उत्तर-व्यवहारवाद से आप क्या समझते हैं? उत्तर-व्यवहारवाद क्या परम्परागत है ?
Post Positivism – सितम्बर, 1969 में न्यूनायर्क में होने वाली ‘अमेरिकन पॉलिटिकल साइन्स एसोसियेशन’ की 65वीं बैठक में डेविड ईस्टन ने जो स्वयं व्यवहारवादी क्रांति के प्रमुख प्रतिपादकों में से थे। अपने अध्यक्षीय भाषण में व्यवहारवादी स्थिति पर एक शक्तिशाली आक्रमण किया। डेविड ईस्टन ने कहा, “व्यवहारवादी क्रांति से हम अपने विश्लेषण को सार्थकता नहीं दे सकते, अतः हमें उत्तर व्यवहारवादी बनना होगा।”
उत्तर–व्यवहारवादी यह मानते हैं कि व्यवहारवादियों द्वारा नगण्य और प्रायः निरर्थक शोध पर बहुत अधिक समय खर्च कर दिया गया था। जबकि वे वैचारिक संरचनाओं, प्रतिमानों, सिद्धान्तों और अधिसिद्धान्तों के निर्माण में लगे हुए थे। उनकी अपनी पाश्चात्य दुनिया को तीव्र सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संकटों का मुकाबलना करना पड़ रहा था और वे स्वयं उनके सम्बन्ध में सर्वथा अनजान थे। आणविक अस्त्रों का आतंक, गृहयुद्ध, तानाशाही शासकों के अभ्युदय की प्रवृत्ति, बढ़ते सामाजिक विभेद इत्यादि ऐसी स्थितियाँ उत्पन्न हो रही थीं जिनके सम्बन्ध में व्यवहारवादी विद्वानों ने कभी सोचा भी नहीं था। उत्तर-व्यवहारवादियों का प्रश्न था कि उस शोध अनुसन्धान की उपयोगिता क्या थी, जिसने समाज और राज व्यवस्था के इन तीव्र रोगों, संकटों एवं समस्याओं के निदान की ओर ध्यान ही नहीं दिया था।
उत्तर-व्यवहारवाद का अर्थ (Meaning of Post-behaviouralism)
उत्तर-व्यवहारवाद, व्यवहारवाद का अलग चरण है। यह एक प्रक्रिया है-सुधार की गत्यात्मकता की। इसका जन्म व्यवहारवादी रूढ़िवादिता, जड़ता और दिशाहीनता के कारण हुआ। व्यवहारवादी को राजनीतिक विश्लेषण के क्षेत्र में तथाकथित वैज्ञानिकता का एक निश्चित स्वर को प्राप्त हो गया, लेकिन उसके निष्कर्षों में प्रासंगिकता (Relevance) एक वैध शाश्वतता का अभाव बना रहा। उत्तर-व्यवहारवादी राजनीतिक विश्लेषण में, “मूल्यों को समाविष्ट कर राजनीतिक अध्ययन को औचित्यपूर्ण एवं शास्वतता व प्रासंगिकता प्रदान करने के समर्थक हैं। उत्तर-व्यवहारवाद अपने विश्लेषण में वैज्ञानिकता के तत्व को शिथिल करना नहीं चाहता बल्कि वह वैज्ञानिकता के परिप्रेक्ष्य को ज्यादा विस्तृत करना चाहता है। इस अर्थ में उत्तर-व्यवहार को एक प्रकार की वैचारिक क्रांति कहा जा सकता है, क्योंकि यह राजनीतिक प्रक्रिया के अध्ययन के नवीन समन्वयात्मक दृष्टिकोण को प्रस्तुत करता है, जिसमें तथ्य (Facts) तथा मूल्य (Values) दोनों का विवेक सम्मत समावेश किया गया है।”
उत्तर-व्यवहारवाद के समर्थक विद्वानों का विचार है कि शोध किसी भी पद्धति से क्यों न किया गया हो, उसे प्रासंगितकता की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए। इस सिद्धान्त को डेविड ईस्टन का प्रासंगिकता का सिद्धान्त (Credo of Relevance) अथवा प्रासंगिता धर्म कहता है।
प्रासंगिकता का अभाव वाली व्यवहारवादी शोध तथा परम्परावादी शोध की डेविड ईस्टन ने आलोचना की है।
डेविड ईस्टन के अनुसार, “उत्तर-व्यवहारवाद एक वास्तविक क्रांति है, न कि एक प्रतिक्रिया, एक विकास का चरण है न कि यथास्थिति को बनाए रखने का प्रयास, एक सुधार है नकि एक सुधार विरोधी कदम।”
उत्तर-व्यवहारवादियों के दो नारे हैं-
(1) प्रासंगिकता (Relevance), (2) कर्म या क्रियानिष्ठता (Action). यह शोध समाज की आवश्यकता के सन्दर्भ में प्रासंगिकता पर जोर देते हुए राजनीतिशस्त्रियों की मूल्य निरपेक्ष तटस्था से निकाल कर उन्हें मानव मूल्यों की रक्षार्थ कर्म करने के लिए प्रेरित करता है। अन्त में डेविड ईस्टन के शब्दों में- “उत्तर व्यवहारवाद भविष्य की ओर उन्मुख है और राजनीतिक विज्ञान को नयी दिशाओं की ओर मोड़ने और उसके उत्तराधिकार को अस्वीकार करने के स्थान पर उसमें और भी बहुत कुछ जोड़ने में, प्रयत्नशील है।”
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