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नागरिकता प्राप्त करने के क्या माध्यम होते हैं? What are the means of obtaining citizenship?

नागरिकता प्राप्त करने के क्या माध्यम होते हैं? What are the means of obtaining citizenship?
नागरिकता प्राप्त करने के क्या माध्यम होते हैं? What are the means of obtaining citizenship?

नागरिकता प्राप्त करने के क्या माध्यम होते हैं? वर्णन करो।

यहाँ यह प्रश्न बरबस उठता है कि नागरिकता की प्राप्ति क्यों कर होती हैं? नागरिकता की प्राप्ति के लिये विभिन्न सिद्धान्त प्रचलित हैं। विभिन्न देशों में नागरिकता की प्राप्ति के लिए विभिन्न प्रकार की प्रक्रिया को अपनाया गया है। उसके हेतु कुछ विशिष्ट नियम रखे गये हैं। फ्रांस और इटली में नागरिकता की प्राप्ति के जो नियम हैं वे इंग्लैंड में देखने को नहीं मिलते। इसी प्रकार इंग्लैंड में नागरिकता की प्राप्ति के जो नियम है वे ब्राजील में देखने को नहीं मिलते। विभिन्न देशों में अपनी परिस्थितियों के अनुसार नागरिकता की प्राप्ति के दो आधार बतलाये जा सकते हैं- (अ) जन्म द्वारा नागरिकता की प्राप्ति और (ब) देशीकरण द्वारा नागरिकता की प्राप्ति।

(अ) जन्म द्वारा नागरिकता की प्राप्ति- अधिकतर देशों में जन्म द्वारा नागरिकता की प्रथा को अपनाया जाता है। जन्म द्वारा नागरिकता की प्राप्ति के तीन सिद्धान्त है—(1) रक्त वंशाधिकार का सिद्धान्त, (2) जन्म स्थान का सिद्धान्त और (3) दोहरा या मिश्रित सिद्धान्त।

(1) रक्त वंशाधिकार का सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार माता-पिता जिस देश के नागरिक होते हैं उनका पुत्र भी उसी देश का नागरिक समझा जायगा चाहे वह उस देश की मीमा में उत्पन्न हुआ हो या उससे बाहर। उदाहरण के लिए फ्रांसीसी दम्पत्ति की कोई सन्तान चाहे वह किसी देश में क्यों न उत्पन्न हुई हो, फ्रांसीसी ही कहलायेगी। आधुनिक युग में रक्त वंशाधिकार का सिद्धान्त इटली, आस्ट्रिया और फ्रांस आदि में देखने को मिलता है।

नागरिकता की प्राप्ति का यह सिद्धान्त अधिक लोकप्रिय है। इसका प्रमुख कारण यह है कि यह अत्यन्त स्वाभाविक और तर्कपूर्ण है। इसके द्वारा लोगों की नागरिकता सुरक्षित रहती है। जिस प्रकार माता-पिता की सम्पत्ति बालकों को मिलती है उसी प्रकार नागरिकता भी सन्तानों को प्राप्त होना चाहिये। सिद्धान्त की सार्थकता के कारण ही इसे संसार के अधिकांश देशों में अपनाया जाता है। परन्तु इसके साथ ही इस सिद्धान्त में कुछ दोष भी हैं। इसमें अवैध बच्चों की नागरिकता का ठीक पता नहीं लग पाता। कभी-कभी बच्चों के माता-पिता का पता न होने पर उनकी नागरिकता का पता भी ठीक प्रकार से नहीं चल पाता। जब माता-पिता भिन्न-भिन्न देशों के होते हैं तो यह सिद्ध करना कठिन हो जाता है कि उनकी सन्तान किस देश की नागरिक है। इस सिद्धान्त के गुण-दोषों का मूल्यांकन करते हुए गेटिल ने लिखा है, “इस सिद्धान्त में आसानी से प्रमाणित करने की सुविधा नहीं होती है परन्तु यह सिद्धान्त अधिक सामान्य, प्राकृतिक एवं तर्क-संगत है और ऐसी ही व्यापक रूप से स्वीकार किया गया हैं।”

