हिन्दी साहित्य

हिन्दी साहित्य के छायावादी कवियों में महादेवी वर्मा का स्थान

हिन्दी साहित्य के छायावादी कवियों में महादेवी वर्मा का स्थान
हिन्दी साहित्य के छायावादी कवियों में महादेवी वर्मा का स्थान
हिन्दी साहित्य के छायावादी कवियों में महादेवी वर्मा का स्थान निर्धारित कीजिए। 

रहस्यवाद के साथ-साथ छायावाद का भी हिन्दी साहित्य में प्रमुख स्थान रहा है। छायावादी काव्य की उत्पत्ति हिन्दी साहित्य में एक महत्वपूर्ण एवं आश्चर्यजनक घटना कही जाती है। द्विवेदी युग में छायावादी शैली का विकास हुआ है।

इस काव्य में धारा का नाम ‘छायावाद’ क्यों पड़ा?- इसका कोई उचित एवं निश्चित कारण दिखाई नहीं देता। डॉ. भागीरथ मिश्र के शब्दों में- ‘छायावाद’ आधुनिक हिन्दी काव्य का एक विशेष प्रवृत्ति है। इस प्रवृत्ति का सम्बन्ध केवल विषय या वर्णागत ही नहीं, वरन् शैलीगत भी है।

छायावादी काव्य धारा का स्वरूप स्पष्ट करते हुए विभिन्न लेखकों के मतानुसार निम्न विशेषताएँ दृष्टिगोचर होती हैं-

(1) छायावाद हिन्दी काव्य की एक विशेष प्रवृत्ति है। (2) छायावादी काव्य में आध्यात्मिकता का पुट मिलता है। (3) छायावाद में मानव मन की घनी अभिव्यक्ति है। (4) छायावाद तत्व प्रकृति के बीच में जीवन का उद्गीय है। “अतः कल्पनाएँ बहुरंगी और विविध रूपी हैं। (5) छायावादी काव्य में दार्शनिक अनुभूति का समावेश है। (6) छायावाद में प्रेम और सौन्दर्य अंकन होता है। (7) छायावाद में मानवीकरण है। (8) इसमें शास्त्रीय रूढ़ियों के प्रति आस्था दिखाई गई है। (9) छायावाद में सांस्कृतिक चेतना का परिणाम मिलता है।

छायावाद हिन्दी काव्य की एक विशेष प्रवृत्ति है- महादेवी जी के काव्य में उपयुक्त सभी विशेषताओं का समावेश है। डॉ. विनयमोहन शर्मा ने कहा है- “छायावाद ने महादेवी को जन्म दिया और महादेवी ने छायावाद को जीवन।” महादेवी का काव्य यद्यपि रहस्यवाद से ओत प्रोत है पर आधुनिक रहस्यवाद ही छायावाद का अंग है। महादेवी जी की रहस्य भाव प्राचीन रहस्य परम्परा में अपना स्थान कायम रखते हुए भी छाया युगीन हैं। प्रकृति का स्वरूप सुन्दर है किन्तु उनके प्रियतम का रूप सुन्दरतम है। उसी सुन्दरतम स्वरूप के लिए कवि का प्राण विकल हैं-

“फिर विकल हैं प्राण मेरे
तोड़ दो यह क्षितिज में भी देख उस ओर क्या है?
जा रहे जिस पथ से युग कल्प उसका छोर क्या है?
क्यों मुझे प्राचीर बन कर
आज मेरे श्वास घेरे? “

छायावादी काव्य में भाषा की जो विशेषताएँ हैं वे सभी महादेवी जी की कविता में दृष्टिगत होती हैं। उनकी भाषा अत्यन्त मधुर, परिष्कृत एवं कोमल रूप में व्यक्त की गई है।

सूक्ष्म भावभूमि – छायावादी गीतों के मूल में महादेवी के हृदय की सूक्ष्म भाषा झलकती है, जिनमें बुद्धि तथा चित्त का अटूट सामंजस्य है, जिसका जन्म चिन्तन से हुआ है।

प्रकृति का सम्बन्ध- छायावादी कवियों ने प्रकृति से अपना गहरा सम्बन्ध स्थापित किया है। जब भौतिक जगत से निराशा के बादल उनके हृदय में उत्पन्न हुए तब उन्होंने प्रकृति से सम्बन्ध और दृढ़ बना लिया।

महादेवी जी के काव्य में प्रेम तथा सौन्दर्य की अनुभूति का आदर्श स्वरूप सर्वत्र व्याप्त है। उनका प्रेम करुणा के भावों से परिपूर्ण हैं। यही कारण उनके गीतों में सर्वत्र दृष्टिगोचर होता है। सौन्दर्य एवं प्रेम का मूल्य अश्रु की रेखाओं से अंकित है। महादेवी जी अपने सुख में भूलने में वाली नहीं, वे सबके क्रन्दन को पहचानने वाली हैं।

विषाद एवं रहस्यात्मक भावना- विषाद एवं रहस्यात्मक भावना ने महादेवी जी के छायावादी रूप को और भी निखार प्रदान किया है।

अतीन्द्रिय प्रेम का चित्रण- महादेवी जी के छायावादी काव्य की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे अपने सन्देशों के द्वारा अपने प्रिय से मिलना चाहती हैं। काल्पनिक मिलन में ही प्रियतमा की प्रेमानुभूति का बोध हो जाता है, परन्तु सन्देशों के द्वारा दोनों पक्षों का प्रबल प्रेम स्पष्ट हो जाता है।

किस तरह लिख सजग करुणा की कथा सविशेष भेजूं।”

अतः निष्कर्ष रूप से हम कह सकते हैं कि महादेवी जी का छायावादी कवयित्रियों में सर्वप्रमुख स्थान है तथा इसमें कोई सन्देह नहीं कि महादेवी जी छायावाद के प्रवर्तन में योग देने वाली हैं तथा उन्होंने रहस्यवादी गीतों में सभी छायावादी विशेषताओं के विकास को लक्षित किया है और छायावादी सौन्दर्य चेतना को अंचल में तथा अपने रहस्य लोक को अभिनव गरिमा प्रदान करने का यथा सम्भव प्रयास किया है।

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Anjali Yadav

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