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वैयक्तिक विभिन्नता क्या है? इसके विभिन्न स्वरूपों और कारणों का वर्णन कीजिए।
वैयक्तिक विभिन्नता क्या है?
वैयक्तिक विभिन्नता भिन्नता प्रकृति का स्वाभाविक गुण है। पहले भी व्यक्ति इस भिन्नता या भेद को अनुभव करता था तथा इसी भिन्नता के कारण ही उसके कार्य भी सुविधाजनक ढंग से सम्पन्न हो पाते थे किन्तु उसने इसके बारे में कभी विचार या चिन्तन करने का प्रयास नहीं किया। वह अपने दो या अधिक लड़के या लड़कियों को कैसे पहचानता एवं जानता है, इस पर कभी उसने ध्यान नहीं दिया। एक खगोलशास्त्री ने सन् 1816 में सर्वप्रथम यह सिद्ध करने का प्रयास किया कि निरीक्षण करने में व्यक्तिगत भेद होता है। सन् 1869 ई. में फ्रांसिस गाल्टन ने व्यक्तिगत भेद का वैज्ञानिक ढंग से विवेचन किया। इसके बाद ही लोगों का ध्यान इस महत्त्वपूर्ण तथ्य की ओर गया।
स्किनर के अनुसार, “आज व्यक्तिगत भिन्नता के अन्तर्गत मनुष्य के वे सभी पहलु आते हैं जो किसी प्रकार मापे जा सकते हैं। इन सब पहलुओं में, विकास तथा सीखने की गति में अन्तर आनुवंशिकता एवं वातावरण का अन्तर, व्यक्तित्त्व, स्वभाव एवं योग्यता आदि में अन्तर आते हैं। उदाहरण स्वरूप-दो भाइयों में एक पढ़ने में अच्छा होता है तो दूसरा खेल में।
जेम्स ड्रेवर के अनुसार, “मानसिक एवं शारीरिक गुणों के सन्दर्भ में, समूह के औसत से व्यक्तिगत रूप में समूह के सदस्य के गुणों में पायी जाने वाली भिन्नता या विचलन को व्यक्तिगत भेद कहते हैं। “
टायलर के अनुसार, “शरीर के आकार, रूप, कार्य, गति की क्षमताओं, बुद्धि ज्ञान, उपलब्धि, रूचि, अभिवृत्ति एवं व्यक्तित्व के लक्षणों में पायी जाने वाली मापनीय भिन्नता व्यक्तिगत भेद को दर्शाती है। “
व्यक्तिगत भेद के स्वरूप या प्रकार
संसार में कोई भी दो व्यक्ति एक जैसे नहीं होते हैं। इसका अर्थ तो यही है कि व्यक्तिगत भेद उतनी प्रकार के हो सकते हैं जितनी कि व्यक्तियों की संख्या होती हैं। किन्तु इन सभी भिन्नताओं को हम आसानी से जान नहीं सकते हैं। हम केवल उन्हीं भिन्नताओं को जान सकते हैं जिनका किसी भी उपलब्ध तरीके से मापन किया जा सकता है। उन प्रमुख व्यक्तिगत भेदों का, जिनको हम देख, जान एवं माप सकते हैं, विवरण नीचे प्रस्तुत किया जा रहा हैं—
1. शारीरिक भेद- शारीरिक दृष्टि से व्यक्तियों में, रंग, रूप, ऊंचाई, भार, बनावट, यौन-भेद, एवं शारीरिक परिपक्वता आदि में अन्तर होता है। इस अन्तर को साधारण रूप से देखकर भी जाना जा सकता है।
2. मानसिक भेद- कुछ व्यक्ति बहुत प्रतिभाशाली होते हैं, कुछ बुद्धिमान, कुछ सामान्य बुद्धि वाले तथा कुछ मन्दबुद्धि एवं मूर्ख होते हैं। इसके साथ ही एक ही व्यक्ति में भी विभिन्न अवस्थाओं में अलग-अलग मानसिक योग्यता पायी जाती है। इनकी जांच बुद्धि परीक्षाओं के द्वारा की जाती है। इसी मानसिक भेद के कारण ही एक ही कक्षा में एक ही पाठ्यक्रम को उसी अध्यापक द्वारा पढ़ाये जाने पर भी विभिन्न बालकों की उपलब्धियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं।
3. संवेगात्मक भेद- संवेगात्मक भिन्नता के कारण कुछ व्यक्ति उदार, विनम्र तथा कुछ कठोर एवं कर्कश स्वभाव वाले होते हैं। कुछ सदैव प्रसन्नचित तथा कुछ हमेशा उदास एवं शान्त रहते हैं।
