प्रत्यय ज्ञान का अर्थ, स्वरूप तथा विशेषताएँ बताइए। प्रत्ययों का निर्माण किस प्रकार किया जाता है?
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प्रत्यय-ज्ञान का अर्थ व स्वरूप (Meaning & Nature of Conception)
बालक, कुत्ते को पहली बार देखता है। कुत्ते के चार टाँगे हैं, दो आँखें हैं, एक पूँछ है, सफेद रंग है। जो देखकर बालक को एक विशेष कुत्ते का ज्ञान जाता है—विशेष इसलिए क्योंकि उसे केवल एक विशेष या खास कुत्ते का ही मान है, आम कुत्तों का ज्ञान उसे अभी नहीं हुआ है।
कुछ समय बाद बालक उसी कुत्ते को फिर देखता है। उस अवसर पर कुत्ते का विशेष ज्ञान उसे यह जानने में सहायता देता है कि उसने उसे पहले कभी देखा है। कुत्ते को न देखने पर भी उसे उसका स्मरण रहता है।
बालक उस कुत्ते को अनेक बार देखता है। वह और भी अनेक कुत्तों को देखता है। इस प्रकार, उस कुत्ते का सामान्य ज्ञान प्राप्त हो जाता है। उसके मन में कुत्ते से सम्बन्धित एक विचार, प्रतिमा या प्रतिमान (Pattern) का निर्माण हो जाता है। इसी विचार, प्रतिमा, प्रतिमान या सामान्य ज्ञान को “प्रत्यय” (Concept) कहते हैं। धीरे-धीरे बालक कुत्ता, बिल्ली, कुर्सी, मेज, वृक्ष आदि सैकड़ों प्रत्ययों का निर्माण कर लेता है। प्रत्यय-निर्माण की इसी मानसिक क्रिया को ‘प्रत्यय-ज्ञान’ (Conception) कहते हैं।
बालकों के ‘प्रत्ययों’ के आधार उनके पूर्व-अनुभव, पूर्व-संवेदनाएँ और पूर्व-प्रत्यक्षीकरण होते हैं। इसलिए, इनको ज्ञान-प्राप्ति की तीसरी सीढ़ी और पिछले अनुभवों से सम्बन्धित माना जाता है।
‘प्रत्यय’ तथा ‘प्रत्यय-ज्ञान’ क्या है ? इनको अधिक स्पष्ट करने के लिए नीचे कुछ लेखकों के विचारों को उद्धृत किया जा रहा है-
1. रॉस (Ross) के अनुसार- “प्रत्यय, क्रियाशील ज्ञानात्मक मनोवृत्ति (Active Cognitive Disposition) है। ‘प्रत्यय’ देखी गई वस्तु का मन में नमूना या प्रतिमान (Pattern in mind) है।”
2. डगलस व हॉलैंड- “प्रत्यय-ज्ञान, मस्तिष्क के विचार के निर्माण का उल्लेख करता है।” “Conception refers to the formation of an idea in the mind.” – Douglas & Holland
3. बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वील्ड (Boring, Langfield & Weld) के अनुसार- “प्रत्यय किसी देखी हुई वस्तु की मानसिक प्रतिमा (Visual Image) है।”
4. वुडवर्थ- “प्रत्यय वे विचार हैं, जो वस्तुओं, घटनाओं, गुणों आदि का उल्लेख करते हैं।” “Concepts are ideas which refer to objects, events, qualities, etc.” – Woodworth
प्रत्यय की विशेषताएँ (Characteristics of Concepts).