( 2 ) जन्म स्थान का सिद्धांत- इस सिद्धंत के अनुसार बच्चा उस देश का नागरिक समझा जाता है जिस देश में वह जन्म लेता है। चाहे उसके माता-पिता किसी दूसरे देश के ही नागरिक क्यों न हो? उदाहरण के लिये इंग्लैंड में जन्म लेने वाला प्रत्येक बच्चा इंग्लैंड का ही नागरिक होगा चाहे उसके माता-पिता भारतीय हो अथवा अमेरिकी।

जन्म स्थान का सिद्धांत अत्यन्त सरल है। इसके द्वारा यह आसानी से सिद्ध हो जाता है कि कोई बच्चा किस देश का नागरिक है क्योंकि वह जहाँ उत्पन्न होता है वहीं का नागरिक माना जाता है। इसमें अवैध बच्चों की नागरिकता भी सुरक्षित रहती हैं। परन्तु इस सिद्धांत के कुछ दोष भी हैं यदि कोई दम्पत्ति किसी देश की यात्रा कर रहा हो वहाँ उसके कोई बच्चा उत्पन्न होता है तो इस सिद्धांत के अनुसार दम्पत्ति के न चाहने पर भी वह बच्चा उसी देश का नागरिक समझा जायगा जिस देश में वह उत्पन्न हुआ हों। स्नेहवश प्रत्येक माता-पिता यह चाहेंगे कि उनका बच्चा उसी देश का नागरिक हो, जिस देश के नागरिक वे स्वयं हैं परन्तु उपर्युक्त स्थिति में वह सम्भव नहीं होगा। प्रो. गिलक्राइस्ट ने ठीक ही लिखा है, “इसका मुख्य गुण सरलता है। परन्तु केवल जन्म स्थान से ही नागरिकता निश्चित करना उचित नहीं है। क्योंकि किसी स्थान पर संयोगवश जन्म हो सकता है। माता-पिता के भ्रमण करने के समय भी बच्चा पैदा हो सकता है। स्पष्ट है कि बच्चे को उस राज्य की नागरिकता को स्वीकार करने के लिये विवश करना उचित नहीं हैं, जहाँ उसका जन्म हो गया है।”

( 3 ) दोहरा या मिश्रित सिद्धान्त – यह सिद्धान्त उपर्युक्त दोनों सिद्धान्त का मिश्रित रूप है। इस सिद्धान्त के अनुसार रक्त वंशाधिकार तथा जन्म दोनों के ही आधार पर नागरिकता का निर्णय होता है। अमेरिका और इंग्लैण्ड में यही सिद्धान्त प्रचलित है। इसके अनुसार किसी अंग्रेज दम्पत्ति से भारत में उत्पन्न हुई सन्तान इंग्लैण्ड का नागरिक होगी। साथ ही भारतीय दम्पत्ति से इंग्लैण्ड में उत्पन्न हुई सन्तान भी इंग्लैण्ड की ही नागरिक होगी।

मिश्रित सिद्धान्त अत्यन्त लाभदायक है परन्तु इसके साथ ही इसके कुछ दोष भी है। इसका सबसे बड़ा दोष यह है कि इसके द्वारा कभी-कभी नागरिकता के सम्बन्ध में अधिक वाद-विवाद उत्पन्न हो जाता है। उदाहरण के लिये यदि कोई अमेरिकन स्त्री इंग्लैण्ड में बच्चे को जन्म देती है तो वह बच्चा अमेरिका और इंग्लैण्ड का ही नागरिक होगा और यदि इन दोनों देशों के मध्य युद्ध छिड़ गया तो इस सम्बन्ध में विवाद उत्पन्न हो जायगा कि उसे किस देश का नागरिक स्वीकार किया जाय।

(ब) देशीकरण द्वारा नागरिकता की प्राप्ति- नागरिकता केवल जन्म से ही प्राप्त नहीं होती बल्कि वह देशीकरण द्वारा भी प्राप्त होती है। देशीकरण, नागरिकता की प्राप्ति का कृत्रिम सिद्धान्त है। इसका अर्थ किसी दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त कर लेने से है। प्रो. गार्नर ने देशीकरण के अर्थ को स्पष्ट करते हुये लिखा है, “व्यापक रूप से देशीकरण से तात्पर्य किसी भी विधि से विदेशियों को नागरिकता प्रदान करने से है।” हो जाने पर वह उस देश का नागरिक बन जाता है। यह नीति प्रत्यक्ष देशीकरण कहलाती है। भिन्न-भिन्न देशों में विदेशियों को देशीकरण द्वारा नागरिकता प्रदान करने की भिन्न शर्तें हैं। कुछ देशों में विदेशियों को नागरिकता के समस्त अधिकार नहीं दिये जाते। अमेरिका में एक कानून के द्वारा चीनियों को नागरिकता प्रदान करने पर रोक लगा दी गई है। कुछ यूरोपीय देशों में यहूदियों को नागरिकता नहीं प्रदान की जाती।

