डायरी से आप क्या समझते हैं? डायरी के स्वरूप तथा विकास का उल्लेख कीजिए।
‘डायरी’ भी गद्य-साहित्य के अनेक नवीन विधाओं की भाँति एक नवीनतम विधा है। जिसके अर्न्तगत प्रतिदिन की घटनाओं अथवा कार्य-व्यापारों का विधिवत् लेखा-जोखा रखा जाता है। अर्थात् डायरी प्रतिदिन के कार्य व्यापारों एवं घटित घटनाओं का एक व्यवस्थित विवरण होता है।
स्वरूप व शाब्दिक अर्थ- ‘डायरी’ शब्द का सम्बन्ध अंग्रेजी भाषा से है, जिसका निर्माण लैटिन भाषा के ‘डायस’ शब्द से हुआ है। लैटिन भाषा का डायस शब्द संस्कृत भाषा के ‘दिवस’ शब्द का समानार्थी है। ‘डायरी’ के लिए हिन्दी भाषा में दैनिकी, दैनन्दिनी, रोजनामचा आदि शब्दों का प्रयोग भी किया गया है, जबकि डायरी शब्द ही विस्तृत रूप से प्रचलित है। ‘डायरी’ को पारिभाषित करते हुए डॉ. रामचन्द्र तिवारी ने लिखा है कि “डायरी स्मृतियों को रेखांकित करने की एक विशिष्ट पद्धति है। जब कहीं किसी गद्य-विधा में एकान्तर क्षणों की स्मृतियों को श्रृंखलाबद्ध करने की आवश्यकता पड़ी, इस विधा का प्रयोग कर लिया गया है। इससे अनुभूति और चिन्तन को घनत्व प्राप्त हो जाता है।”
डॉ. राजेन्द्रप्रसाद श्रीवास्तव के मतानुसार, “समय व स्थान का निर्देश करते हुए काल्पनिक अथवा वास्तविक घटनाओं के प्रति साहित्यकार के संवदेनशील हृदय की मार्मिक प्रतिक्रिया को व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध रूप से अभिव्यक्त करने वाली विशिष्ट गद्य-विधा को डायरी की संज्ञा से संज्ञायित किया जाता है।
डॉ. राधिकाप्रसाद त्रिपाठी के कथनानुसार, “डायरी सीमित अर्थ में कापी, नोटबुक या पुस्तिका है, जिसमें हर रोज की दैनिक घटनाओं या दिनभर में किये गये कार्यों का लेखा-जोखा रखा जाय, पर प्रचलित अर्थ में डायरी दैनिक कार्य-व्यापारों, घटनाओं का ब्यौरा है। समय और स्थान का निर्देश करते हुए काल्पनिक अथवा वास्तविक घटनाओं के प्रति साहित्यकार के हृदय की मार्मिक प्रतिक्रिया को व्यवस्थित और क्रमबद्ध रूप से व्यक्त करने वाली विशिष्ट गद्य-विधा को डायरी की संज्ञा से अभिहित किया जाता है।”
डॉ. रामचन्द्र तिवारी ने डायरी के महत्व का वर्णन करते हुए लिखा है कि “किसी दैनिक घटना के सन्दर्भ में अपने मन की उधेड़-बुन व्यक्त करने के लिए ‘डायरी ‘सर्वोतम माध्यम है।” इस प्रकार, डायरी-विधा के अर्न्तगत प्रतिदिन की घटनाओं एवं कार्य-व्यापारों को व्यवस्थित ढंग से ब्यौरेवार अंकित किया जाता है। उल्लेखनीय है कि डायरी-लेखक के लिए घटनाओं के साथ-साथ तिथि और स्थान का अंकन करना भी महत्वपूर्ण होता है। साथ ही वह आत्मविश्लेषण से सन्दर्भित उन सभी जानकारियों को चित्रित करता हुआ चलता है, जिससे उसका व्यक्तित्व भी प्रकट होता रहे।
