संलेख के अभाव में लागू होने वाले नियम (Laws Applicable in the Absence of a Written Partnership Agreement) – साझेदारी संलेख के अभाव में साझेदारों के पारस्परिक सम्बन्ध एवं अधिकार भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 के निम्नलिखित नियमों के आधार पर निर्धारित होते हैं-

1. व्यवसाय का लाभ तथा हानि सभी साझेदारों में समान अनुपात (यदि उनके बीच में कोई अनुबन्ध नहीं है) में बाँटा जाता है।

2. साझेदारों को पूँजी पर कोई ब्याज नहीं दिया जायेगा। यदि किसी साझेदार को ब्याज देने की व्यवस्था है तो ब्याज केवल लाभ में से ही दिया जा सकता है।

3. किसी साझेदार को कोई वेतन एवं पारिश्रमिक नहीं दिया जायेगा।

4. यदि किसी साझेदार ने अपनी पूँजी के अतिरिक्त कोई धन फर्म में लगाया है अथवा फर्म को ऋण दिया है तो इस अतिरिक्त धन अथवा ऋण पर 6% वार्षिक की दर से ब्याज पाने का अधिकार होगा।

5. प्रत्येक साझेदार को व्यापार के संचालन अथवा प्रबन्ध में भाग लेने का अधिकार होगा।

6. प्रत्येक साझेदार का फर्म की पुस्तकों को देखने एवं उनकी प्रतिलिपि लेने का ‘अधिकार होगा। ये सब पुस्तकें फर्म के प्रधान कार्यालय में रखी जायेंगी।

7. प्रत्येक साझेदार का यह कर्तव्य है कि फर्म के कार्यों को परिश्रम, रुचि एवं बुद्धिमानी के साथ करें।

8. साझेदारों के आपसी मतभेद तथा व्यवसाय सम्बन्धी साधारण बातों का निर्णय बहुमत से किया जायेगा, लेकिन व्यापार के स्वरूप में किसी भी प्रकार का परिवर्तन सर्व-सम्मति से ही किया जा सकेगा।

9. कोई भी नया साझेदार वर्तमान साझेदारों की सर्व-सम्मति से ही फर्म में प्रवेश पा सकेगा।

10. कोई भी साझेदार अन्य साझेदारों की अनुमति से ही फर्म से अवकाश ग्रहण कर सकेगा। यदि साझेदारी ऐच्छिक है तो वह अन्य साझेदारों को केवल लिखित सूचना देकर ही फर्म से अवकाश ग्रहण सकता है।

11. यदि किसी साझेदार ने फर्म के साधारण व्यापार में अथवा फर्म को किसी संकट से बचाने के लिये कुछ भुगतान किया हो या कोई दायित्व स्वीकार हो तो फर्म उसका भुगतान करने तथा उसकी क्षतिपूर्ति के लिये उत्तरदायी होगा।

12. यदि किसी साझेदार ने जान-बूझकर फर्म को क्षति पहुँचाई है अथवा उसकी – लापरवाही के कारण फर्म को कोई क्षति उठानी पड़ी है तो वह साझेदार फर्म की क्षतिपूर्ति के लिये जिम्मेदार या उत्तरदायी होगा।

13. फर्म की प्रत्येक सम्पत्ति, फर्म की ही सम्पत्ति समझी जायेगी और वह फर्म के कार्यों के लिए ही प्रयोग की जा सकती है।

14. यदि किसी साझेदार ने फर्म की सम्पत्ति, व्यापारिक सम्बन्ध अथवा फर्म का नाम प्रयोग करके कोई व्यक्तिगत लाभ प्राप्त किया है तो उसे उसका पूर्ण विवरण और कुल लाभ फर्म को देना होगा।

15. यदि कोई साझेदार फर्म के समान अथवा उससे प्रतियोगिता करने वाला कोई व्यापार करता है तो उसे उस व्यापार से उपार्जित सम्पूर्ण लाभ तथाउसका हिसाब फर्म को देना होगा।

16. यदि फर्म की बनावट में कोई परिवर्तन होता है तो साझेदारों के अधिकार अथवा कर्तव्य साधरणतया वही रहेंगे जो परिवर्तन से पूर्व थे।

17. यदि फर्म एक निश्चित अवधि अथवा किसी विशेष उपक्रम के लिये स्थापित की गई है, लेकिन वह उस अवधि अथवा उपक्रम समाप्त होने पर भी कार्य करने का निश्चय करती है तो साझेदारों के अधिकार तथा कर्तव्यों में कोई अन्तर नहीं होता है।

IMPORTANT LINK

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com

About the author

Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

1 Comment

  • किसी साझेदार के अवकाश ग्रहण करने पर संपत्तियों और दायित्व का पुनर्मूल्यांकन क्यों किया जाता है

Leave a Comment