प्रस्ताव और स्वीकृति का संवहन कब पूरा होता है? अथवा प्रस्ताव का खण्डन कब तथा किस प्रकार किया जा सकता है?
प्रस्ताव एवं स्वीकृति का संवहन कब पूर्ण होता है- प्रस्ताव एवं स्वीकृति तभी पूर्ण मानी जाती है जब इन दोनों से सम्बन्धित सूचना पक्षकारों को प्रदान कर दी जाती है। जब तक स्वीकारकर्ता को प्रस्ताव की सूचना नहीं मिल जाती जब तक स्वीकारकर्ता के द्वारा प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया जाता है। इसी प्रकार स्वीकृति को सूचना देना भी अत्यन्त आवश्यक है।
प्रसंविदा करने वाले पक्षकारों की उपस्थिति में प्रस्ताविती प्रस्ताव की स्वीकृति कर ली जाती है, और प्रसंविदा करने वाले पक्षकरों की उपस्थिति के समय ही ठहराव भी हो जाता है।
लेकिन प्रस्ताव और स्वीकृत के आदान-प्रदान का माध्यम डाक को तभी बनाया जा सकता है, जब पक्षकार दूरी पर स्थित हों। (धारायें 4 और 5) इस सम्बन्ध में निम्नलिखित नियम है:
(1) प्रस्ताव की सूचना- ‘धारा 4’ के अनुसार-प्रस्ताव की सूचना को तभी पूर्ण कहा जा सकता है; जब प्रस्ताव को स्वीकार करने वाले पक्ष को प्रस्ताव की जानकारी हो प्रस्ताव के लिए उसके वास्तविक संवहन का होना आवश्यक नहीं माना जाता। जब प्रस्ताव वाला कोई भी पत्र प्रस्ताविती के पास पहुँच जाता है; तो प्रस्ताव का संवहन उसी समय पूरा मान लिया जाता है। जिस स्थान पर प्रस्ताव को प्राप्त किया जाता है उसी स्थान पर प्रस्ताव को पूर्ण मान लिया जाता है।
उदाहरण- 1. मोहन अपने बंगले को 2,00,000 रूपये में किशन को बेचने का प्रस्ताव पत्र के माध्यम से करता है; उस प्रस्ताव का संवहन उसी क्षण पूर्ण मान लिया जाता है; जब किशन डाक द्वारा प्रस्ताव पत्र स्वीकार कर लेता है।
2. शिल्पा अपने सोफे को 70,000 में बेंचने का प्रस्ताव विमला के पास भेजती है; जब विमता को प्रस्ताव पत्र प्राप्त हो जाता है; उसी समय प्रस्ताव की सूचना को पूरा मान लिया जाता है।
(2) स्वीकृति की सूचना- यदि अनुबन्ध के दोनों पक्ष एक-दूसरे के सम्मुख उपस्थित होते है; तो स्वीकृति की सूचना मिलते ही; उस सूचना को पूरा मान लिया जाता है। जब स्वीकृति की सूचना प्रदान करने का माध्यम डाक को माना जाता है या डाक के माध्यम से स्वीकृति की सूचना प्रदान की जाती है; तो समस्या उत्पन्न होने के कारण बन जाता है।
(अ) प्रस्तावक के प्रति- प्रस्ताव को स्वीकार करने वाले व्यक्ति के द्वारा स्वीकृति भेज दी जाती है और स्वीकार करने वाला व्यक्ति उस स्वीकृति को वापस ग्रहण नहीं करता है तो स्वीकृति की सूचना प्रस्तावक को इस बात का उत्तरदायी ठहराने के लिए पूरी मानी जाती है। उदाहरण- चाहे स्वीकृति का पत्र प्रस्तावक के द्वारा ग्रहण न किया गया हो लेकिन स्वीकृति का पत्र लेटर-बॉक्स में पड़ते समय ही प्रस्तावक इस स्वीकृति के लिए बाध्य मान लिया जाता है।
