सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के काव्य की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं का मूल्यांकन कीजिए।
निराला जी महान क्रान्तिकारी एवं ओजस्वी कवि थे। वे हिन्दी साहित्य की महान् विभूति थे, उनका जीवन जितना संघर्षमय रहा उतना हिन्दी-साहित्य के किसी अन्य कवि का नहीं रहा, परन्तु फिर भी वे डिगे नहीं वरन् अपने आदर्शों पर डटे रहे। उन्होंने हिन्दी काव्य का नवीन श्रृंगार किया एवं छन्द, भाषा, शैली आदि सबको नवीनता प्रदान की। मानवीय क्रियाकलापों, व्यापारों तथा प्रकृति के विविध चित्र उभारने में निराला जी पूर्ण दक्ष थे। उनकी भाव एवं कला पक्षीय विशेषताएँ निम्न हैं-
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(अ) भावपक्षीय विशेषताएँ-
1. देश भक्ति के स्वर-निराला ने अपने काव्य में देश के सांस्कृतिक पतन की ओर जाने का व्यापकता से संकेत किया है। उनका मत है कि देश के भाग्याकाश को विदेशी शासन के राहु ने अपनी कालिमा से आच्छादित कर रखा हैं। वे चाहते है कि देश का भाग्योदय हो और भारतीय जनता आनन्दविभोर हो उठे। ‘भारती-वन्दना’, जागो फिर एक बार’, छत्रपति शिवाजी का पत्र’, आदि कविताएँ निराला जी की देश भक्ति को उजागर करती हैं। उनके मन में भारत के प्रति असीम प्रेम था, भारती वन्दना कविता में उन्होंने यह भाव व्यक्त किया है।
भारती, जय, विजय करे, कनक-शस्य कमल धरे।
यहाँ तक कि सरस्वती वन्दना में निराला का राष्ट्र-प्रेम स्पष्ट रूप से प्रतिबिन्धित होता है-
वर दे! वीणा वादिनि वर दें,
प्रिय स्वतन्त्र रव, अमृत-मन्त्र नव,
भारत में भर दे
2. सामाजिक उत्थान- कवि समाज सुधार सम्बन्धी विचार भी अपनी कविता में व्यक्त करता है। समाज कल्याण के लिए कवि गरीब किसान के उद्वार हेतु क्रान्ति का आहवान करता है।
3. नारी सौन्दर्य- कवि नारी सौन्दर्य के प्रति सजग था। उसने रीति नीति से हटकर नारी सौन्दर्य की प्रकृति की असीम अनुकम्पा को प्रस्तुत किया है।
4. प्रकृति का मानवीकरण- छायावादी कवियों में प्रकृति का मानवीकरण बहुतायत पाया जाता है। महाकवि निराला की अधिकांश कविताओं में प्रकृति में यही मानवीकरण छाया हुआ है। निश्चय ही इस काल में मानवीकरण का उन्मुक्त विस्तार लगभग सभी कवियो में पाया जाता है।
5. श्रृंगार भावना की अभिव्यक्ति- श्रृंगार रसराज है। साहित्य में उसकी व्यापकता स्वतः सिद्ध है। छायावाद कवियों की रचनाओं में भी श्रृंगार के अनेकानेक चित्र उपलब्ध हैं। ‘जूही की कली’ मे कवि निराला का श्रृंगारिक स्वरुप अपने आप उतरता दिखाई पड़ता है। वियोगावस्था में अपनी प्रियतमा का रुप ही उन्हें दिखाई पड़ता है।
रति-क्रीड़ा से लेकर वैवाहिक जीवन के अन्यतम चित्र ही उभरते दिखाई पड़ते हैं-
सोती थी
जाने कहो कैसे प्रिय आगमन वह?
