Contents
उत्पीड़न क्या है? अनुबन्ध की वैधता पर इसके प्रभाव बताइये ।
उत्पीड़न क्या है? – भारतीय अनुबन्ध अधिनियम 1872 की धारा 15 के अनुसार, उत्पीड़न से आशय किसी व्यक्ति को अनुबन्ध करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से किसी ऐसे कार्य को करना या न करने की धमकी देने से है जो भारतीय दण्ड संहिता द्वारा वर्जित है अथवा समझौता करने के विचार से किसी व्यक्ति को हानि पहुँचाने के लिए किसी सम्पत्ति को अवैधानिक रूप से रोके रखना या रोकने की धमकी देना है। जहां उत्पीड़न का प्रयोग किया गया है, वहां भारतीय दण्ड विधान का प्रचलित होना या न होना कोई महत्व नहीं रखता, उदाहरण के लिए ‘अ’ समुद्री मार्ग में एक इंगलिश जहाज पर कोई ऐसा काम करके जो कि भारतीय दण्ड विधान द्वारा वर्जित है, ‘ब’ को एक ठहराव करने के लिए बाध्य करता है। बाद में ‘अ’ कलकत्ता में ‘ब’ के विरुद्ध अनुबन्ध भंग करने के लिए वाद प्रस्तुत करता है। ‘अ’ ने उत्पीड़न प्रयोग किया है, यद्यपि उस समय और उस स्थान पर भारतीय दण्ड विधान प्रचलित नहीं था।
महत्वपूर्ण निर्णय-
(1) रंगनायकम्मा बनाम अलबरसेट्टी के विवाद में एक व्यक्ति की मृत्यु पर उसकी विधवा को धमकी दी गयी कि जब तक वह एक लड़के को गोद नहीं ले लेगी मृत पति के शव को अन्तिम संस्कार के लिए नहीं ले जाने दिया जायेगा। विधवा ने लड़के को गोद ले लिया। न्यायालय ने निर्णय दिया कि यहां पर सहमति बल प्रयोग द्वारा ली गयी है, क्योंकि किसी मृतक शरीर को अन्तिम संस्कार के लिए ले जाने से रोकना भारतीय दण्ड संहिता की धारा 296 के अनुसार अपराध है तथा गोद लेने का अनुबन्ध उस विधवा की इच्छा पर व्यर्थनीय है।
(2) अमीराजू बनाम सीशम्मा के विवाद में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी तथा बच्चे को आत्महत्या की धमकी देकर उनकी सम्पत्ति के सम्बन्ध में मुक्ति पत्र लिखवा लिया। न्यायालय ने इस मुक्ति पत्र को बल प्रयोग के कारण अस्वीकार दिया, क्योंकि आत्महत्या भारतीय दण्ड विधान में वर्जित है।
प्रमुख तथ्य-
उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार उत्पीड़न में निम्नलिखित तथ्य प्रमुख होते है-
(1) भारतीय दण्ड संहिता द्वारा वर्जित कोई कार्य करना या करने की धमकी देना- यदि एक पक्षकार कोई ऐसा कार्य करता है या करने की धमकी देता है जो कि भारतीय दण्ड संहिता के अनुसार वर्जित है तो ऐसा कार्य उत्पीड़न माना जायेगा जैसे किसी व्यक्ति को मारने की धमकी देना, स्वयं आत्म हत्या करना अथवा करने की धमकी देना, डाका डालना, बालक अथवा स्त्री का अपहरण करना, शव का अन्तिम संस्कार करने से रोकना आदि।
उदाहरण- अशोक, अनिमेश को पीटकर उससे एक प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर करा लेता है। यह उत्पीड़न हैं। इसी प्रकार यदि केशव कन्हैया को धमकी देता है कि यदि उसने प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किये तो उसे गोली मार देगा। यह भी उत्पीड़न है।
(2) किसी दूसरे व्यक्ति की सम्पत्ति को अवैधानिक रूप से रोकना या रोकने की धमकी देना– यदि किसी व्यक्ति के पास दूसरे व्यक्ति की सम्पत्ति को अवैधानिक रूप से रोकने अथवा रोकने की धमकी देकर कोई अनुबन्ध करता है तो वह अनुबन्ध उत्पीड़न द्वारा प्रभावित अनुबन्ध माना जायेगा।
उदाहरण- ‘अ’ ‘ब’ को कुछ सम्पत्ति रखने के लिए देता है। ‘ब’ ‘अ’ से कहता है कि वह आधा माल या तो उसे बेच दे अन्यथा वह माल वापस नहीं करेगा और इस पर ‘अ’ अपनी स्वीकृति दे देता है तो यह उत्पीड़न द्वारा अनुबन्ध कहलायेगा ।
