लेखांकन की प्रकृति एवं लेखांकन के क्षेत्र का वर्णन कीजिए। अथवा लेखांकन कला है या विज्ञान या दोनों? स्पष्ट कीजिए।
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लेखांकन की प्रकृति
लेखांकन की निम्नलिखित प्रकृति होती हैं-
(1) लेखांकन : एक पेशा – आधुनिक समय में लेखांकन एक पेशा का रूप धारण कर चुका है। लेखांकन का विशिष्ट ज्ञान प्राप्त व्यक्ति को लेखापाल या चार्टर्ड एकाउन्टेंट कहते हैं।
(2) लेखांकन : एक बौद्धिक विकास – लेखांकन का विशिष्ट ज्ञान का स्वरूप बौद्धिक है, जिसे सैद्धान्तिक अध्ययन तथा व्यावहारिक ज्ञान के द्वारा सीखकर उसमें विशिष्टता प्राप्त की जाती है।
(3) लेखांकन : एक सामाजिक शक्ति – लेखांकन से प्राप्त सूचनाओं का प्रयोग व्यापार का स्वामी, लेनदार, विनियोक्ता, जनता तथा सरकार अपने हित में करते हैं।
(4) लेखांकन : एक नीति निर्धारक शक्ति – लेखांकन के आधार पर मूल्य निर्धारण, मूल्य-नियन्त्रण, मूल्य-नीति, व्यापार-नीति, क्रय-विक्रय नीति, विनियोग-नीति, आदि का निर्माण होता है। सरकार भी इसी के आधार पर आयात-निर्यात, औद्योगिक नीति, उत्पादन नीति आदि का निर्माण करती है।
लेखांकन : कला है या विज्ञान या दोनों?
लेखांकन कला है-
“कला” किसी निश्चित उद्देश्य (लक्ष्य) की प्राप्ति हेतु किसी कार्य को निश्चित नियमों के आधार पर उचित ढंग से करने की प्रक्रिया है। व्यापार का मुख्य उद्देश्य (लक्ष्य) लाभ कमाने के लिए निश्चित तरीके से व्यावसायिक लेन-देन किये जाते हैं। इस है। आधार पर लेखांकन कला है।
कारण-
- निश्चित सिद्धान्तों और नियमों के अनुसार लेखे किये जाते हैं।
- ये लेखे किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतु लिखे जाते हैं।
- ये लेखे नियमबद्ध, क्रमबद्ध, स्पष्ट, नियमित और उचित ढंग से लिखे जाते हैं।
- इनके सिद्धान्तों और नियमों को सरलतापूर्वक सीखकर इनको व्यावहारिक रूप दिया जाता है।
लेखांकन विज्ञान है-
“विज्ञान” का तात्पर्य किसी विषय के नियमबद्ध, क्रमबद्ध, शुद्ध और स्पष्टता से है जिसमें किसी घटना के कारण और परिणाम के बीच के प्रत्यक्ष सम्बन्ध का अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला जाता है। इस आधार पर लेखांकन विज्ञान है।
कारण-
(1) इनके सिद्धान्त और नियम क्रमबद्ध, नियमबद्ध, शुद्ध और स्पष्ट हैं।
(2) लेखों को करने की प्रक्रिया नियमबद्ध, क्रमबद्ध, शुद्ध और नियमित हैं।
(3) इनके सिद्धान्तों और नियमों के सैद्धान्तिक और व्यावहारिक पक्ष के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।
(4) व्यापारिक घटनाओं का निष्कर्ष आर्थिक परिणाम अर्थात् लाभ-हानि होते हैं।
(5) निष्कर्ष की व्याख्या कर इनके कारण परिणाम को जाना जा सकता है।
लेखांकन कला और विज्ञान दोनों हैं-
“अमेरिकन संस्थान के प्रमाणित लोक लेखापालों की शब्दावली समिति के अनुसार, “लेखांकन उन व्यवहारों एवं घटनाओं को मुद्रा के रूप में लिपिबद्ध करने, श्रेणीबद्ध करने, संक्षिप्तीकरण करने तथा उनके परिणामों की व्याख्या करने की कला है, जो कम से कम आंशिक रूप से वित्तीय प्रकृति हैं।”
वस्तुतः लेखांकन कला और विज्ञान दोनों है जिसमें पुस्तपालन के अन्तर्गत बनाए गए अभिलेखों को पुनः क्रमबद्ध किया जाता है। इन पर आधारित वित्तीय विवरण बनाए जाते हैं और व्यापार पर उनके प्रभावों की व्याख्या की जाती है।
स्मिथ और एशबर्न के अनुसार, “लेखांकन प्रधान रूप से वित्तीय व्यवहारों और घटनाओं के लिखने का विज्ञान है और वित्तीय व्यवहारों एवं घटनाओं का महत्वपूर्ण सारांश बनाने, विश्लेषण करने, उनकी व्याख्या और परिणामों को उन व्यक्तियों तक पहुँचाने की कला है, जो उनके आधार पर निर्णय लेते हैं।”
लेखांनक का क्षेत्र- लेखांकन का कार्य पुस्तपालन के कार्य के बाद दृष्टिकोण के आधार पर लेखांकन के निम्नलिखित कार्यक्षेत्र हैं-
- पुस्तपालन की प्रविष्टियों की जांच करना।
- खातों के योगों तथा शेषों की जांच करना।
- खातों के शेष से तलपट बनाना।
- समायोजनाओं को लिखना।
- अन्तिम खाते (निर्माण-खाता, व्यापारिक-खाता, लाभ-हानि खाता एवं आर्थिक चिठ्ठा) बनाना।
- भूल-सुधार के लेखे करना ।
- अन्तिम खातों का विश्लेषण कर उनके आधार पर निष्कर्ष निकालना।
वस्तुतः तलपट बनाने से अन्तिम खाते के विश्लेषण तक की क्रिया लेखांकन का क्षेत्र है। लेखांकन का कार्य करने के लिए विशेष ज्ञान और योग्यता का होना आवश्यक है।
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