नायक ने चूमे कपोल
डोल उठी बल्लरी की लड़ी जैसे हिंडोल।
6. मानवतावाद- निराला सर्वहारा वर्ग के हिमायती थे। दीनता, हीनता एवं गरीबी का सर्वाधिक कडवा अनुभव निराला को था। निराला अधिक गंभीर होकर आज के मानव का चित्र खींचते हैं। ‘बादल राग’ कविता में निराला दीनता हीनता का ही परिचय देते हैं।,
7. विद्रोहक स्वर- निराला जी अन्य छायावादी कवियों की अपेक्षा कहीं अधिक विद्रोही एवं स्वच्छन्दता प्रेमी थे। वह तो जीवनभर विद्रोह एवं संघर्ष करते रहे। तोड़ता बन्ध, प्रतिसंघ धरा स्फीति वक्ष दिग्विजय अर्थ प्रतिपल समर्थ बढ़ता समक्ष इस प्रकार निराला का सम्पूर्ण काव्य विद्रोह पीड़ा, संत्रास का काव्य है।
8. रहस्यभावना-निराला जी की कविता रहस्यवादी भावना, जिज्ञासा और कौतूहल के रुप में प्रकट हुई है। ‘तुम और मैं’ निराला जी की प्रसिद्ध रचना है जिसमें कवि ने जीवन रहस्यात्मक रूप को व्यक्त किया है।
9. लोक कल्याण- निराला जी चाहते थे समाज का प्रत्येक प्राणी सुखी रहे। ‘सरस्वती वन्दना’ कविता में उन्होंने यही भाव प्रकट किया है कि मानव समाज में नवीन शक्तियों का उदय हो और प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्त्तव्य का पालन करे।
10. वैयक्तिकता- मानवतावाद छायावादी कवियों की प्रमुख विशेषता है। उन्होंने समाज के चित्रों के साथ व्यक्तिगत अनुभूतियों-विचारों तथा उत्कर्ष-अपकर्ष की भी भावनाओं को उजागर किया है। लगभग सभी कवियों में आत्मा की पुकार सुनायी पड़ती है। निराला के काव्य जैसे ‘राम की शक्ति पूजा’, स्नेह निर्झर बह गया है’, ‘सरोज स्मृति’, जूही की कली’ में कवि की वैयक्तिकता समाहित है।
11. नैराश्य एवं करुणा के स्वर-छायावादी काव्य में निराशा-दुख सन्ताप करुणा, कष्ट-क्लेष की पर्याप्त विवृत्ति हुई है। वेदना और कष्ट ही कवि के जीवन का सर्वस्व है। निराला की ‘स्नेह निर्झर बह गया’, ‘मैं अकेला मुझे स्नेह क्या मिल सकेगा’ आदि कविताएँ निराशा व करुणा का भाव प्रदर्शित करती है।
12. प्रकृति चित्रण-निराला जी की कविताओं के अन्तर्गत प्रकृति चित्रण का अपना विशिष्ट स्थान है। उनके प्रकृति सम्बन्धी चित्र बड़े ही सजीव हैं। निराला ने प्रकृति पर सर्वत्र चेतना का आरोप किया है, उनकी दृष्टि में बादल, प्रपात, यमुना, झरना आदि सभी प्राकृतिक उपादान का चेतन है।
13. रस-योजना-निराला जी ने अपने काव्य में श्रृंगार, वीर, रौद्र, करुण आदि रसों का सफल प्रयोग किया है। उनकी काव्य कृति ‘जूही की कली’ ने तो हिन्दी-साहित्य को श्रृंगार की मधुर अनुभूति से झंकृत ही कर दिया हैं। उनकी कविता में सामान्यतया श्रृंगार और वीर रस का समन्वय ही हुआ है।
(ब) कलापक्षीय विशेषताएँ-
भाव पक्ष के भाँति निराला जी का कलापक्ष भी बहुत पुष्ट है। उन्होंने हिन्दी कविता को नवीन बिम्ब और नवीन छन्द प्रदान किए हैं। निराला जी की कलापक्षीय विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं-
1. कोमलकान्त भाषा- निराला जी की भाषा संस्कृतनिष्ठ है। कोमल कल्पना के प्रयोग के समय उनकी भाषा कोमलकान्त पदावली को हो जाती है। किन्तु पौरुष एवं ओज प्रदर्शन में भाषा में नीरसता नहीं अपितु संगीत की मधुरिमा विद्यमान है। मुहावरे के प्रयोग ने निराला जी की भाषा में नई व्यग्जना-शक्ति भर दी। जहाँ दर्शन, चिन्तन व विचार-तत्व प्रधान हो गया है वहाँ निराला की भाषा दुरुह हो गयी है।
2. अलंकार विधान- निराला ने अपने काव्य में अलंकारों का प्रयोग आवश्यकतानुसार यथास्थान किया है। निराला ने अलंकारों का प्रयोग चमत्कार प्रदर्शन करने के लिए नहीं किया। अनुप्रास, सांगरुपक, सन्देह, उपमा, उत्प्रेक्षा, यमक आदि अलंकारों का प्रयोग निराला किया है। छायावादियों का प्रिय अलंकार मानवीकरण है। निराला ने इसका भी प्रयोग पूर्ण रूप से किया है।
3. छन्द योजना- निराला जी अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए प्रायः मुक्त छन्द का प्रयोग करते हैं। उनके मुक्त छन्द भी पर्याप्त संगीतात्मकता हैं उनके छन्दों में एक अजीब सा संगीत, लय व गति-यति का दर्शन होता है। यद्यपि छन्द में लयबद्धता नहीं है किन्तु भाव की प्रभावान्विति से संगीत झलकता है। निराला ने नए छन्दों को गढ़ा है।
4. शैली- जिस प्रकार निराला छन्द मुक्त कवि हैं उसी प्रकार उनकी शैली भी मुक्त है। उनकी काव्य शैली उनकी अपनी जीवन शैली है।
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