प्रत्यय या सम्बोध की विशेषताएँ इस प्रकार हैं। इन विशेषताओं में सामान्यीकरण मुख्य रूप से पाया जाता है-
1. रॉस (Ross) के अनुसार- “प्रत्यय का सम्बन्ध हमारे विचारों से होता है, चाहे वे वास्तविक हों या काल्पनिक। “
2. क्रो एवं को (Crow & Crow) के अनुसार- “प्रत्यय किसी वस्तु का सामान्य अर्थ होता है, जिसे शब्द या शब्द-समूह द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। “
3. बोरिंग लैंगफील्ड एवं वील्ड (Boring, Langfield & Weld) के अनुसार- प्रत्यय किसी सामान्य वर्ग को व्यक्त करने वाला सामान्य विचार है।” (General ideas standing for a general class)
4. प्रत्यय एक वर्ग की वस्तुओं के सामान्य गुणों और विशेषताओं का सामान्य ज्ञान प्रदान करता है।
5. हरलॉक (Hurlock) के अनुसार- “प्रत्यय में जटिलता होती है, जिसमें बालक के ज्ञान और अनुभवों के अनुसार परिवर्तन होता रहता है।”
6. भाटिया (Bhatia) के अनुसार- प्रत्यय वस्तुओं, गुणों और सम्बन्धों के बारे में हो सकते हैं; जैसे—(1) वस्तु (Objects) – घोड़ा, मेज, टोपी; (ii) गुण (Qualities) – लाली, स्वाद, ईमानदारी, समय-तत्परता; (iii) सम्बन्ध (Relations) -छोटा, बड़ा, ऊँचा ।
7. एक वस्तु के सम्बन्ध में विभिन्न व्यक्तियों के विभिन्न प्रत्यय हो सकते हैं। उदाहरणार्थ, दीवार पर बनी हुई किसी आकृति को अशिक्षित व्यक्ति साधारण नमूना, कलाकार कला की वस्तु और दार्शनिक किसी सार्वभौमिक सत्य का प्रतीक समझ सकता है। इस प्रकार, एक ही वस्तु सामान्य प्रत्यय, कलात्मक प्रत्यय और दार्शनिक प्रत्यय का रूप धारण कर सकती है।
8. प्रत्यय का आधार अनुभव होता है। जैसे-जैसे बालक के अनुभवों में वृद्धि होती जाती है, वैसे-वैसे उसके प्रत्ययों की संख्या बढ़ती जाती है।
9. प्रत्यय प्रारम्भ में अस्पष्ट और अनिश्चित होते हैं। ज्ञान, अनुभव और समय की गति के साथ-साथ वे स्पष्ट और निश्चित रूप धारण करते चले जाते हैं।
10. प्रत्यय का आधार हमारा विचार होता है, अतः जिस वस्तु के सम्बन्ध में हमारा जैसा विचार होता है, वैसे ही प्रत्यय का हम निर्माण करते हैं “जाकी रही भावना जैसी।”
प्रत्यय-निर्माण (Concept-Formation)
प्रत्यय का निर्माण करने में बालक को पाँच स्तरों से गुजरना पड़ता है; यथा-
1. तुलना (Comparison) – निरीक्षण द्वारा बालक अपने मन में कुत्ते के दो प्रत्ययों का निर्माण कर लेता है एक सफेद और एक काला। उसके बाद वह उन दोनों प्रत्ययों की तुलना करता है। उसने दो कुत्ते देखे हैं। दोनों के रंग भिन्न हैं। इस भिन्नता के होते हुए भी वह उनमें समानता पाता है।
2. सामान्यीकरण (Generalisation) – समान गुणों का संग्रह करने के कारण बालक के लिए काले, लाल, सफेद आदि रंगों के कुत्तों में कोई अन्तर नहीं रह जाता है। अतः उसका कुत्ते का प्रत्यय (प्रतिमा) स्पष्ट रूप धारण कर लेता है। अब वह किसी भी कुत्ते को कुत्ता कहता है। इस प्रकार, उसे कुत्ता-जाति का ज्ञान हो जाता है।
3. निरीक्षण (Observation) – बालक बोलना सीखने से पहले ही प्रत्ययों का निर्माण करने लगता है। वह प्रथम बार अनेक वस्तुएँ देखता है और उनके प्रत्ययों या मानसिक प्रतिमाओं का निर्माण करता है। उदाहरणार्थ, वह सफेद रंग का कुत्ता देखता है। फलस्वरूप, उसे उसके प्रत्यय का ज्ञान हो जाता है। दूसरे शब्दों में, वह कुत्ते का निरीक्षण करके उसके प्रत्यय का निर्माण करता है। कुछ समय के बाद वह काले रंग का कुत्ता देखता है। उसका निरीक्षण करके वह उसके प्रत्यय का भी निर्माण कर लेता है।
4. परिभाषा निर्माण (Definition Formation) – बालक उपर्युक्त चार स्तरों से गुजरने के बाद कुत्ते के प्रत्यय का निर्माण कर लेता है। यह प्रत्यय उसे कुत्ते का सामान्य ज्ञान प्रदान करता है। हम उसे यह ज्ञान केवल वर्णन या परिभाषा के द्वारा प्रदान कर सकते हैं। जब हम उसके सामने कुत्ते का वर्णन करते हैं, तब वह किसी विशेष कुत्ते के बारे में न सोचकर सामान्य रूप से कुत्ते के बारे में सोचता है। यही वास्तविक प्रत्यय है, जिसका उसके मन में निर्माण हो गया है।
5. पृथक्करण (Abstraction) – बालक दोनों कुत्तों की भिन्नता और समानता की बातों को पृथक् करता है। भिन्नता केवल रंग के कारण है। समानता अनेक बातों के कारण है। वह इन समानताओं या समान गुणों को भिन्नता से अलग करके जोड़ देता है।
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