(ब) स्वीकारकर्ता के प्रति- यदि स्वीकारकर्ता को स्वीकृति के लिए बाध्य करना हो तो स्वीकृति सम्बन्धी सूचना को उसी क्षण पूरा मान लिया जायेगा जिस क्षण स्वीकृति की सूचना प्रस्तावक को प्रदान कर दी जाये। ऐसा कहना भी पूर्णतः उचित होगा कि स्वीकारकर्ता अपनी स्वीकृति से तभी बाध्य माना जाता है जिस क्षण प्रस्तावक को स्वीकृति सम्बन्धी पत्र प्राप्त हो जाता है। जब स्वीकृति का सम्प्रेषण डाक के माध्यम से किया जाता है तो यह स्वीकृति प्रस्ताविती के सम्मुख तभी पूर्ण मान ली जाती है; जब स्वीकृति पत्र को प्रस्तावक के लिए भेज दिया जाता है। लेकिन जब प्रस्तावक इन स्वीकृति पत्र को खण्डित करना चाहता है तो प्रस्ताव की स्वीकृति पत्र को भेजा जाना मान लिया जाता है। यदि स्वीकर्ता की किसी भी गलती के कारण स्वीकृति पत्र कहीं भी अटक जाता है; तो स्वीकृति के पत्र के संवहन को अपूर्ण घोषित कर दिया जायेगा।
उदाहरण- सीमा एक पत्र के माध्यम से अपनी कार एक निश्चित कीमत पर नीलम को बेचने का प्रस्ताव करती है। प्रस्ताव पत्र 6, नवम्बर 2011 को डाक में डाला गया। यह पत्र नीलम के अनुसार 10 नवम्बर 2011 को पहुँचता है। इस उदाहरण के अनुसार प्रस्ताव की सूचना 10 नवम्बर 2011 को मानी जायेगी।
इस उदाहरण में नीलम 11 नवम्बर 2011 को सीमा का प्रस्ताव स्वीकार करने के स्वीकृति पत्र लेटर बॉक्स में डाल देती है। नीलम का स्वीकृति पत्र सीमा के पास 15 नवम्बर 2011 को पहुँचता है। स्वीकृति की सूचना सीमा के प्रति 11 नवम्बर को पूर्ण मानी जायेगी लेकिन नीलम के प्रति स्वीकृति की सूचना 15 नवम्बर 2011 को मानी जायेगी।
इन उदाहरण में प्रस्ताव का पत्र यदि किसी भी रूप में कहीं खो जाता है। नीलम प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर सकती और यदि स्वीकृति पत्र विलुप्त हो जाता है; तो प्रस्तावक यानि सीमा को स्वीकृति के लिए बाध्य कर सकते है लेकिन प्रस्तावक के द्वारा स्वीकृति प्राप्त करने वाले को बाध्य नहीं किया जा सकता है। क्योंकि स्वीकारकर्ता अपनी स्वीकृति से तभी बाध्य होता है जब स्वीकृति की सूचना प्रस्तावक को प्राप्त हो जाये।
Contents
खण्डन की सूचना
खण्डन से आशय ‘रद्द करने’ से सम्बन्धित होता है। खण्डन को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है –
(1) प्रस्ताव का खण्डन- प्रस्ताव का खण्डन, स्वीकृति की सूचना का प्रस्तावक के द्वारा पूर्ण होने से पहले किसी भी क्षण किया जा सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि स्वीकृति की सूचना प्रस्तावक के द्वारा पूर्ण न हो पाये; इससे पहले प्रस्ताव का खण्डन कर देना चाहिए। दूसरे अर्थ में यह कहना पूर्णत: उचित होगा कि प्रस्तावक के द्वारा अपने प्रस्ताव का खण्डन स्वीकारकर्ता के द्वारा स्वीकृति पत्र को डाक में डालने से पहले कर देना चाहिए।
उदाहरण- ‘प्रमोद’ 3 अगस्त 2012 को ‘रमन’ के पास एक प्रस्ताव भेजता है। प्रस्ताव 6 अगस्त 2012 को ‘रमन’ के पास पहुँचता है। ‘रमन’ उस प्रस्ताव के स्वीकृति का पत्र 3 अक्टूबर को लेटर बॉक्स में डालता है। ऐसी स्थिति में ‘प्रमोद’ अपने प्रस्ताव को 6 अक्टूबर 2012 से पहले रद्द कर सकता है। लेकिन इसके बाद इसे रद्द नहीं कर सकता।
(2) स्वीकृति का खण्डन- स्वीकर्ता के लिए स्वीकृति की सूचना पूरी होने से पहले किसी भी क्षण स्वीकृति का खण्डन किया जा सकता है। दूसरे अर्थ में यह कहना पूर्णत: उचित होगा कि प्रस्तावक के सम्मुख स्वीकृति पत्र पहुँचने से पहले स्वीकारकर्ता स्वीकृति पत्र का खण्डन कर सकता है लेकिन इसके बाद वह इसे रद्द नहीं कर सकता है।
खण्डुन की सूचना के नियम
खण्डन की सूचना के पूर्ण होने के लिए निम्नलिखित नियम दिये गये हैं-
