“सुमित्रानन्दन पन्त प्रकृति के सुकुमार कवि हैं।” सिद्ध कीजिए।
प्राचीन काल से ही प्रकृति मनुष्य की सहचरी रही है। जहाँ मनुष्य है वहाँ प्रकृति है और जहाँ प्रकृति है वहाँ मनुष्य है। प्रकृति की ममता भरी गोद में बैठकर मनुष्य माँ जैसा स्नेह प्राप्त करता है और अपने समस्त दुःखों एवं कष्टों को कुछ क्षण के लिए भूल जाता है। यद्यपि है वर्तमान दौर में मनुष्य नगरों एवं महानगरों की तरफ अधिक दौड़ रहा है किन्तु उसे यह कृत्रिम वातावरण अधिक समय तक नहीं रोक पाता है और वह पुनः प्रकृति की तरफ दौड़ने लगता है। प्रकृति के प्रति मनुष्य को अनुराग है और इसी कारण से ही मनुष्य द्वारा रचित साहित्य में प्रकृति का चित्रण होना स्वाभाविक है।
पंत को प्रकृति के प्रति लग्नाव अपनी जन्म भूमि से ही प्राप्त हुआ है। पंत के अनुसार “कविता की प्रेरणा मुझे सबसे पहले प्रकृति निरीक्षण से मिली है जिसका श्रेय मेरी जन्म भूमि कूमांचल प्रदेश को हैं।” पंत का प्रकृति से अभिन्न समबन्ध है उन्होंने लिखा है कि प्रदेश निरीक्षण और प्रकृति प्रेम मेरे स्वभाव के अभिन्न अंग ही बन गये हैं जिनसे मुझे जीवन के अनेक संकट पूर्ण क्षणों में अमोघ सान्त्वना मिली है।”
प्रकृति का उग्र रुप उन्हें कम प्रिय है, प्रकृति का सुन्दर रुप उनके काव्य का प्राण है। पन्त जी के काव्य में प्रकृति के विविध रूपों का चित्रण मिलता है-
1-आलम्बन रुप में 2-उद्दीपन रुप में 3- अलंकार के रूप में 4-दार्शनिक रुप में 5-मानवीकरण के रूप में 6-उपदेशात्मक रूप में।
1- आलम्बन रुप में प्रकृति चित्रण- प्रकृति का शुद्ध नैसर्गिक रूप में चित्रण करना आलम्बन के अन्तर्गत माना जाता है।
2- उद्दीपन रूप में प्रकृति चित्रण- पन्त को अनेक रचनाओं में इसका वर्णन मिलता है। बसन्त की मादकता और वर्षा की शीतल फुहार उसे उद्दीपन बना देती है। जैसे-
काली कोकिल सुलगा उर में
स्वरमयी वेदना का अंगार
आया बसन्त घोषित दिगन्त
करती भर पावस की पुकार ।”
3- अलंकार रुप प्रकृति चित्रण- अन्योक्ति के माध्यम से किया गया नारी के नेत्रों का वर्णन कितना सजीव एवं आकर्षण है। जैसे-
कमल पर जो चारु दो खंजन प्रथम,
पंख फड़फड़ाना नहीं थे जानते।
4- दार्शनिक रूप में प्रकृति चित्रण- प्रकृति के अन्दर उन्होंने किसी अज्ञात सत्ता के दर्शन किये हैं। ‘नौका विहार’ में प्रकृति का दार्शनिक रुप उभर कर सामने आता है।
5- मानवीकरण रूप में प्रकृति चित्रण- इस प्रकार के चित्रण में उन्हें अद्वितीय सफलता मिली है। प्रकृति में मानवीय भावों का दर्शन करना ही मानवीकरण कहलाता है जैसे-
कौन-कौन तुम परहित वासना, म्लानमना भू पतिता सी।
धूल धूसरित मुक्त कुन्तला, सबके चरणों की दासी।
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