प्राथमिक स्तर तथा निम्न माध्यमिक स्तर पर हिन्दी शिक्षण के क्या उद्देश्य हैं ?
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प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा-शिक्षण के उद्देश्य
पहली कक्षा में जब बालक प्रवेश लेता है तो उसमें मौखिक रूप से बोलचाल की सामर्थ्य होती है और भाषा का प्रयोग करना वह कुछ-कुछ जानता है। इस स्तर पर निम्नलिखित उद्देश्य महत्वपूर्ण हैं-
- उसके विचारों का क्षेत्र धीरे-धीरे विकसित करना।
- विचारों में स्पष्टता एवं तर्कसंगतता लाना।
- वाचन को शुद्ध एवं प्रभावोत्पादक बनाना।
- सुलेख, अनुलेख एवं श्रुतिलेख का अभ्यास कराना।
- कविताका सस्वर एवं उचित लय के साथ पाठ करने की क्षमता उत्पन्न करना।
- पढ़ने की आदत का विकास करना, पढ़ने में गति एवं शुद्धता लाना तथा पढ़कर लेखक के भाव-ग्रहण करने की योग्यता का विकास करना।
- छात्र के उच्चारण को शुद्ध बनाना।
- उसके शब्दकोश को क्रमशः विकसित करना।
- वाचन में गति का विकास करना।
- लिपि का सही ज्ञान एवं अभ्यास प्रदान करना।
- अभिव्यक्ति की शक्ति को विकसित करना।
- उन्हें पढ़े हुए वृत्तान्त का नाटकीकरण करने की ओर उन्मुख करना।
प्राथमिक स्तर के अन्त तक भाषा अधिकार की सीमा
- भाषा की सभी ध्वनियों और ध्वनि-गुच्छों का समुचित उच्चारण ।
- वाक्य-रचना का अभ्यास।
- स्तरोपयुक्त शब्दावली से निर्मित वाक्यों का बिना हिचक, शुद्धतापूर्वक अभिप्रायानुसार प्रभावोत्पादक रूप में उच्चारण एवं वाचन तथा शान्ति के साथ मौन वाचन
- वाक्यों को छोटे-छोटे अनुच्छेदों के रूप में संगठित करने की प्रविधि का अभ्यास।
- सुलेख।
- पूर्ण विराम, विराम प्रश्नवाचक, आश्चर्यादिबोधक तथा उद्धरण-सूचक चिन्हों का प्रयोग।
- अध्येय एवं स्वाध्येय दोनों प्रकार की पुस्तकों में आये हुए शब्दों का अर्थ एवं वर्तनी-सहित ज्ञान |
- माता-पिता, भाई-बहन, अध्यापक एवं प्रधानाध्यापक के प्रति बरते जाने वाले भाषायी शिष्टाचार का ज्ञान।
- कहानी कहने वस्तु अथवा चित्र का वर्णन करने, स्तरोपयुक्त कविताओं का पाठ करने तथा छोटे-छोटे संवादों में भाग लेने की योग्यता ।
- छोटी-छोटी कहानियों, घरेलू पत्रों, विद्यालय सम्बन्धी आवेदन पत्रों तथा सरल वर्णनों को लिखने की योग्यता।
निम्न माध्यमिक स्तर पर मातृभाषा-शिक्षण के उद्देश्य
जब बालक प्राथमिक स्तर से माध्यमिक पाठशाला में पहुँचता है तो वह भाषा पर कुछ सीमा तक अधिकार प्राप्त कर लेता है और पठन, लेखन, श्रवण एवं मौखिक अभिव्यक्ति में कुछ-कुछ समर्थ हो जाता है। इस स्तर पर उन सभी उद्देश्यों का ध्यान रखना होगा, जिनकी चर्चा ऊपर प्राथमिक स्तर के अन्तर्गत की गई है। उन बारह उद्देश्यों के अतिरिक्त अपांकित उद्देश्यों को भी इस स्तर पर ध्यान रखना चाहिए-
- उनमें संवाद तथा अभिनय की योग्यता को विकसित करना।
- निबन्ध, पत्र, संवाद, सारांश आदि में लेखन की योग्यता प्रदान करना।
- उनमें स्वाध्याय की आदत का विकास करना।
- छात्रों में सौन्दर्यानुभूति का विकास करते हुए रस-पाठों में अधिक रुचि लेने के लिए तैयार करना।
- उन्हें व्याकरण उच्च ज्ञान प्रदान करना।
- लेखन के मूढ़ विचारों को समझने की योग्यता प्रदान करना।
- उन्हें द्रुत रूप से सस्वर तथा मौन पठन करने की प्रेरणा प्रदान करना, जिससे कि वे सत्साहित्य के सम्पर्क में आकर अपने चरित्र का निर्माण कर सके।
उच्चतर माध्यमिक स्तर पर मातृभाषा शिक्षण के उद्देश्य
- मौखिक और लिखित अभिव्यक्ति की कुशलताओं का विकास करना।
- मौखिक और लिखित अभिव्यक्ति का विभिन्न विधाओं और शैलियों का ज्ञान कराना और उनके प्रयोग की योग्यता का विकास करना।
- हिन्दी भाषा और उसके साहित्य के इतिहास का संक्षिप्त परिचय देना।
- छात्रों की सौन्दर्यानुभूति और सृजनशीलता का विकास करना।
- छात्रों को भावी व्यावसायिक जीवन के लिए तैयार करना ताकि वे अध्यापन, कृषि, वाणिज्य तथा दफ्तरी कार्य आदि सफलतापूर्वक कर सकें।
- भारतीय संस्कृति का परिचय कराना और छात्रों में सांस्कृतिक चेतना जगाना ।
- पाठ्य पुस्तकों के अतिरिक्त साहित्य पढ़कर स्वयं ज्ञानार्जन और मनोरंजन करने में समर्थ बनाना।
- मौखिक और लिखित भाषा के माध्यम से बोध ग्रहण की क्षमताओं का विकास करना।
- मातृभाषा का विश्लेषण करने में तथा उसके शुद्ध और प्रभावशाली प्रयोग में समर्थ बनाना।
- मातृभाषा के प्राचीन तथा नवीन साहित्य में प्रवेश कराना तथा प्रमुख कवियों, लेखकों व काव्य-धाराओं का संक्षिप्त परिचय कराना ।
- काव्य के विभिन्न तत्त्वों का सामान्य परिचय कराना।
- चिन्तन की योग्यता का विकास करना। छात्रों को अपने वैयक्तिक जीवन, मानसिक, बौद्धिक व सामाजिक समस्याओं को समझने और उनका हल खोजने में समर्थ बनाना। इसी प्रकार अपने समाज और देश की समस्याओं को समझने, उन पर विचार करने तथा उनके सम्बन्ध में अपने विचारों को प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त करने में समर्थ बनाना।
- विश्वविद्यालय स्तर पर मातृभाषा और उसके माध्यम से अन्य विषयों की शिक्षा प्राप्त करने के लिए तैयार करना।
- छात्रों के चरित्र का निर्माण करना।
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