1. खण्डन करने वाले के प्रति- खण्डन की सूचना को खण्डनकर्ता उस समय पूर्ण मानता है, जब खण्डन सम्बन्धित सन्देश भेद दिया जाये एवं उसे रद्द करना खण्डनकर्ता की क्षमता शक्ति से बाहर हो जाये।
2. जिस व्यक्ति को खण्डन की सूचना भेजी गयी है- जिस व्यक्ति के लिए खण्डन की सूचना भेजी जाये और उसे खण्डन की सूचना मिल जाये; तो उस व्यक्ति के लिए खण्डन की सूचना को पूरा मान लिया जाता है।
उदाहरण- (i) ‘राम’ पत्र द्वारा अपनी कार एक निश्चित कीमत पर ‘मोहन’ को बेचता है वह इस बात का प्रस्ताव रखता है। प्रस्ताव पत्र 12 मई 2012 को डाक में चला गया। यह पत्र मोहन के पास 15 मई 2012 को पहुँचता है।
इस उदाहरण में यदि ‘राम’ अपने प्रस्ताव को तार के माध्यम से खण्डित करता है तो ‘राम’ के द्वारा खण्डन की सूचना तार भेजते ही पूर्ण मान ली जायेगी और ‘मोहन’ के प्रति खण्डन उस समय पूरा माना जायेगा; जब ‘मोहन’ को तार प्राप्त होगा। इस प्रकार ‘मोहन’ अपनी स्वीकृति का खण्डन तार से भेजता है। उसके लिए यह सूचना तार भेजते ही पूर्ण मान ली जायेगी। परन्तु ‘राम’ के प्रति स्वीकृति के खण्डन की सूचना तब पूर्ण मानी जायेगी जब ‘राम’ को ‘मोहन’ का तार मिल जायेगा।
(2) राकेश अपने मोबाइल फोन को 5,000 रूपये में बेचने का प्रस्ताव रहीम के सम्मुख रखता है राकेश अपने प्रस्ताव पत्र द्वारा खण्डन करता है। राकेश के सापेक्ष खण्डन तभी पूरा हो जाता है जब पत्र भेज दिया जाता है। यह रहीम के सापेक्ष तभी पूर्ण माना जाता है जब वह पत्र को प्राप्त करता है।
IMPORTANT LINK
- दिवालिया का अर्थ एवं परिभाषा | दिवालियापन की परिस्थितियाँ | दिवाला-कार्यवाही | भारत में दिवालिया सम्बन्धी अधिनियम | दिवाला अधिनियमों के गुण एवं दोष
- साझेदार के दिवालिया होने का क्या आशय है?
- साझेदारी फर्म को विघटन से क्या आशय है? What is meant by dissolution of partnership firm?
- साझेदार की मृत्यु का क्या अर्थ है? मृतक साझेदार के उत्तराधिकारी को कुल देय रकम की गणना, भुगतान, लेखांकन तथा लेखांकन समस्याएँ
- मृतक साझेदार के उत्तराधिकारियों को देय राशि के सम्बन्ध में क्या वैधानिक व्यवस्था है?
- साझारी के प्रवेश के समय नया लाभ विभाजन ज्ञात करने की तकनीक
- किराया क्रय पद्धति के लाभ तथा हानियां
- लेखांकन क्या है? लेखांकन की मुख्य विशेषताएँ एवं उद्देश्य क्या है ?
- पुस्तपालन ‘या’ बहीखाता का अर्थ एवं परिभाषाएँ | पुस्तपालन की विशेषताएँ | पुस्तपालन (बहीखाता) एवं लेखांकन में अन्तर
- लेखांकन की प्रकृति एवं लेखांकन के क्षेत्र | लेखांकन कला है या विज्ञान या दोनों?
- लेखांकन सूचनाएं किन व्यक्तियों के लिए उपयोगी होती हैं?
- लेखांकन की विभिन्न शाखाएँ | different branches of accounting in Hindi
- लेखांकन सिद्धान्तों की सीमाएँ | Limitations of Accounting Principles
- लेखांकन समीकरण क्या है?
- लेखांकन सिद्धान्त का अर्थ एवं परिभाषा | लेखांकन सिद्धान्तों की विशेषताएँ
- लेखांकन सिद्धान्त क्या है? लेखांकन के आधारभूत सिद्धान्त
- लेखांकन के प्रकार | types of accounting in Hindi
- Contribution of Regional Rural Banks and Co-operative Banks in the Growth of Backward Areas
- problems of Regional Rural Banks | Suggestions for Improve RRBs
- Importance or Advantages of Bank
Disclaimer