4. रूचि सम्बन्धी भेद- सभी व्यक्तियों की रूचियाँ एक जैसी नहीं होती हैं। कुछ पढ़ने-लिखने में रूचि रखते हैं तो कुछ खेलने में कुछ संगीत में रूचि रखते हैं तो कुछ घूमने-फिरने में आनन्द आता है। इस रूचि सम्बन्धी भेद के कारण उनके स्वभाव एवं व्यक्तित्व में भी अन्तर आ जाता है।
5. वैचारिक भेद- “मुडे मुंडे म तमिन्नः’ अर्थात् जितने व्यक्ति उतने विचार, यह उक्ति बहुत पुरानी है। किसी भी मुद्दे जैसे शैक्षिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं नैतिक आदि पर व्यक्तियों के विचारों में भिन्नता होती है। यह व्यक्तियों के आयु, लिंग, वंशानुक्रम एवं वातावरण की भिन्नता के कारण होता है।
6. सीखने एवं करने में भेद- कुछ व्यक्ति किसी कार्य को जल्दी सीख जाते हैं तथा कुछ बहुत अधिक प्रयास करने के बाद सीखते हैं। साथ ही कोई व्यक्ति किसी कार्य को कुशलता एवं सुचारू रूप से कर लेता है तो दूसरे व्यक्ति को ऐसा करने में कठिनाई होती हैं अर्थात् उनकी गत्यात्मक योग्यताओं में अन्तर होता है।
7. चारित्रिक एवं अन्य विशिष्ट योग्यताओं में भेद- पारिवारिक संस्कार, शिक्षा, संगीत एवं मानसिक विकास के माध्यम से व्यक्ति के चरित्र का निर्माण होता है। चूंकि व्यक्ति के इन आधारों में अन्तर होता है, अतः उनके चरित्र में भी भेद होता है। इसके अतिरिक्त व्यक्तियों में अलग-अलग विशिष्ट योग्यताएँ मिलती हैं। जैसे कोई अच्छा कारीगर होता है तो कोई अच्छा डाक्टर, अच्छा अध्यापक या व्यवसायी आदि।
8. व्यक्तित्त्व भेद – विभिन्न लक्षणों के आधार पर व्यक्तितव के भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। इनमें प्रमुख हैं अन्तर्मुखी, बहिर्मुखी, सामान्य, एवं असाधारण व्यक्तित्व । अतः व्यक्तित्त्व की भिन्नता के कारण व्यक्तिगत भेद होता है। हम प्रायः व्यक्ति की योग्यताओं से नहीं बल्कि उसके व्यक्तित्त्व से अधिक प्रभावित होते हैं ।
वैयक्तिक विभिन्नता के कारण
मानव समाज में अनेक रूपों में व्यक्तिगत भिन्नता पायी जाती है। व्यक्तिगत भेद के अनेक प्रकार होने के साथ-साथ इसके अनेक कारण भी हैं। यहाँ पर कुछ प्रमुख कारणों का विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है-
1. वंशानुक्रम – व्यक्ति में अन्तर्निहित अधिकांश विशेषताएँ या गुण-धर्म जैसे रंग रूप, कद, शारीरिक गठन, बुद्धि एवं अभिरूचि आदि अपने पूर्वजों माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी आदि से प्राप्त होते हैं। ये विशेषताएँ जन्मजात होती हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार व्यक्तिगत भेद का प्रमुख कारण वंशानुक्रम और उसका प्रभाव होता है। दो व्यक्तियों की आनुवंशिकता या वंशानुक्रम में जितनी निकटता होती है उनके जन्मजात गुणों एवं क्षमताओं में उतनी ही समानता होती है। वंशानुक्रम के सिद्धान्त के कारण ही प्रायः यह देखने में आता है कि जैसे माता-पिता होते हैं, वैसा ही उनकी सन्तान होती है। किन्तु ऐसा होना आवश्यक नहीं होता है क्योंकि शिशु के निर्माण की प्रारम्भिक प्रक्रिया अर्थात् गर्भाधान के समय माता एवं पिता के जो गुण संयोगवश मिल जाते हैं वैसा ही व्यक्ति बनता है। चूंकि गर्भाधान के समय माता-पिता से प्राप्त वंशसूत्रों एवं पित्रैकों (हमदमे) का संयोग विभिन्न तरीकों से हो सकता है तथा होता है, अतः इसके कारण व्यक्ति-व्यक्ति में भेद होना स्वाभाविक होता हैं।
