सामाजिक विज्ञान व राजनीति विज्ञान को अनुशासन के रूप में प्राथमिक कक्षाओं में कक्षा 3 से 5 में कैसे सम्मिलित किया जाना चाहिए।
कक्षा 3 से 5
पर्यावरण विज्ञान की शुरुआत कक्षा 3 से होती है। इसके पाठों में घर से शुरू करके पड़ोस तथा विद्यालय तक को शामिल करना चाहिए। ‘घर’ की व्याख्या ऐसी होनी चाहिए कि उसमें वहां घर बनाने वाले अन्य अनेक पशुओं तथा कीड़ों का भी उल्लेख होना चाहिए जैसे कीड़े पकड़ने के लिए जाला लगाने वाली मकड़ी अथवा बगीचे या आस पास के पेड़ों पर घोसलें बनाने वाली गौरेया। बच्चों को यह महसूस करनी चाहिए कि धरती जिस प्रकार हमारा घर है उसी प्रकार अन्य जीवों, यहां तक कि पेड़-पौधों का भी घर है। परिरक्षण, संरक्षण तथा सामंजस्यपूर्ण जीवन-यापन ऐसे मुद्दे हैं जिनके प्राकृतिक विज्ञानों में शामिल किया जाना आवश्यक है। विद्यार्थियों को प्राकृतिक पर्यावरण का परिरक्षण ही नहीं, स्मारकों एवं ऐतिहासिक स्थलों जैसी ऐतिहासिक विरासतों का परिक्षण तथा समादर भी सीखना चाहिए। इतिहास के पाठों को ऐतिहासिक महत्व की स्थानीय घटनाओं पर संकेंद्रित होना चाहिए। राज्य की नदियों-जल स्रोतों, पशु-पक्षियों की प्रवास गतिविधियों, (पारंपरिक सिंचाई प्रणालियों) तथा जल स्रोतों के प्रदूषण के सवाल पर अधिक जोर देना आवश्यक है। मानव सभ्यता के विकास में नदियों के महत्व को, नदी पारिस्थितिकी तंत्र को भी पर्यावरण विज्ञान में शामिल किया जा सकता है। पारंपरिक नृत्यों, मेलों, पर्व त्योहारों, भोजन संबंधी आदतों तथा पर्यावरण के साथ उनका संबंध अधिगम को आनंददायी के साथ-साथ सार्थक भी बनाएगा।
पर्यावरण विज्ञान के शिक्षण को नवाचारी एवं प्रयोगमूलक होने के साथ-साथ राक्षार्थियों में प्रेक्षण क्षमता, सृजनात्मकता एवं सौंदर्यबोध, प्रकृति प्रेम, सांस्कृतिक स्वरूपों के प्रति आदर और इनके जरिए हमारी बहुलतावादी संस्कृति की स्वीकार्यता एवं आदर को प्रोत्साहित करने वाला भी होना चाहिए। वहां अध्यापक पढ़ाने के लिए नहीं है बल्कि शिक्षार्थियों के अनुभवों के बारे में सीखने तथा सीखने का माहौल बनाने के लिए है। कक्षा में शिक्षार्थी अपने अनुभवों के साथ आता है और वह अपने परिवार, मित्रों, वातावरण, श्रव्य-दृश्य माध्यमों आदि के जरिए लगातार सीखता रहता है। अध्यापक को कक्षा में वार्तालाप को प्रोत्साहन देना चाहिए और जहां भी उचित हो, पाठों को स्थानीय उदाहरणों के जरिए प्रमाणित करना चाहिए। विभिन्न पृष्ठभूमियों से आने वाले बच्चों के अनुभवों को सामने लाने के दौरान सावधानी बरतनी चाहिए और किसी भी बच्चे को बहिष्कृत नहीं महसूस करना चाहिए।
शिक्षण-अधिगम सामग्री का प्रभावी उपयोग शिक्षार्थियों की समझ बढ़ा सकता है अतः इसे प्रोत्साहित करना चाहिए। परियोजना कार्य दिए जा सकते हैं लेकिन इसे देते समय यह सावधानी बतरनी चाहिए वह ‘माता-पिता का काम’ न बन जाए। शिक्षकों को स्थानीय तौर पर उपलब्ध सामग्री का प्रयोग करना चाहिए। शिक्षकों के लिए उदाहरणों एवं चित्रों से युक्त अलग परिदर्शिकाएं होनी चाहिए। ऐतिहासिक महत्व के स्थलों, वनस्पति उद्यान, चिड़ियाघर, पंचायतों की बैठकें आदि के भ्रमण को विद्यालय पाठ्यचर्या का अंग बनाया जाना चाहिए।
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