आधुनिक हिन्दी गद्य की नवीन विधाओं का उल्लेख दीजिए।
हिन्दी गद्य साहित्य का विकास दीर्घकालीन अवधि में हुआ। गद्य की प्रमुख विधाएँ नाटक, एकांकी नाटक, उपन्यास, आंचलिक उपन्यास, कहानी नई कहानी, निबन्ध, आलोचना आदि विधाएँ हैं। इनके अतिरिक्त नवीन विधाओं में गद्यगीत, रेखाचित्र, संस्मरण, इण्टरव्यू, यात्रावृत, आत्मकथा, जीवनी, पत्र, रिपोर्ताज आदि हैं।
हिन्दी संस्मरण- जीवन के किसी एक अंश को प्रकाशित करने का प्रयास संस्मरण कहलाता है। संस्मरण में अतीत संजीव होता है। बीते हुये पलों की अनुभूतियाँ साक्षात अभिव्यक्त होती है। महान् व्यक्तियों के जीवन के विविध पक्षों का साक्षात्कार होता है। संस्मरण में शैलीगत रोचकता, आकर्षण, प्रभावपूर्णता और संवेदनशीलता विद्यमान रहती है। संस्मरण में व्यक्ति की बाह्य वेशभूषा के साथ अन्तःवृत्तियों का उल्लेख भी रहता है। संस्मरण-लेखक अपनी स्मृति एवं पूर्व अनुभव के आधार पर किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा घटना का तथ्यात्मक वर्णन करता है। प्रायः महान् व्यक्तियों के संस्मरण ही लिखे जाने की परम्परा रही है। क्योंकि सामान्य जन उनसे प्रेरणा पाते हैं। परन्तु महादेवी वर्मा आदि कुछ लेखकों में निम्न-वर्ग के निर्धन उपेक्षित व्यक्तियों के सम्बन्ध में भी संस्मरण लिखे हैं। हिन्दी में संस्मरण का जन्म पत्र-पत्रिकाओं के द्वारा हुआ।
हिन्दी जीवनी – साहित्य – किसी महापुरुष या प्रसिद्ध व्यक्ति के जीवन की घटनाओं उसके क्रिया-कलाप आदि का आत्मीयता के साथ व्यवस्थित वर्णन जिस गद्य विधा में किया जाता है, उसे जीवनी कहते हैं। इसमें व्यक्ति के जीवन की छोटी-बड़ी सब बातों का वर्णन करके उसके चरित्र का सर्वांगीण झाँकी प्रस्तुत की जाती है। इसमें इतिहास के तथ्यों की वास्तविकता तथा साहित्य की सरसता होती है। जीवनी लिखना भी एक कला है। हिन्दी में महापुरुषों, महात्माओं, राजनेताओं, कवियों तथा लेखकों की जीवनियाँ लिखने की एक परम्परा रही है। महापुरुषों का जीवन चरित्र सामान्य जन के लिये प्रेरणास्पद होता है। यह विधा कलात्मकता के साथ ही उपयोगिता को भी धारण करती हैं।
संस्मरण एवं रेखाचित्र – “संस्मरण तथा रेखाचित्र में व्यक्त समानता और अव्यक्त अन्तर रहता है। दोनों ही विधाओं में किसी व्यक्ति वस्तु, घटना का मानसिक प्रत्यक्षीकरण है, जिसके लिये वे कुछ विशेष रेखाओं का अंकन करती हैं किन्तु संस्मरण अतीत का ही हो सकता है और रेखचित्र वर्तमान से भी सम्बद्ध रह सकता है।” संस्मरण में हमारी स्मृति अपना क्रियात्मक रूप अभिव्यक्त करती है। उसके लिये निरीक्षण, धारण, अभिज्ञान के साथ-साथ आवेग, संस्कार, संवेदनों का संयोग अवश्य है। मनोवैज्ञानिक रूप से लेखक के मनस्तत्व में समाहित अतीत की घटना का विशेष महत्व है। अतीत की अनुभूति व्यक्तिगत चेतना में एक अविच्छिन्न सत्ता के रूप में विद्यमान रहती है। मोती में प्रच्छन्न आभा की भाँति यह अनुभति स्मृति बनकर प्रकट होती है। संस्मरण में तटस्थता के लिये कम अवकाश रहता है क्योंकि प्रत्येक घटना अतीत के भोक्ता तथा वर्तमान दोनों का अंकन होता है और संस्मरण में केवल अतीत की व्यंजना होती है। संस्मरण में चरित्र की प्रधानता है, रेखाचित्र में चित्र की। संस्मरण में लेखक का आत्मपरक दृष्टिकोण प्रमुख होता है, रेखाचित्र में अधिकतर वस्तुपरक दृष्टिकोण होता है।
