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सुमित्रानन्दन पन्त के काव्य के क्रमिक विकास

सुमित्रानन्दन पन्त के काव्य के क्रमिक विकास
सुमित्रानन्दन पन्त के काव्य के क्रमिक विकास
सुमित्रानन्दन पन्त के काव्य के क्रमिक विकास पर प्रकाश डालिए?

कवि पंत के सम्पूर्ण काव्य का अनुशीलन एवं परिशीलन करने पर ज्ञात होता है कि कवि ने एक दीर्घ अवधि से माँ भारती के मन्दिर में अपने काव्य प्रसून चढ़ाये हैं। उनकी प्रथम कविता तम्बाकू का धुँआ सन् 1916 में लिखी गयी थी, तब से मृत्यु पर्यन्त दीर्घ अवधि में कविवर पन्त ने प्रभूत मात्रा में कविताओं का सृजन किया है और कवि की यह सृजनात्मक प्रतिभा उत्तरोत्तर विकास को प्राप्त हो गयी है। इसी प्रकार पन्त के काव्य के क्रमिक विकास का अध्ययन विद्वानों ने इस प्रकार प्रस्तुत किया है-

  1. प्राकृतिक सौन्दर्यवादी युग- 1916 से 1934 तक
  2. यथार्थवादी युग- 1935 से 1945 तक
  3. अन्तश्चेतनवादी युग- 1946 से 1948 तक
  4. नव मानवतावादी युग- 1946 से बाद तक

1. प्राकृतिक सौन्दर्यवादी युग- पन्तजी ‘वीणा’, ‘ग्रन्थि’, ‘पल्लव’ तथा ‘गुंजन’ की कविताओं में प्रकृति से अधिक प्रभावित रहे हैं। यद्यपि इन पर छायावादी का प्रभाव भी है, पर प्रकृतिक सौन्दर्य के प्रति कवि की तन्मयता, मोहकता एवं संवेदनशीलता उत्तरोत्तर प्रगाढ़ होती गयी है। यह प्रभाव इतना व्यापक है कि नारी-सौन्दर्य भी उन्हें प्रभवित करने में असमर्थ सा दिखाई देता है-

छोड़ दमों की मृदु छाया, तोड़ प्रकृति से भी माया,
बाले, तेरे बाल-जाल में, कैसे उलझा हूँ लोचन।

कवि की इन रचनाओं में प्रेम, सौन्दर्य एवं दर्शन की त्रिवेणी प्रवाहित हो रही है जिसमें भावों की तीव्रता के साथ-साथ कल्पना की सुकुमारता भी मिली हुई है। कवि ने यहा चित्रोपन भाषा के अन्तर्गत चित्र-रागों की सृष्टि की है और मानवीकरण, विश्लेषण तथा ध्वन्यार्थ-व्यंजना जैसे नूतन अलंकारों से अलंकृत खड़ी-बोली में नादात्मक सौन्दर्य के साथ-साथ ध्वन्यात्मकता, लावणिकता एवं प्रतीकात्मकता का समावेश करके अपनी प्रखर भाषा-शक्ति का परिचय दिया है।

2. यथार्थवादी युग- इस युग की रचनाओं पर मार्क्स और गांधी की चेतना का प्रभाव दिखाई देता है। इस काल खण्ड की प्रमुख कृतियाँ हैं-युगान्त’, ‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’, ‘युगपथ’ एवं ‘पल्लविनी’ । इनकी भावभूमि यद्यपि भिन्न है, फिर भी इस युग की कवि चेतना को मोटे रूप में इस प्रकार रखा जा सकता है। इन कृतियों में कवि-

( 1 ) रुढ़िवादिता के प्रति आक्रोश व्यक्त करता है- द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र’ इसका प्रतीक है, ‘जिनको वह जड़ पूरा जोन’ (निष्प्राण विगत युग) कहता है।

( 2 ) मार्क्सवादी चिन्तन से प्रभावित कवि- चेतना, शोषण के विरुद्ध उभरी है।

( 3 ) इस काल की रचनाओं पर गांधीवाद का भी प्रभाव है और मार्क्स तथा गांधी के समन्वित प्रभाव के कारण, कवि विशेष रुप से यथार्थवादी हो गया। जागरण का मंत्र फूँककर, यथार्थवाद की ठोस धरा पर खड़ा होकर वह नवीन सामाजिक क्रान्ति का अरुान करता है। इस काल की कविताओं का कला की दृष्टि से अध्ययन करने पर स्पष्ट हो जाता है कि यहाँ बौद्धिकता के कारण कलात्मकता पीछे खिसक गयी है। साथ ही कवि यहाँ नूतन विचारों के प्रति अधिक जागरुक प्रतीत होता है, कला की ओर कम।

3. अन्तश्चेतनावादी युग-वस्तुतः कवि नवजागरण का पक्षधर हो उठा था। यही नवजागरण वर्तमान विषम स्थितियों से मानव का उद्धार करता है, पर जिन विचारधाराओं कवि प्रभावित हुआ था-मार्क्स और गांधी, उनसे यह नवजागरण आता हुआ नहीं दिखायी दिया, जिसे कवि स्वयं स्वीकार करता है।

4. नव मानवतावादी युग- अरविन्द दर्शन के साथ मार्क्स गांधी की चेतना के मिलन से कवि पर जो प्रभाव पड़ा, उसने नव मानवतावादी, विचार-चेतना को उभरा, ‘उत्तरा’ में कवि का विहग गा उठता है-

मैं नव मानवता का संदेश सुनाता।

प्रेम को सर्वोपरि मानकर वह मानव हृदय में प्रेम को भर देना चाहता है ताकि मानव विश्वबन्धुत्व की उदात्त भावना से भर जाय। कवि मानव को ‘नव’ जीवन शोभा के ईश्वर मानकर उसे अमर प्रीति की श्रेष्ठ प्रतिमा मानता है, जिसके हृदय में चेतना का स्वर्णिम मुकुल सदैव विकसित रहता है-

नव’ जीवन शोभा के ईश्वर अमर-प्रीति के तुम वर,
स्वर्ण शुभ्र चेतना मुकुल से खिलते उर में सुन्दर।

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Anjali Yadav

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