सामाजिक विज्ञान की प्रकृति एक अनुशासन के रूप में समझाइये ।
‘सामाजिक विज्ञान’ की प्रकृति
सामाजिक विज्ञान के शिक्षण शास्त्र को समझने के लिए यह जरूरी है कि ‘सामाजिक विज्ञान’ की प्रकृति को समझा जाये तथा यह देखा जाये कि एक अनुशासन के रूप में सामाजिक विज्ञान के सरोकार क्या समझने की कोशिश की जाती है।
- समाज के भू-सांस्कृतिक ब्योरों को समझने की कोशिश होती है।
- समाज के आर्थिक ताने-बाने को समझने की कोशिश होती है।
- समाज के सत्तामूलक सम्बन्धों की प्रकृति समझी जाती है।
- समाज के पारस्परिक ताने-बाने को समझने की कोशिश होती है।
अलग-अलग विषय उपरोक्त उद्देश्यों को पूरा करते हैं वे हैं-
1. इतिहास, 2. भूगोल, 3. अर्थशास्त्र 4. राजनीतिशास्त्र, और 5. समाजशास्त्र ।
हर अनुशासन की अपनी एक विधि होती है-यों सामाजिक विज्ञान की भी अपनी कुछ विधियाँ हैं। इन विधियों में ‘वयस्क्ता’ का बोलबाला है- इन्हें समझने से पहले एक गांव का उदाहरण लेते हैं। गाँव में बड़े हो रहे बच्चों और बच्चियों के लिए गाँव एक ऐसी जगह होती है। जिसको समझने के लिए विशेष प्रयास नहीं करते। बल्कि वे गाँव में जी रहे होते हैं। उनके लिए गाँव की एक एकीकृत समझ होती है। गाँव का अतीत, गाँव के ब्रेत, खलिहान, वहाँ की फसलें, संस्कृति, गाँव की सत्ता समीकरण, गाँव के लोगों के जीवीकोपार्जन का तरीका या फिर गाँव के विभिन्न समूहों के बीच का सम्बन्ध या अलगांव ये ऐसे विषय नहीं होते, जिन पर वे अलग-अलग विचार करें, बल्कि सब के सब एक-दूसरे से गँथे हुए रूप में उनके सामने आते हैं। पर जब हम बच्चों को सामाजिक विज्ञान पढ़ा रहे होते हैं तो उन्हें एक-एक पहलू को अलग-अलग करके पढ़ाते हैं इसी चुनौती से सामाजिक विज्ञान के शिक्षण शास्त्र का प्रारम्भ होता है। जहाँ हम बच्चों की देखी गई दुनिया या जीए गए अनुभव जगत् को इतिहास, भूगोल, राजनीति शास्त्र, अर्थशास्त्र या समाजशास्त्र की मानक शब्दावलियों के बीच समझना शुरू करते हैं।
एन.सी.एफ. 2005, स्कूली शिक्षा को बच्चों की दुनिया से जोड़ने की बात करता है। यहाँ एक द्वंद्व है। स्कूली शिक्षा की अपनी एक जड़ता है। जिसकी जड़ें पाठ्यपुस्तकों, पाठ्यक्रम, शिक्षकों के प्रशिक्षण, स्कूलों में हावी परीक्षा प्रणाली में देखी जा सकती है। शिक्षक उसी तरह से पढ़ाना चाहता है या उसे उसी तरह पढ़ाना आसान लगता है जैसे उसने पढ़ा है। नियत समाजशास्त्रीय भाषा में इसे हम शिक्षा का पुनर्त्यादन कहते हैं।
शिक्षा का पुनर्त्यांदन एक ऐसी प्रक्रिया है। जहाँ ज्ञान की प्रकृति, पढ़ाने के तरीके शिक्षकों और हस्तक्षेप की माँग करती है। जहाँ शिक्षक पुनर्त्यादन की प्रक्रिया को तोड़ने के लिए सक्रिय हस्तक्षेप करता है। स्कूल और कक्षा उसके लिए प्रतिरोध के स्थल होते हैं तथा बच्चे इस पुनर्त्यादन की प्रक्रिया को तोड़ने वाले सहयोगी ।
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