सुमित्रानन्द पंत के कला- पक्ष की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
छायावादी कवि वस्तु ही कला के क्षेत्र में भी प्रत्येक प्रयोग के प्रति इतना अधिक सतर्क एवं सहज रहा है कि आज उसकी कल्पना मात्र से संकोच हो आता है। जिस प्रकार कोई चित्रकार तूलिका के प्रत्येक स्पर्श से चित्र के किसी एक अंग की सृष्टि करता है। उसी प्रकार छायावादी कवि ने भी रचना में प्रयुक्त छन्द के द्वारा दृश्यभाव अथवा घटना के किसी-न-किसी अंग विशेष को मूर्त करने की चेष्टा की है। पन्त का कलापक्ष संक्षेप में इस प्रकार है-
भाषा- डॉ. नगेन्द्र की मान्यता है कि “हमारा कवि भाषा का सूत्रधार है। भाषा उसके कलात्मक संकेत पर नाचती है, भाषा का इतना बड़ा विधायक हिन्दी में कोई नहीं है हाँ, कभी कोई नहीं रहा। “
पन्त जी की भाषा की अनेक विशेषताएँ हैं जिनमें से कुछ का चित्रण यहाँ अपेक्षित है-
सजगता और सतर्कता- पन्त जी की भाषा की सबसे बड़ी विशेषता उनकी सजगता और सतर्कता है। यह विशेषता शब्द चयन में देखी जा सकती है। परिणामतः शब्द, शब्द-मात्र न रहकर वाक्य बन जाते हैं, वे पूरे छन्द में उभरकर सामने आने वाले चित्र के किसी अंग को उपस्थिति कर देते हैं-
शान्त, स्निग्ध, ज्योत्स्ना, उज्ज्वल।
अपलक अनन्त, नीरव भूतल ।
सैकत शैया पर दुग्ध-धवल, तन्वंगी गंगा ग्रीष्म विरल
लेटी है श्रान्त कलान्त, निश्चल।
ध्वंयर्थ व्यंजना- प्रत्येक छायावादी कवि ने शब्दों का ध्वन्यात्मक प्रयोग बड़े चाव से किया है, किन्तु जिस तत्परता, बाहुल्य और सिद्धहस्तता के साथ वह पन्त की रचनाओं में किया गया है, वह देखने योग्य है-
शत-शत फेनोच्छवासित स्फीत फूत्कार भयंकर,
घुमा रहे हैं घनाकार जगती का अम्बर।
चित्रोपम विशेषण- यह प्रयोग भी छायावादी कवियों को परम प्रिय रहा है। पन्त जी की कविताओं में तो कई स्थलों पर भावाभिव्यंक चित्रोपम विशेषणों का प्रयोग हुआ-
शान्त, स्निग्ध, ज्योत्स्ना उज्ज्वल!
अपलक, अनन्त, नीरव भूतल ।
प्रतीकात्मकता- पन्त जी के कुछ प्रिय प्रतीक हैं- ‘अरुण ज्वाल’ सौन्दर्य चेतना के लिए, ‘स्वर्ण-निर्झर’ मन स्वर्ग के लिए ‘उषा’ आत्म-निर्माण के लिए ‘रजतातप’ जीवन निर्माण के लिए ‘इन्द्रधनुष’ जीवन-सौन्दर्य के लिये आदि-आदि।
लोकोक्ति और मुहावरे- भावों को अधिक सशक्त ढंग से व्यक्त करने की क्षमता इस प्रकार के प्रयोगों में अधिक होती है।
आज बचपन का कोमल गात,
जरा का पीला पात।
चार दिन सुखद चाँदनी रात,
और फिर अन्धकार अजात
अलंकार योजना- पन्त की रचनाओं (छाया, मौन निमन्त्रण, बादल, परिवर्तन, भावी पत्नी के प्रति तथा नौका विहार) में ऐसे अनेक स्थल मिलेंगे जहाँ अलंकारों का प्रयोग आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की शब्दावली में वस्तुओं के रूप गुण तथा क्रिया का तीव्र अनुभव करने में सहायक सिद्ध होने वाली युक्ति के रूप में हुआ है-
गोरे अङ्गों पर सिहर सिहर, लहराता तार तरल सुन्दर
चंचल अंचल सा नीलाम्बर
‘चंचल अंचल सा नीलाम्बर’ वस्तु के रूप को आकर्षित बनाने में ही सहायक है।
बिम्ब विधान- पंत ने अपनी मूर्त विधायिनी कल्पना शक्ति के द्वारा विविध प्रकार के बिम्बों की सृष्टि की है। इन बिम्बों के द्वारा छोटे से छोटा भाव एवं लघु आकार भी मूर्त रूप में साकार होकर पाठक को आनन्द विभोर कर देता है और शेष सृष्टि के साथ अटूट सम्बन्ध स्थापित कर देता है। साथ ही कवि की अनुरति पाठकों को अपने मांसल शब्द चित्रों में ऐसे लीन कर लेती है कि वह कुछ क्षणों के लिए तमोगुण एवं रजोगुण को भूलकर सतोगुण की पावन गंगा में डुबकियाँ लगाने लगता है।