(3) उपर्युक्त कार्य दूसरे पक्षकार को अनुबन्ध पक्षकार बनाने के उद्देश्य से किये जाने चाहिए-पक्षकार ने उपर्युक्त कार्यों में से कोई कार्य करके दूसरे पक्षकार के साथ अनुबन्ध किया हो।
उदाहरण- विनय विवेक को चाकू दिखाकर कहता है कि वह विजय के नाम प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर कर दे। यह धमकी उत्पीड़न है।
(4) ऐसा कार्य किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता है- उत्पीड़न का कार्य अनुबन्ध के पक्षकारों के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति के द्वारा भी किया हुआ माना जायेगा, यदि उस अन्य व्यक्ति द्वारा किये गये उत्पीड़न सम्बन्धी कार्य से अनुबन्ध के किसी पक्षकार का लाभ पहुँचाने का उद्देश्य है।
उत्पीड़न के प्रभाव-
जब उत्पीड़न के आधार पर अनुबन्ध होता है तो ऐसे अनुबन्ध में निम्नलिखित प्रभाव हो सकते हैं-
1. पीड़ित पक्षकार की इच्छा पर व्यर्थनीय- उत्पीड़न के आधार पर अनुबन्ध होने की स्थिति में पहला प्रभाव यह होता है कि ऐसा अनुबन्ध पीड़ित पक्षकार की इच्छा पर व्यर्थनीय होता है। दूसरे शब्दों में, जिस व्यक्ति के विरुद्ध उत्पीड़न का प्रयोग किया गया है उस व्यक्ति को यह अधिकार होता है कि वह चाहे तो अनुबन्ध वैध समझकर दूसरे पक्षकार को अनुबन्ध के पालन के लिए बाध्य कर सकता है या इसे व्यर्थ घोषित कर सकता है। (धारा 19)
2. पुनः स्थापना का अधिकार- उत्पीड़न के आधार पर हुए अनुबन्धों के अन्तर्गत यदि अनुबन्ध के पक्षकारों ने कोई धनराशि अथवा वस्तु दी है। अथवा प्राप्त की है तो अनुबन्ध के व्यर्थ घोषित होने पर उन्हें वे वस्तुएँ या धनराशि एक-दूसरे को पुनः लौटानी पड़ेगी।
3. अनुबन्ध निरस्त करना- उत्पीड़न के आधार पर अनुबन्ध होने की दशा में पीड़ित पक्षकार अनुबन्ध को उचित समय में निरस्त भी कर सकता है।
IMPORTANT LINK
- दिवालिया का अर्थ एवं परिभाषा | दिवालियापन की परिस्थितियाँ | दिवाला-कार्यवाही | भारत में दिवालिया सम्बन्धी अधिनियम | दिवाला अधिनियमों के गुण एवं दोष
- साझेदार के दिवालिया होने का क्या आशय है?
- साझेदारी फर्म को विघटन से क्या आशय है? What is meant by dissolution of partnership firm?
- साझेदार की मृत्यु का क्या अर्थ है? मृतक साझेदार के उत्तराधिकारी को कुल देय रकम की गणना, भुगतान, लेखांकन तथा लेखांकन समस्याएँ
- मृतक साझेदार के उत्तराधिकारियों को देय राशि के सम्बन्ध में क्या वैधानिक व्यवस्था है?
- साझारी के प्रवेश के समय नया लाभ विभाजन ज्ञात करने की तकनीक
- किराया क्रय पद्धति के लाभ तथा हानियां
- लेखांकन क्या है? लेखांकन की मुख्य विशेषताएँ एवं उद्देश्य क्या है ?
- पुस्तपालन ‘या’ बहीखाता का अर्थ एवं परिभाषाएँ | पुस्तपालन की विशेषताएँ | पुस्तपालन (बहीखाता) एवं लेखांकन में अन्तर
- लेखांकन की प्रकृति एवं लेखांकन के क्षेत्र | लेखांकन कला है या विज्ञान या दोनों?
- लेखांकन सूचनाएं किन व्यक्तियों के लिए उपयोगी होती हैं?
- लेखांकन की विभिन्न शाखाएँ | different branches of accounting in Hindi
- लेखांकन सिद्धान्तों की सीमाएँ | Limitations of Accounting Principles
- लेखांकन समीकरण क्या है?
- लेखांकन सिद्धान्त का अर्थ एवं परिभाषा | लेखांकन सिद्धान्तों की विशेषताएँ
- लेखांकन सिद्धान्त क्या है? लेखांकन के आधारभूत सिद्धान्त
- लेखांकन के प्रकार | types of accounting in Hindi
- Contribution of Regional Rural Banks and Co-operative Banks in the Growth of Backward Areas
- problems of Regional Rural Banks | Suggestions for Improve RRBs
- Importance or Advantages of Bank
Disclaimer