हिन्दी आत्मकथा- आत्मकथा में लेखक अपनी जीवन-गाथा को सम्पूर्ण आत्मीयता के साथ व्यवस्थित रूप में लिखता है। अपने जन्म-काल परिवार, शिक्षा-दीक्षा, परिवेश, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, दार्शनिक, प्रेरकतत्व, विकास के विविध आयाम, एकात्मकता, असफलताओं का यथार्थ विवरण, मानवीय सम्बन्धों की स्थापनायें जीवन की विशिष्ट उपलब्धियाँ आदि का समग्र विवरण आत्मकथा में दिया जाता है। जीवनी दूसरे की जीवनगाथा है। पर आत्मकथा स्वयं की जीवनगाथा है। स्वयं के प्रति ईमानदार और निष्ठावान होना दुरुह कार्य है। जीवनी में सामग्री-संचयन तथा प्रस्तुतीकरण दोनों श्रमसाध्य है। परन्तु आत्मकथा में केवल प्रस्तुतीकरण की कठिनाई होती है। स्वयं के प्रति तटस्थता कठिन कार्य है। अपने गुण-दोषों का विवेचन करना, पूर्वाग्रह से मुक्त रहना, प्रायः दुष्कर होता है। आत्मकथा के लेखक को आत्म-निरीक्षण तथा आत्म-परीक्षण में पूर्ण दक्ष होना चाहिए।
श्री बनारसी दास चतुर्वेदी का विचार है कि हिन्दी है कि हिन्दी में पहली आत्मकथा जैनकवि बनारसी दास की ‘अर्द्धकथा’ है। यह पद्यात्मक है। लेखक ने अपने गुण-दोषों का सच्चाई के साथ वर्णन किया है।
हिन्दी आलोचना – हिन्दी आलोचना का आधार संस्कृति साहित्य में उपलब्ध आलोचना है। संस्कृत साहित्य में आलोचना के सिद्धान्तों पर अनेक उत्तम ग्रन्थ प्राप्त होते हैं। इनमें प्रमुख हैं भरतमुनि का नाट्यशास्त्र, दण्डी का काव्यादर्श, भामह का काव्यालंकार, कुंतक का वक्रोक्ति जीतिम् आनन्दवर्द्धन का ध्वन्यालोक, मम्मट का काव्य-प्रकाश, वामन का काव्यालंकार सूत्र एवं विश्वनाश का साहित्य दर्पण। इन ग्रन्थों में वर्णित आलोचना के समस्त सिद्धान्तों को पाँच सम्प्रदायों में विभाजित किया गया है। जिनके नाम इस प्रकार हैं- रस सम्प्रदाय, अलंकार सम्प्रदा, ध्वनि सम्प्रदाय, रीति सम्प्रदाय, वक्रोक्ति सम्प्रदाय। इनके अतिरिक्त एक अन्य सम्प्रदाय का भी उल्लेख मिलताहै- औचित्य सम्प्रदाय । स्पष्ट है भिन्न-भिन्न आचार्यों ने अपने अपने सिद्धान्त को साम्प्रदायिक स्तर पर प्रतिपादित करने का प्रयास किया है।
हिन्दी आलोना पर संस्कृत आलोचना का व्यापक प्रभाव है। रस को काव्य की आत्मा मानते हुये हिन्दी आलोचकों ने रस सिद्धान्त को विशेष प्रश्रय दिया। जब तक हिन्दी आलोचना पर पाश्चात्य आलोचना का प्रभाव नहीं पड़ा तब तक संस्कृत परम्परा का अन्धानुकरण किया जाता रहा। सैद्धान्तिक तथा व्यवहारिक दोनों प्रकार की आलोचना पर संस्कृत आचार्यों का प्रभाव लक्षित होता है। आगे चलकर हिन्दी के आलोचक पाश्चात्य आलोचना-सिद्धान्तों की ओर आकर्षित हुये तथा उनके प्रभावों को ग्रहण किया।
इण्टरव्यू- हिन्दी में एक नवीन विद्या इण्टरव्यू विकसित हुई है। इन्टरव्यू दो प्रकार के हैं। एक यथार्थ इन्टरव्यू अर्थात् जीवित व्यक्तियों से मिलकर इन्टरव्यू-लेखक उनके जीवन और विचारों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करते हैं। हिन्दी में अभी तक ऐसे इन्टरव्यू साहित्यकारों से ही सम्बद्ध रहे है। इनमें पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’ रचित ‘मैं इनसे मिला’ है। कैलाश कल्पित की पुस्तक ‘हिन्दी साहित्य साधिकाएँ’ में इसी प्रकार के इन्टरव्यू हैं।
इन्टरव्यू का दूसरा प्रकार काल्पनिक है। इसमें दिवंगत व्यक्तियों से इन्टरव्यू लेने की कल्पना कर ली जाती है और उनके जीवन, रचना, विचार आदि को प्रस्तुत किया जाता है। इस प्रकार की एक श्रेष्ठ रचना राजेन्द्र यादव रचित ‘चेखब’ एक इन्टरव्यू है। दोनों प्रकार के इन्टरव्यू हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाओं में कभी-कभी प्रकाशित होते रहते हैं।
