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सार्जेण्ट योजना के सुझाव और सिफारिशें | Sergeant Planning Tips and Recommendations in Hindi
सार्जेण्ट योजना के सुझाव और सिफारिशें
सार्जेण्ट योजना के सुझाव और सिफारिशों का वर्णन निम्नलिखित हैं –
1. पूर्व प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी सुझाव
- शिशु शिक्षा निःशुल्क हो ।
- शिशु विद्यालयों में केवल महिला अध्यापिकाओं की नियुक्ति की जाये। ये अध्यापिकाएँ विशेष प्रशिक्षण प्राप्त होनी चाहिए।
- भारत में 3 से 6 वर्ष के बच्चों के लिए शिशु विद्यालय खोले जायें। प्रारम्भ में यह व्यवस्था कम से कम 10 लाख बच्चों के लिए की जाये।
- इस स्तर पर बच्चों को सामान्य ज्ञान के साथ-साथ सद्व्यवहार और सामाजिक बोध की शिक्षा दी जाये।
- शिशु विद्यालयों में शिशुओं की उपस्थिति अनिवार्य नहीं होनी चाहिए लेकिन अभिभावकों को उन्हें नियमित रूप से विद्यालय भेजने के लिए अभिप्रेरित अवश्य किया जाये।
- जिन नगरों में शिशुओं की संख्या अधिक है, वहाँ अलग से शिशु विद्यालय खोले जायें। कम संख्या वाले क्षेत्रों में इन्हें प्राथमिक विद्यालयों के साथ जोड़ा जाये ।
2. प्राथमिक शिक्षा सम्बन्धी सुझाव –
- 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था की जाये।
- प्राथमिक शिक्षा को दो भागों में बाँटा जाये-(अ) जूनियर बेसिक, (ब) सीनियर बेसिक ।
- जूनियर बेसिक शिक्षा का रूप क्रियात्मक होना चाहिए।
- जूनियर बेसिक विद्यालयों में जहाँ तक सम्भव हो, महिला अध्यापिकाओं की नियुक्ति की जाये।
- जूनियर बेसिक स्तर पर अंग्रेजी का अध्ययन अनिवार्य न किया जाये।
- जूनियर बेसिक विद्यालयों में अध्यापक-छात्र अनुपात में 1:30 होना चाहिए।
- जूनियर बेसिक विद्यालयों में सह शिक्षा होगी।
- सीनियर बेसिक स्तर की पाठ्यचर्या ऐसी हो जिसके द्वारा बच्चों को सामान्य जीवन जीने योग्य बनाया जा सके।
- सीनियर बेसिक विद्यालय लड़के-लड़कियों के लिए अलग-अलग होंगे।
- सीनियर बेसिक स्कूलों में सामूहिक क्रियाओं को विशेष महत्त्व दिया जाये।
- सीनियर बेसिक विद्यालयों में अध्यापक-छात्र अनुपात में 1:25 होना चाहिए।
3. माध्यमिक शिक्षा सम्बन्धी सुझाव –
- माध्यमिक शिक्षा 11 वर्ष से 17 वर्ष तक के बच्चों के लिए होगी।
- हाईस्कूल दो प्रकार के होंगे- (अ) साहित्यिक (ब) प्राविधिक साहित्यिक स्कूलों में कला और विज्ञान की शिक्षा दी जायेगी और प्राविधिक स्कूलों में व्यावसायिक विषयों की शिक्षा दी जायेगी।
- दोनों प्रकार के विद्यालयों में बालिकाओं के लिए गृह-विज्ञान की सुविधा उपलब्ध होगी।
- माध्यमिक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए।
- योग्य और निर्धन छात्रों को शुल्क मुक्ति दी जानी चाहिxए लेकिन 50 प्रतिशत छात्रों तक ।
- अति निर्धन छात्रों को छात्रवृत्तियाँ दी जाये।
- दोनों प्रकार के माध्यमिक स्कूलों में अंग्रेजी अनिवार्य होनी चाहिए।
- विद्यालयों में अध्यापक-छात्र अनुपात 1:20 होनी चाहिए।
4. उच्च शिक्षा सम्बन्धी सुझाव –
- महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों से इण्टरमीडिएट कक्षाएँ समाप्त कर दी जायें। प्रथम वर्ष माध्यमिक शिक्षा से जोड़ दिया जाये और द्वितीय वर्ष स्नातक शिक्षा से जोड़ दिया जाये और स्नातक पाठ्यक्रम तीन वर्षीय कर दिया जाये।
- महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में योग्य प्राध्यापकों की नियुक्ति की जाये।
- महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में छात्राओं की संख्या बहुत कम है, महिला छात्राओं को छात्रवृत्तियाँ दी जायें ।
- शिक्षक-शिक्षार्थियों के बीच निकट का सम्पर्क स्थापित किया जाये। इसके लिए विश्वविद्यालयों में उपकक्षा प्रणाली की व्यवस्था की जाये।
- विभिन्न विश्वविद्यालयों के कार्यों में एकरूपता लाने और उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप उन्हें अनुदान देने के लिए केन्द्र में विश्वविद्यालय अनुदान समिति का गठन किया जाये।
- विश्वविद्यालय के गरीब बच्चों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाये, लगभग एक तिहाई छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्तियाँ दी जाये।
5. शिक्षा के प्रशासन सम्बन्धी सुझाव –
- शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रान्तीय सरकारों को केन्द्रीय स्रोत से पर्याप्त आर्थिक सहायता दी जाये।
- केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड के अधिकार एवं कार्य क्षेत्र में वृद्धि की जाये।
- प्रान्तीय सरकारों को अक्षम स्थानीय निकायों से शिक्षा की व्यवस्था अपने हाथों में ले लेनी चाहिए।
- केन्द्र में एक सशक्त शिक्षा विभाग की स्थापना की जाये जो सम्पूर्ण देश की शिक्षा में सामंजस्य स्थापित करें।
- प्रान्तीय स्तर पर भी सशक्त विभागों की स्थापना की जाये।
- केन्द्रीय और प्रान्तीय सरकारों के शैक्षिक कार्यक्रमों में तालमेल होना चाहिए।
- उच्च शिक्षा एवं उच्च औद्योगिक शिक्षा का प्रशासन अखिल भारतीय स्तर पर हो अर्थात् इसका उत्तरदायित्व पूर्ण रूप से केन्द्रीय सरकार पर हो और शेष शिक्षा का उत्तरदायित्व प्रान्तीय सरकारों पर हों।
6. मन्द बुद्धि एवं विकलांग बालकों की शिक्षा सम्बन्धी सुझाव
- मन्द बुद्धि, गूंगे, चहरे और अपंग बच्चों के लिए अलग-अलग विद्यालय खोले जायें।
- इन विद्यालयों में उन अध्यापकों की नियुक्ति की जाये, जो विशेष प्रशिक्षण प्राप्त हो।
7. शिक्षण प्रशिक्षण सम्बन्धी सुझाव –
- शिक्षण प्रशिक्षण विद्यालयों और महाविद्यालयों में प्रशिक्षणार्थियों से किसी प्रकार का शुल्क न लिया जाये।
- योग्य व्यक्तियों को शिक्षण व्यावसाय की ओर आकर्षित करने के लिए सभी स्तरों के शिक्षकों के वेतनमानों में वृद्धि की जाये।
- पूर्व प्राथमिक और जूनियर बेसिक स्कूलों के शिक्षकों के लिए “जूनियर शिक्षण प्रशिक्षण विद्यालयों” की स्थापना की जाये। इनमें तभी प्रवेश मिल सकता है जिसकी न्यूनतम योग्यता मिडिल पास हो।
- माध्यमिक स्कूलों के शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालयों की स्थापना की जाये। इनमें वे लोग प्रवेश ले सकते हैं जिनकी न्यूनतम योग्यता स्नातक पास हो।
- जहाँ तक सम्भव हो सभी प्रकार के शिक्षक प्रशिक्षण विद्यालय और महाविद्यालय आवासीय हों।
8. औद्योगिक एवं तकनीकी शिक्षा सम्बन्धी सुझाव –
(1) बोर्ड ने दो प्रकार के तकनीकी स्कूल और कालेज स्थापित करने का सुझाव दिया (अ) पूर्ण कालीन, (ब) अल्प कालीन ।
(2) देश के उद्योग और व्यावसाय के क्षेत्र में चार वर्ग के व्यक्तियों की माँग है- (अ) अर्द्धकुशल कर्मकार, (ब) कुशल कर्मकार, (स) कनिष्ठ अधिकारी, (द) उच्च अधिकारी।
इनके प्रशिक्षण की व्यवस्था निम्न प्रकार होनी चाहिए-
(अ) अर्द्धकुशल कर्मकार – इनके शिक्षण प्रशिक्षण की व्यवस्था सीनियर बेसिक स्कूलों में की जाये।
(ब) कुशल कर्मकार – इनके शिक्षण प्रशिक्षण की व्यवस्था उद्योगों के स्कूलों में की जाये।
(स) कनिष्ठ अधिकारी- इनके शिक्षण प्रशिक्षण की व्यवस्था हाईस्कूलों में होनी चाहिए।
(द) उच्च अधिकारी- इनके शिक्षण प्रशिक्षण की व्यवस्था तकनीकी महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में तकनीकी शिक्षा विभाग में की जानी चाहिए।
(3) देश में राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षा परिषद” की स्थापना की जाये।
(4) वाणिज्य शिक्षा को दो भागों में बाँटना चाहिए-(अ) बैंकिंग एवं एकाउंटिंग, (ब) ऑडिटिंग |
9. छात्र-छात्राओं के स्वास्थ्य सम्बन्धी सुझाव
- विद्यालयों का पर्यावरण स्वच्छ हो, बड़े कमरे हों, बैठने का उपयुक्त फर्नीचर हो ।
- छात्रों के स्वास्थ्य की जाँच, 6, 11 और वर्ष की आयु पर की जाये।
- विद्यालयों में साधारण रोगों के चिकित्सा की निःशुल्क व्यवस्था हो ।
- विद्यालयों में स्वास्थ्य शिक्षा अनिवार्य हो ।
- विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन की व्यवस्था हो ।
10. प्रौढ़ शिक्षा सम्बन्धी सुझाव –
- प्रौढ़ शिक्षा की व्यवस्था का उत्तरदायित्व राज्य सरकारों पर होना चाहिए।
- प्रौढ़ शिक्षा का कार्यक्रम क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुकूल होना चाहिए।
- प्रौढ़ शिक्षा की अवधि कम से कम 1 वर्ष हो ।
- प्रौढ़ शिक्षा का उद्देश्य प्रौढ़ों को केवल साक्षर बनाना ही नहीं, बल्कि उन्हें व्यावसायिक ज्ञान एवं कौशल प्रदान करना होना चाहिए।
- प्रौढ़ शिक्षा को रोचक बनाने के लिए श्रव्य-दृश्यों का प्रयोग किया जाये।
- प्रौढ़ शिक्षा की निरन्तरता के लिए सम्पूर्ण देश में 20 वर्षों के अन्दर जगह-जगह सार्वजनिक वाचनालयों एवं पुस्तकालयों की व्यवस्था की जाये।
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