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स्वीकृति के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए। मर्यादित स्वीकृति का क्या प्रभाव होता है?
स्वीकृति के प्रकार
स्वीकृत के प्रकार स्वीकृति दो प्रकार की होती हैं-
(1) साधारण स्वीकृति- जब देनदार बिल के मुख पृष्ठ पर या पीठ पर अपना हस्ताक्षर ‘स्वीकृत’ लिखकर या बिना लिखे कर देता है, तो ऐसी स्वीकृति को साधारण शर्त-रहित स्वीकृत कहते है। याहं पर देनदार बिल में दी हुई शर्तों के आधार पर ही स्वीकृति देता है।
(2) मर्यादित स्वीकृति- जब देनदार बिल पर स्वीकृति लिए हस्ताक्षर करते समय कोई शर्त लगा देता है, तो इसको विशेष या मार्यादित स्वीकृति कहते हैं, अत: देनदार ऐसी स्वीकृति में बिल में दी गयी शर्तों को बदल देता है। मर्यादित स्वीकृति निम्न ढंगों से हो सकती है-
(i) शर्तयुक्त स्वीकृति- यदि स्वीकृति देते समय विपत्र, में लिखी गयी रकम के भुगतान को किसी शर्त के पूरा होने पर या किसी घटना के घटित होने पर निर्भर कर दिया जाय तो ऐसी स्वीकृति को शर्तयुक्त स्वीकृति कहा जाता है।
उदाहरण- यदि आहार्थी स्वीकृति देते समय यह लिख दे कि ‘माल के विक्रय पर देय’ अथवा ‘ऋणों की वसूली पर देय’ या ‘जब रूपया होगा तो भुगतान किया जायेगा’।
(ii) आंशिक स्वीकृति- जब बिल में लिखी हुई रकम के लिए स्वीकृति दी जाती है तो इसे आंशिक स्वीकृति कहते हैं।
(iii) स्थानीय स्वीकृति- यदि स्वीकर्ता स्वीकृति देते समय रकम के भुगतान के लिए कोई स्थान निर्धारित कर दे तो इसे स्थानीय स्वीकृति कहा जायेगा। जैसे- केवल अमुक बैंक में ही भुगतान होगा अथवा केवल आहाय के मकान पर ही भुगतान होगा, अन्य किसी स्थान पर नहीं।
(iv) समय से मर्यादित स्वीकृति – जब बिल में दी हुई अवधि से भिन्न किसी दूसरी अवधि पर बिल का भुगतान करने की स्वीकृति दी जाती है, तो इसे समय से मर्यादित स्वीकृति कहते हैं, जैसे यदि कोई बिल तीन महीने बाद देय हो लेकिन स्वीकर्ता उसे चार माह बाद देने के लिए स्वीकार करे।
(v) कुछ ही देनदारों द्वारा स्वीकृति – जब कोई बिल दो या दो से अधिक व्यक्तियों (साझेदारों पर नहीं) पर लिखा जाता है तो जब तक किसी या सभी व्यक्ति इसे स्वीकार न कर ले, यह स्वीकृत हुआ नहीं माना जाता है। यदि अनेक देनदार में कुछ ही देनदार उसे स्वीकृत करें तो उसे मर्यादित स्वीकृत ही समझा जाता है।
मर्यादित स्वीकृति का प्रभाव
विपत्र का धारक मर्यादित स्वीकृति स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता अर्थात वह चाहे तो इसे स्वीकार करे अथवा इसे अस्वीकार कर दे। यदि वह उसे स्वीकार कर देता है तो विपत्र तो अस्वीकृति के आधार पर अनादरित समझा जा सकता है और इसके लिए आहार्थी पर वाद प्रस्तुत कर सकता है। लेकिन यदि वह मार्यादित स्वीकृति को स्वीकार कर लेता है, तो स्वीकर्ता विपत्र के लिए उत्तरदायी हो जाता है।
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