2. वातावरण– व्यक्ति वंशानुक्रम और वातावरण की देन होता है। वंशानुक्रम को निकाल देने पर मनुष्य का जो कुछ भी कलेवर शेष रहता है, वह सब वातावरण है। वातावरण मुख्यतः दो प्रकार का होता है प्राकृतिक और सामाजिक। इन्हीं के बीच व्यक्ति का पूरा है विकास होता है। वंशानुक्रम व्यक्ति को किसी दिशा में विकसित होने के लिए अपेक्षित क्षमता प्रदान करता है तथा वातावरण उस क्षमता को विकसित होने लिए अवसर एवं सुविधाएं प्रदान करता है। अर्थात् व्यक्ति की प्राकृतिक एवं सामाजिक दशाएं व्यक्तिगत भेद उत्पन्न करती हैं। वंशानुक्रम और वातावरण दोनों व्यक्तिगत भिन्नता के निर्णायक होते हैं। इनके संयुक्त प्रभाव से ही व्यक्ति के स्वभाव, रूचि, योग्यता तथा क्षमता आदि का निर्धारण होता है।
3. बुद्धि एवं आयु- व्यक्तिगत भेद का एक और मुख्य कारण बुद्धि है। यद्यपि इसे जन्मजात् गुण माना जाता है किन्तु इसका समुचित विकास उपयुक्त वातावरण या परिवेश में ही सम्भव होता है। बुद्धि में अन्तर होने के कारण व्यक्तियों में भिन्नता पायी जाती है। आयु के अन्तर के कारण भी व्यक्तियों में असमानता दिखायी पड़ती है।
4. लिंग– लिंग-भेद के कारण बालक बालिकाओं में भिन्नता पायी जाती है। लड़कियों का शारीरिक एवं मानसिक विकास लड़कों की अपेक्षा जल्दी हो जाता है। लड़कियों कोमल स्वभाव की, स्नेहमयी एवं लज्जाशील होती है। जबकि लड़के साहसी, कठोर एवं उग्र स्वभाव के होते हैं।
5. आर्थिक दशा- बालकों के माता-पिता या परिवार की आर्थिक स्थिति का उनके विकास पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। आर्थिक स्थिति खराब होने पर बालक का समुचित शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक एवं सामाजिक विकास नहीं हो पाता है। एक ही माता-पिता के दो बच्चों को अलग-अलग आर्थिक स्थितियों में पालने पर उनमें बहुत अन्तर आ जाता है। अतः आर्थिक स्थिति के कारण भी व्यक्तिगत भेद उत्पन्न होते हैं।
6. शिक्षा व्यवस्था – माता-पिता तथा घर परिवार के बाद बालक के निर्माण में उसको प्राप्त होने वाली शिक्षा, शिक्षकों की कुशलता तथा विद्यालय वातावरण का विशेष महत्त्व होता है। एक विद्यालय दूसरे विद्यालय से शैक्षिक स्तर, अनुशासन, सुविधाओं आदि में भिन्न होता है। इसका बालकों के व्यक्तित्व के विकास, चरित्र निर्माण एवं आदतों के विकास पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इसी बात को ध्यान में रखकर अभिभावक अपने बच्चों के लिए उपयुक्त विद्यालय का चयन करते हैं। अतः शिक्षा की अलग-अलग व्यवस्था होने के कारण भी व्यक्तिगत भेद उत्पन्न होता है।
7. जाति, प्रजाति एवं राष्ट्रीयता- चूंकि वंशानुक्रम तथा वातावरण की भिन्नता के कारण ही मुख्य रूप से व्यक्तिगत भेद उत्पन्न होता हैं। इस कारण जाति, प्रजाति एवं राष्ट्रीयता का भी व्यक्तियों की भिन्नता पर प्रभाव पड़ता हैं। एक जाति एवं प्रजाति का व्यक्ति रूप, रंग, एवं बुद्धि में दूसरी जाति के व्यक्ति से भिन्न होता है। इसी प्रकार इंग्लैण्ड का व्यक्ति अफ्रीका के व्यक्ति के रूप, रंग, कद एवं बुद्धि में बिल्कुल अलग होता है।
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