छन्द-विधान- पन्त जी का छन्द-विधान भी विशिष्ट है। उन्होंने सममात्रिक छन्द, शृंगार छन्द, नन्दन छन्द, तारक छन्द, नवीन अर्द्धसम या स्वनिर्मित अर्द्धसम छन्द, मिश्र छन्द आदि के साथ नवीन छन्दों का भी प्रयोग किया है। साथ ही उन्होंने प्रगति शैली को भी अपनाया है जिसमें भारतीय और पाश्चात्य धारणा के अनुसार गिनाये गये तत्वों का समावेश है।
विदेशी छन्दों में से पन्त जी ने गीति (Ode), चतुष्पदी (Sannci), शोक गीति (Elegy) इत्यादि का भी प्रयोग किया है। मुक्त छन्द तो छायावादी काव्य की विशेषता है ही, पंत जी उससे पीछे नहीं हैं। पंत के अधिकांश छन्द लययुक्त हैं
अचल पलकों में सुछवि उतार,
पान करता हूँ रूप अपार
IMPORTANT LINK
- सूर के पुष्टिमार्ग का सम्यक् विश्लेषण कीजिए।
- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
- सूर की काव्य कला की विशेषताएँ
- कवि मलिक मुहम्मद जायसी के रहस्यवाद को समझाकर लिखिए।
- सूफी काव्य परम्परा में जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
- ‘जायसी का वियोग वर्णन हिन्दी साहित्य की एक अनुपम निधि है’
- जायसी की काव्यगत विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- जायसी के पद्मावत में ‘नख शिख’
- तुलसी के प्रबन्ध कौशल | Tulsi’s Management Skills in Hindi
- तुलसी की भक्ति भावना का सप्रमाण परिचय
- तुलसी का काव्य लोकसमन्वय की विराट चेष्टा का प्रतिफलन है।
- तुलसी की काव्य कला की विशेषताएँ
- टैगोर के शिक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त | Tagore’s theory of education in Hindi
- जन शिक्षा, ग्रामीण शिक्षा, स्त्री शिक्षा व धार्मिक शिक्षा पर टैगोर के विचार
- शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त या तत्त्व उनके अनुसार शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्य
- गाँधीजी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन | Evaluation of Gandhiji’s Philosophy of Education in Hindi
- गाँधीजी की बुनियादी शिक्षा व्यवस्था के गुण-दोष
- स्वामी विवेकानंद का शिक्षा में योगदान | स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन
- गाँधीजी के शैक्षिक विचार | Gandhiji’s Educational Thoughts in Hindi
- विवेकानन्द का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान | Contribution of Vivekananda in the field of education in Hindi
- संस्कृति का अर्थ | संस्कृति की विशेषताएँ | शिक्षा और संस्कृति में सम्बन्ध | सभ्यता और संस्कृति में अन्तर
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
- घनानन्द की आध्यात्मिक चेतना | Ghanananda Spiritual Consciousness in Hindi
- बिहारी ने शृंगार, वैराग्य एवं नीति का वर्णन एक साथ क्यों किया है?
- घनानन्द के संयोग वर्णन का सारगर्भित | The essence of Ghananand coincidence description in Hindi
- बिहारी सतसई की लोकप्रियता | Popularity of Bihari Satsai in Hindi
- बिहारी की नायिकाओं के रूपसौन्दर्य | The beauty of Bihari heroines in Hindi
- बिहारी के दोहे गम्भीर घाव क्यों और कहाँ करते हैं? क्या आप प्रभावित होते हैं?
- बिहारी की बहुज्ञता पर प्रकाश डालिए।
Disclaimer