यात्रावृत – यात्रावृत संस्मरण का ही एक विशिष्ट प्रकार है। घुमक्कड़ी व्यक्ति अपनी यात्राओं के दौरान देखे स्थानों, व्यक्तियों, दृश्यों और अपनी सुखात्मक, दुःखात्मक प्रतिक्रियाओं के विवरण लिखकर छोड़ जाते हैं। हिन्दी के यात्रा साहित्य को सबसे अधिक सम्पन्न बनाने वाले राहुल ‘सांस्कृत्यायन’ है। उनके प्रमुख यात्रावृत- मेरी लद्दाख यात्रा (1926), लंका यात्रावली (1926-28), मेरी योरोप यात्रा (1932), मेरी तिब्बत यात्रा (1934), जापान (1935), ईरान (1935), किन्नर देश में आदि में अनेक यात्रा वृत लिखे। शिवप्रसाद गुप्त, स्वामी प्रणवानन्द, सत्यनारायण, भगवत शरण उपाध्याय, अमृतराय, शिवदान सिंह चौहान, रामवृक्ष बेनीपुरी, अज्ञेय, मोहन राकेश, प्रभाकर द्विवेदी, निर्मल वर्मा, नन्द दुलारे बाजपेयी आदि ने अनेक यात्रा वृत लिखे।
पत्र- आधुनिक काल में महान व्यक्तियों के व्यक्तित्व और उनके कार्यों की सूक्ष्म एवं अन्तरंग खोज की प्रवृत्ति के कारण उनके द्वारा लिखे गए पत्रों का महत्व स्थापित हुआ है और उन व्यक्तियों के पत्रों को प्रकाशित किया जाने लगा है।
IMPORTANT LINK
- सूर के पुष्टिमार्ग का सम्यक् विश्लेषण कीजिए।
- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
- सूर की काव्य कला की विशेषताएँ
- कवि मलिक मुहम्मद जायसी के रहस्यवाद को समझाकर लिखिए।
- सूफी काव्य परम्परा में जायसी का स्थान निर्धारित कीजिए।
- ‘जायसी का वियोग वर्णन हिन्दी साहित्य की एक अनुपम निधि है’
- जायसी की काव्यगत विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- जायसी के पद्मावत में ‘नख शिख’
- तुलसी के प्रबन्ध कौशल | Tulsi’s Management Skills in Hindi
- तुलसी की भक्ति भावना का सप्रमाण परिचय
- तुलसी का काव्य लोकसमन्वय की विराट चेष्टा का प्रतिफलन है।
- तुलसी की काव्य कला की विशेषताएँ
- टैगोर के शिक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त | Tagore’s theory of education in Hindi
- जन शिक्षा, ग्रामीण शिक्षा, स्त्री शिक्षा व धार्मिक शिक्षा पर टैगोर के विचार
- शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त या तत्त्व उनके अनुसार शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्य
- गाँधीजी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन | Evaluation of Gandhiji’s Philosophy of Education in Hindi
- गाँधीजी की बुनियादी शिक्षा व्यवस्था के गुण-दोष
- स्वामी विवेकानंद का शिक्षा में योगदान | स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन
- गाँधीजी के शैक्षिक विचार | Gandhiji’s Educational Thoughts in Hindi
- विवेकानन्द का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान | Contribution of Vivekananda in the field of education in Hindi
- संस्कृति का अर्थ | संस्कृति की विशेषताएँ | शिक्षा और संस्कृति में सम्बन्ध | सभ्यता और संस्कृति में अन्तर
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
- पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
- घनानन्द की आध्यात्मिक चेतना | Ghanananda Spiritual Consciousness in Hindi
- बिहारी ने शृंगार, वैराग्य एवं नीति का वर्णन एक साथ क्यों किया है?
- घनानन्द के संयोग वर्णन का सारगर्भित | The essence of Ghananand coincidence description in Hindi
- बिहारी सतसई की लोकप्रियता | Popularity of Bihari Satsai in Hindi
- बिहारी की नायिकाओं के रूपसौन्दर्य | The beauty of Bihari heroines in Hindi
- बिहारी के दोहे गम्भीर घाव क्यों और कहाँ करते हैं? क्या आप प्रभावित होते हैं?
- बिहारी की बहुज्ञता पर प्रकाश डालिए।
Disclaimer