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कहानीकार अमरकांत का जीवन एवं साहित्यिक योगदान

कहानीकार अमरकांत का जीवन एवं साहित्यिक योगदान
कहानीकार अमरकांत का जीवन एवं साहित्यिक योगदान
कहानीकार अमरकांत का जीवन एवं साहित्यिक योगदान की समीक्षा कीजिए। 

जीवन परिचय – कहानीकार अमरकान्त जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगरा कस्बे के समीप भगमलपुर गाँव में हुआ था। अमरकान्त जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बी.ए. किया। इसके बाद उन्होंने साहित्यिक सृजन का मार्ग चुना। बलिया में पढ़ते समय उनका सम्पर्क स्वतंत्रता आन्दोलन के सेनानियों से हुआ। सन् 1942 में वे स्वतंत्रता आन्दोलन से जुड़ गए। शुरुआती दिनों में अमरकान्त तरतम में गजलें और लोकगीत भी गाते थे। उनके साहित्य जीवन का आरम्भ एक पत्रकार के रूप में हुआ। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन किया। वे बहुत अच्छी कहानियाँ लिखने के बावजूद एक अर्से तक हाशिये पर पड़े रहे। उस समय तक कहानी – चर्चा के केन्द्र में मोहन राकेश, कमलेश्वर, राजेन्द्र यादव की त्रयी थी। कहानीकार के रूप में उनकी ख्याति सन् 1955 में ‘डिप्टी कलेक्टरी’ कहानी से हुई।

अमरकांत के स्वभाव के सम्बन्ध में रवीन्द्र कालिया लिखते हैं- “वे अत्यन्त संकोची व्यक्ति हैं। अपना हक माँगने में भी संकोच कर जाते हैं। उनकी प्रारम्भिक पुस्तकें उनके दोस्तों ने ही प्रकाशित की थीं। एक बार बेकारी के दिनों में उन्हें पैसे की सख्त जरूरत थी, पत्नी मरणासन्न पड़ी थीं। ऐसी विषम परिस्थिति में प्रकाशक से ही सहायता की अपेक्षा की जा सकती थी। बच्चे छोटे थे। अमरकान्त ने अत्यन्त संकोच, मजबूरी और असमर्थता में मित्र प्रकाशक से रॉयल्टी के कुछ रुपये माँगे, मगर उन्हें दो टूक जवाब मिल गया, “पैसे नहीं हैं। ‘अमरकान्तजी ने सब्र कर लिया और एक बेसहारा मनुष्य जितनी मुसीबतें झेल सकता था, चुपचप झेल लीं। सन् 1954 में अमरकान्त को हृदय रोग हो गया था। तब से वह एक जबरदस्त अनुशासन में जीने लगे। अपनी लड़खड़ाती हुई जिन्दगी में अनियमितता नहीं आने दी। भरसक कोशिश की, तनाव से मुक्त रहें। जवाहरलाल नेहरू उनके प्रेरणास्रोत रहे हैं। वे मानते थे कि नेहरू जी कई अर्थों में गांधी जी के पूरक थे और पंडित नेहरू के प्रभाव के कारण ही कांग्रेस संगठन प्राचीनता और पुनरुत्थान आदि कई प्रवृत्तियों से बच सका। 17 फरवरी, 2014 को उनका इलाहाबाद में निधन हो गया ।

रचनाएँ- बाल साहित्य – ‘वानर सेना’ ‘खूँटा में दाल है’ ‘सुग्गी चाची का गाँव’, ‘झगरू लाल का फैसला, ‘एक स्त्री का सफर, ‘मँगर,’ ‘बाबू का फैसला, ‘दो हिम्मती बच्चे, नेउर भाई।

उपन्यास – 1. ‘सूखा पत्ता’ 2. ‘काले-उजले दिन’ ‘कंटीली राह के फूल’, 4. इनहीं हथियारों से, 5. लहरें, 6. विदा की रात, 7. आकाश पंक्षी, 8. सुखजीवी, 9. बीच की दीवार, 10. ग्रामसेविका, 11. सुन्नर पांडे की पतोह।

संस्मरण- 1. कुछ यादें, कुछ बातें 2. दोस्ती।

कहानी संग्रह- ‘जिंदगी और जोंक’, ‘देश के लोग’, ‘मौत का नगर, ‘मित्र मिलन तथा अन्य कहानियाँ, ‘कुहासा’, ‘तूफान’, ‘कला प्रेमी’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’, ‘दस प्रतिनिधि कहानियाँ’, ‘एक धनी व्यक्ति का बयान’, ‘सुख और दुःख के साथ’, ‘जांच और बच्चे’, ‘औरत का क्रोध’ ।

साहित्यिक विशेषताएं

उनकी कहानियों में मध्यवर्गीय जीवन की पक्षधरता का चित्रण मिलता है। वे भाषा की सृजनात्मकता के प्रति सचेत थे। उन्होंने काशीनाथ सिंह से कहा था- “बाबू साब, आप लोग साहित्य में किस भाषा का प्रयोग कर रहे हैं? भाषा साहित्य और समाज के प्रति आपका क्या कोई दायित्व नहीं? अगर आप लेखक कहलाए जाना चाहते हैं तो कृपा करके सृजनशील भाषा का ही प्रयोग करें।” अपनी रचनाओं में अमरकान्त व्यंग्य का खूब प्रयोग करते हैं। ‘आत्म कथ्य’ में वे लिखते हैं-“उन दिनों वह मच्छर रोड स्थित ‘मच्छर भवन’ में रहता था। सड़क और मकान का यह नूतन और मौलिक नामकरण उसकी एक बहन की शादी के निमंत्रण पत्र पर छपा था। कह नहीं सकता कि उसका मुख्य उद्देश्य तत्कालीन खुनिसिपैलिटी पर व्यंग्य करना था अथवा रिश्तेदारों को मच्छरदानी के साथ आने का निमंत्रण। उनकी कहानियों में उपमा के भी अनूठे प्रयोग मिलते हैं, जैसे- ‘वह लंगर की तरह कूद पड़ता’, ‘बहस में वह इस तरह भाग लेने लगा, जैसे भादों की अँधेरी रात में कुत्ते भौंकते हैं, उसने कौए की भाँति सिर घुमाकर शंका से दोनों ओर देखा। आकाश एक स्वच्छ नीले तंबू की तरह तना था। लक्ष्मी का मुँह हमेशा एक कुल्हड़ की तरह फूला रहता है।” दिलीप का प्यार फागुन के अंधड़ की तरह बह रहा था’ आदि-आदि।

आलोचना- रचनात्मकता की दृष्टि से अमरकान्त को गोर्की के समकक्ष बताते हुए यशपाल ने लिखा था- “क्या केवल आयु कम होने या हिन्दी में प्रकाशित होने के कारण ही अमरकान्त गोर्की की तुलना कम संगत मान लिए जायें। जब मैंने अमरकान्त को गोर्की कहा था उस समय मेरी स्मृति में गोर्की की कहानी ‘शरद की रात’ थी। उस कहानी में एक साधनहीन व्यक्ति को परिस्थितियाँ और उन्हें पैदा करने वाले कारणों के प्रति जिस परिस्थितियाँ और उन्हें पैदा करने वाले कारणों के प्रति जिस आक्रोश का अनुभव मुझे दिया था, उसके मिलते-जुलते रूप मुझे अमरकान्त की कहानियों में दिखाई दिये।”

पुरस्कार- उनकी रचनाओं के लिए उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उत्तर प्रदेश संस्थान की ओर से भी उन्हें पुरस्कार प्रदान किया गया था।

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Anjali Yadav

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