डायरी साहित्यिक और ऐतिहासिक दो प्रकार की होती है। साहित्यिक डायरी में रचनाकार का स्वयं का व्यक्तित्व प्रकट होता है तथा ऐतिहासिक डायरी में घटनाओं की यथार्थता की प्रधानता रहती है। राजनीतिक डायरी का लेखन भी किया जाता है। यथार्थ घटनाओं को व्यवस्थित रूप से चित्रित करने के कारण ऐतिहासिक दृष्टि से डायरियों की आवश्यकता स्वीकारी जाती है। डायरी में व्यंजना, व्यंग्य और वर्णनगत सजीवता ही प्रमुख होती है। इस प्रकार डायरी हिन्दी – गद्य की एक महत्वपूर्ण विधा है।
विधा का विकास- ‘डायरी’ विधा के विकास का इतिहास लगभग 60-70 वर्ष पुराना है। हिन्दी की प्रथम मौलिक डायरी लिखने का श्रेय नरदेव शास्त्री वेदतीर्थ को दिया जाता है जो ‘ नरदेव शास्त्री वेदतीर्थ की जेल डायरी’ नाम से सन् 1930 ई. के आस-पास प्रकाशित हुई। इसके पश्चात् उन्होंने अद्भुत ढंग से घटनाओं की सजीवता को चित्रित किया है। इसके बाद 1931 ई. में घनश्यामदास बिड़ला की ‘डायरी के कुछ पन्ने’ शीर्षक से डायरी प्रकाशित हुई। इसके बाद रावी द्वारा लिखित ‘बुकसेलर की डायरी’, सुशीला नय्यर की ‘गाँधी जी की कारावास-कथा’, सज्जन सिंह की ‘लद्दाख यात्रा की डायरी’, धीरेन्द्र वर्मा कृत ‘मेरी कालिज डायरी’, सुन्दरलाल त्रिपाठी द्वारा लिखित ‘दैनन्दिनी’, सियारामशरण गुप्त कृत ‘दैनिकी’ श्रीराम शर्मा की ‘सेवाराम डायरी’ (1946 ई.) आदि प्रमुख डायरियाँ प्रकाशित की गईं, जो समस्त तत्वों को स्वयं में समेटे हुए हैं।
इसके पश्चात् डायरियों के लेखन में तेजी आयी, परन्तु डायरियाँ कुछ राजनेताओं की तथा कुछ साहित्यकारों की ही प्रकाशित हुईं। डॉ. हरिवंशराय ‘बच्चन’ की ‘प्रवास की डायरी’ (1971 ई.), डॉ रामधारी सिंह ‘दिनकर’ कृत ‘दिनकर की डायरी’ (1973 ई.), रघुवीर सहाय कृत ‘दिल्ली मेरा परदेश’ (1976 ई.) आदि विशिष्ट उल्लेखनीय हैं। मोहन राकेश की ‘मोहन राकेश की डायरी’ संज्ञक डायरी तथा इलाचन्द्र जोशी को ‘मेरी डायरी के नीरस पृष्ठ’ भी विशिष्ट महत्व की डायरियाँ हैं। इसके पश्चात् डॉ. रामविलास शर्मा, आचार्य शिवपूजन सहाय, वर्मा, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’, डॉ. धर्मवीर भारती, डॉ जगदीश गुप्त, शरद देवड़ा, दूधनाथ सिंह, हरिशंकर परसाई, प्रभाकर माचवे, लक्ष्मीकान्त वर्मा, नरेश मेहता, त्रिलोचन, शमशेरबहादुर श्रीकान्त सिंह, अजितकुमार, राजेन्द्र यादव, डॉ. देवराज उपाध्याय, श्रीलाल शुक्ल, जैनेन्द्र, राजकमल चौधरी, शुभा वर्मा आदि लेखकों के नाम प्रमुख रूप से उल्लेखनीय हैं, जिन्होंने अपना रचनात्मक योगदान देकर इस विधा को सशक्त बनाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
साहित्यकारों के अतिरिक्त कुछ राजनेताओं की डायरियाँ भी प्रकाशित हुई, जिसमें जमनालाल बजाज कृत ‘ जमनालाल की डायरी’, शान्ताकुमार कृत ‘एक मुख्यमन्त्री की डायरी’, जयप्रकाश नारायण कृत ‘मेरी जेल डायरी’ तथा पूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर कृत ‘जेल की डायरी’ आदि डायरियों का भी अपना विशिष्ट महत्व है।
इस प्रकार डायरी विधा अन्य गद्य-विधाओं की तुलना में अभी अल्पविकसित है, किन्तु इसकी विकास यात्रा गतिशील है।
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