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प्रतिफल की परिभाषा, लक्षण एवं विशेषताएं

प्रतिफल की परिभाषा, लक्षण एवं विशेषताएं
प्रतिफल की परिभाषा, लक्षण एवं विशेषताएं
प्रतिफल की परिभाषा दीजिए। प्रतिफल के नियम एवं विशेषताएं क्या है? 

प्रतिफल (Consideration) का आशय एवं परिभाषा – प्रत्येक अनुबन्ध के दो – भाग होते हैं- एक ओर वचन और दूसरे वचन के लिए प्रतिफल। प्रत्येक व्यक्ति किसी काम को करने या न करने के लिए तभी वचन देता है, जबकि उसकों ऐसा करने के बदले में कुछ प्राप्त होता है। वह जो कुछ प्राप्त होता है वही प्रतिफल है।

विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रतिफल की विभिन्न परिभाषाएँ दी गयी हैं जो निम्नलिखित हैं-

1. पोलॉक के अनुसार, “प्रतिफल वह मूल्य है जिसके बदले दूसरे का वचन खरीदा जाता है। “

2. ब्लेकस्टोन के अनुसार, “प्रतिफल वह क्षतिपूर्ति या पुरस्कार है जो अनुबन्ध करने वाले पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार को दिया जाता है।”

3. न्यायाधीश पैटर्शन के अनुसार, “प्रतिफल किसी ऐसे कार्य को कहते हैं जिसका कानून की दृष्टि में कुछ महत्व हो। यह वादी कुछ लाभ अथवा प्रतिवादी को कुछ हानि पहुँचाने वाला हो सकता है। “

4. अंग्रेजी राजनियम के अनुसार, “कानून की दृष्टि से मूल्यवान प्रतिफल वह है, जिसमें एक पक्षकार को किसी प्रकार का अधिकार, हित या लाभ मिले तथा दूसरे पक्षकार को कोई विरति धैर्य हानि दायित्व अथवा क्षति होती है।”

5. भारतीय अनुबन्ध अधिनियम 1872 की धारा 2(D) के अनुसार जब वचनदाता की इच्छा पर वचनग्रहीता या अन्य व्यक्ति ने कुछ कार्य किया है या कुछ कार्य करता है अथवा कुछ कार्य करने का वचन देता है तो ऐसा कार्य या वचन दूसरे वचन का प्रतिफल होता है।

प्रतिफल से सम्बन्धित वैधानिक नियम एवं विशेषताएँ

प्रतिफल की निम्नलिखित विशेषताएँ अथवा वैधानिक नियम है-

(1) कुछ प्रतिफल अवश्य होना चाहिए- धारा 25 के अनुसार “प्रतिफल होना आवश्यक नहीं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि प्रतिफल कुछ न कुछ होना चाहिए, लेकिन यह आवश्यक नहीं है कि प्रतिफल अवश्य हो लेकिन शर्त यह है कि प्रतिफल स्वतन्त्र सहमति पर आधारित होना चाहिए। इतना जरूर आवश्यक है कि प्रतिफल का अस्तित्व होना चाहिए काल्पनिक नहीं। उदाहरण के लिए ‘क’ 1000 रुपये की घड़ी को 100 रु० में बेचने के लिए सहमत होता है। ठहराव के लिए ‘क’ की सहमति स्वतन्त्र रूप से ली गयी थी। अपर्याप्त प्रतिफल के होते हुए भी वह ठहराव अनुबन्ध है।

(2) प्रतिफल वचनग्रहीता अथवा किसी अन्य व्यक्ति की ओर से हो सकता है- प्रतिफल के मामले में यह आवश्यक नहीं है कि वचनग्रहीता की ओर से दिया जाय। वचनग्रहीता या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा भी दिया जा सकता है। उदाहरण के लिए x और y दो भाई थे। y की मृत्यु होने पर उसके पुत्र Z को कोई सम्पत्ति नहीं मिलती। कुछ समय बाद x अपनी सम्पत्ति अपने पुत्री को इस शर्त पर देता है कि वह Z को 2500 रुपये महीने दिया करेगा h स्वीकार कर लेता है। कुछ समय रुपया देने के बाद यह कहकर Z को रुपया देना बन्द कर देता है कि Z ने कोई प्रतिफल नहीं दिया।

(3) प्रतिफल भूत, वर्तमान अथवा भावी हो सकता है- प्रतिफल भूत, वर्तमान अथवा भावी हो सकता है, जब किसी कार्य को करने अथवा न करने के सम्बन्ध में कोई कार्य भूतकाल में हो चुका है, चूंकि उसने उत्तरदायित्व पूरा नहीं किया है। अत: यह भूतकालीन प्रतिफल कहलायेगा। उदाहरण के लिए मोहन ने सोहन को 2 वर्ष पूर्व उसकी शादी पर 15,000 रु० बिना वापस पाने की इच्छा से दे दिये थे। अब सोहन वह धन वापस करने का वचन मोहन को देता है। यह भूतकालीन प्रतिफल कहलायेगा।

जब कार्य पूरा होने पर प्रतिफल दिया जाता है तो वर्तमान प्रतिफल कहलाता है जैसे x, sy के सम्मुख अपनी अंगूठी 500 रु० में बेचने का प्रस्ताव रखता है। y उसे स्वीकार कर लेता है। x का 500 रु० प्राप्त करना तथा y को अंगूठी लेना वर्तमान प्रतिफल है। जब किसी अनुबन्ध का एक भाग वर्तमान से एक भाग भविष्य से सम्बन्धित होता है तो वह भविष्य कालीन प्रतिफल कहलाता है।

(4) प्रतिफल वचनदाता की इच्छानुसार दिया जाना चाहिए- प्रतिफल वचनदाता की इच्छानुसार ही दिया जाना चाहिए। बिना वचनदाता की इच्छा पर दिया गया प्रतिफल अवैध होगा। अतः कोई भी कार्य वचन के लिए तब तक उचित प्रतिफल नहीं माना जा सकता जब तक कि उसे वचनदाता की इच्छा पर न किया गया हो।

Durga Prasad Vs. Baldeo (1881) इस मामले में वादी ने बाजार की स्थिति सुधारने के लिए कुछ धन व्यय किया। दुकानदारों ने उसे बिक्री का कुछ प्रतिशत कमीशन पर देने का वचन दिया। इस वाद में प्रतिवादीगण ऐसा कमीशन न देने के लिए पूरी तरह ठीक थे। क्योंकि वादी ने बाजार का सुधार उनकी इच्छा पर नहीं किया था। उसने तो केवल जिलाधीश के चाहने पर ऐसा किया था।

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Anjali Yadav

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