सूर के पुष्टिमार्ग का सम्यक् विश्लेषण कीजिए।
महाप्रभु बल्लभाचार्य ने दार्शनिक क्षेत्र में शुद्ध द्वैतवाद की स्थापना की। इसके अनुसार ब्रह्म के अतिरिक्त किसी की सत्ता नहीं है। कृष्ण ही उस परब्रह्म के रूप हैं, वे रसेश्वर हैं तथा भक्तों को आनन्द देने के लिए ही लीलाएँ करते हैं। जीव उन्हीं का अंश है पर अविद्या के कारण उस आनन्द को प्राप्त नहीं कर पाता है। भगवान उस आनन्द को प्राप्त करने का एक मात्र साधन उसकी सेवा या भक्ति है। यह सेवा भक्ति उन्हीं को प्राप्त होती है जो भगवान का अनुग्रह (कृपा) प्राप्त कर लेते हैं। इसी को बल्लभाचार्य ने पोषण (पोषण तदनुग्रह) कहा है। पाप के कारण दुर्बल व क्षीण जीवात्मा को भगवान की कृपा रूपी पोषण की आवश्यकता होती है। ये कृपा प्राप्त जीव ही पुष्टि जीव कहे जाते हैं। ये निरन्तर अनन्य भाव से श्रीकृष्ण की भक्ति करते हैं।
बल्लभाचार्य ने चार प्रकार की पुष्टि बताई है-
(1) प्रवाह पुष्टि- इसके अनुसार, भक्त संसार में रहता हुआ भी श्रीकृष्ण की भक्ति करता है।
( 2 ) मर्यादा पुष्टि- इसके अनुसार, भक्त संसार के समस्त सुखों से विरक्त होकर कृष्ण गुणगान एवं कीर्तन द्वारा भक्ति करता है।
( 3 ) पुष्ट पुष्टि- इसके अनुसार, जीव को भगवान का अनुग्रह प्राप्त हो जाता है और वह साधना में रत हो जाता है।
( 4 ) शुद्ध पुष्टि- इसमें भक्त पूर्ण रूप से भगवान पर आश्रित जाता है तथा भगवान की लीलाओं से उसका तादात्म्य हो जाता है। इसका हृदय कृष्ण की लीला भमि बन जाता है। वस्तुतः बल्लभाचार्य ने इसी भक्ति को सर्वश्रेष्ठ माना है।
जीव को भगवान के अनुग्रह या पोषण की आवश्यकता क्यों होती है? इसका उत्तर बल्लभाचार्य ने जीव सृष्टि का स्वरूप समझाते हुए दिया है। लीला विलास के लिए ब्रह्म की जब एक से अनेक होने की इच्छा होती है, तब अक्षर ब्रह्म के अंश रूप असंख्य जीव उत्पन्न हो जाते हैं। सच्चिदानन्द अक्षर ब्रह्म के चित अंश से असंख्य निराकार जीव, सत अंश से जड़ प्रकृति तथा आनन्द अंश से अन्तर्यामी रूप अग्नि से स्फुलिंग की तरह प्रकट होते हैं। जीव में केवल सत और चित अंश होता है, आनन्द अंश तिरोहित रहता है, इसी कारण वह भगवान के छः गुणों- ऐश्वर्य, वीर्य, यश, श्री ज्ञान और वैराग्य से हीन होता है, परिणामस्वरूप वह दीन, हीन, पराधीन, दुःखी जन्म-मरण के दोष से युक्त अहंकारी, विपरीत ज्ञान से भ्रमित और आसक्तिग्रस्त रहता है। यही उसकी क्षीणता या दुर्बलता है। भगवान अपने अनुग्रह से उसे पुष्ट करते हैं। यह भाव भगवान की असीम अनुकम्पा से प्राप्त होता है। पुष्टिमार्ग के आदर्श भक्त नन्द, यशोदा, गोप और गोपी हैं जिन्होंने अपने-अपने भाव के अनुसार भक्ति प्राप्त की थी। भक्ति का माधुर्य भाव अलौकिक काम भावना है, जिसमें वासना का अभाव है।
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