( 2 ) निवास-द्वारा- कुछ देशों में यह नियम है कि यदि कोई विदेशी निश्चित समय तक उस देश में रहता है वह वहाँ का नागरिक हो जाता है। उदाहरण के लिये यदि कोई विदेशी भारत में 10 वर्ष तक रहता है और उसका आचरण अच्छा होता है तो वह वहाँ का नागरिक बना लिया जाता है। इंग्लैण्ड, अमेरिका व जापान में वह अवधि 5 वर्ष है। इटली में इसकी अवधि 4 वर्ष, स्वीडन में 3 वर्ष एवं अर्जेन्टाइना और स्विटरजलैण्ड में यह अवधि 2 वर्ष रखी गई है।

( 3 ) विवाह-द्वारा- विवाह द्वारा भी किसी विदेशी को किसी देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। उदाहरण के लिये यदि कोई अमेरिकन स्त्री किसी भारतीय पुरुष से भारत में शादी कर लेती है तो वह भारत की नागरिकता बन जाती है। परन्तु जापान से इसका उल्टा है। वहाँ यदि कोई विदेशी किसी जापानी स्त्री से विवाह कर लेता है तो वह जापान का नागरिक बन जाता है।

( 4 ) भूमि क्रय द्वारा- कुछ राज्यों में यदि कोई व्यक्ति भूमि खरीद लेता है तो वह वहाँ का नागरिक बन जाता है। पीरू और मैक्सिको आदि में यदि कोई विदेशी भूमि क्रय कर लेता है। तो वह वहाँ का नागरिक बन जाता है।

(5) देश विजय द्वारा– पराजित देश के नागरिक स्वतः विजयी देश के नागरिक बन जाते हैं। उदाहरण के लिये जब अंग्रेजी ने भारत को अपने अधीन कर लिया तो उस समय यहाँ के निवासी स्वमेव ब्रिटिश साम्राज्य के नागरिक बन गये थे। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारतीयों ने स्वदेश की नागरिकता प्राप्त कर ली है।

( 6 ) विदेशों में सरकारी नौकरी द्वारा- यदि किसी देश का नागरिक किसी दूसरे देश में नौकरी प्राप्त कर लेता है तो वहाँ का नागरिक बन जाता है।

(7) वैधता या यथार्थता द्वारा- यदि किसी देश का नागरिक किसी विदेशी स्त्री से अनुचित सम्बन्ध स्थापित करके किसी बच्चे को जन्म देता है और बाद में वे विवाह कर लेते हैं तो उस स्थिति में बच्चे को उस देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है जिस देश का नागरिक वह पुरुष होता है।

( 8 ) गोद लेने पर – यदि किसी देश का नागरिक किसी विदेशी बच्चे को गोद ले लेता है तो बच्चा उस देश का नागरिक बन जाता है जिस देश का नागरिक उसे गोद लेता है।

( 9 ) देशांग-विसर्जन द्वारा- यदि किसी राज्य का कोई भाग किसी अन्य राज्य को दे दिया जाता है तो उस भाग में रहने वाले नागरिक अपने पुराने राज्य की नागरिकता खो देते हैं और नये देश के नागरिक बन जाते हैं।

( 10 ) युद्ध में पराजय-द्वारा- युद्ध में पराजित होने पर यदि विजयी राज्य चाहे तो विजित राज्य के निवासियों को विजयी राज्य की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।

( 11 ) सम्पत्ति खरीदने पर- यह नियम सभी राज्यों में नहीं है परन्तु मैक्सिको तथा पेरू आदि कुछ ऐसे भी राज्य है जहाँ यदि किसी ने अचल सम्पत्ति खरीद ली है तो उसे नागरिकता वैधानिक रूप से प्रदान कर दी जाती है।

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Anjali Yadav

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