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गिरवी क्या है? गिरवी के लक्षण या विशेषताएँ | गिरवी तथा ग्रहणाधिकार में अन्तर

गिरवी क्या है? गिरवी के लक्षण या विशेषताएँ | गिरवी तथा ग्रहणाधिकार में अन्तर
गिरवी क्या है? गिरवी के लक्षण या विशेषताएँ | गिरवी तथा ग्रहणाधिकार में अन्तर

गिरवी क्या है? गिरवी के लक्षण या विशेषताएँ बताइए। गिरवी तथा ग्रहणाधिकार में अन्तर बताइए।

गिरवी (Pledge) से आशय- गिरवी एक प्रकार का निक्षेप ही है। इन दोनों में अन्तर केवल इतना ही है कि निक्षेप में वस्तुओं की सुपुर्दगी किसी भी उद्देश्य से की जा सकती है, जबकि गिरवी में वस्तुओं की सुपुर्दगी किसी ऋण के भुगतान या वचन के निष्पादन की प्रतिभूति के रूप में की जाती है।

भारतीय अनुबन्ध अधिनियम की धारा 172 के अनुसार- “किसी ऋण के भुगतान अथवा किसी वचन निष्पादन के लिए जमानत के रूप में माल के लिए निक्षेप को गिरवी रखना कहते हैं।” गिरवी के अन्तर्गत निक्षेपी को ‘गिरवी रखने वाला’ तथा निक्षेपग्रहीता को गिरवी रख लेने वाला कहते हैं।

उदाहरण के लिए ‘अ’ ‘ब’ से 2000 रुपये ऋण के रूप में प्राप्त करता है और अपनी मोटर साइकिल जमानत के तौर पर रख देता है। यहाँ ‘अ’ को गिरवी रखने वाला (Pawner) तथा ‘ब’ को गिरवी रख लेने वाला (Pawnee) कहा जायेगा।

उल्लेखनीय है कि गिरवी अनुबन्ध के अन्तर्गत चल सम्पत्तियों को ही गिरवी रखा जा सकता है जो कि वस्तु-विक्रय अनुबन्ध के अन्तर्गत आते है।

गिरवी के लक्षण या विशेषताएँ

एक वैध गिरवी में निम्नलिखित लक्षणों का होना आवश्यक होता है-

  1. गिरवी रखने वाले के पास वस्तु का वैधानिक अधिकार होना आवश्यक है।
  2. माल का हस्तान्तरण ऋण देने के उचित समय के अन्दर हो जाना चाहिए।
  3. केवल चल सम्पत्ति की गिरवी ही सम्भव है, अचल सम्पत्ति की नहीं।
  4. गिरवी अनुबन्ध में किसी ऋण को चुकाने अथवा वचन के निष्पादन के लिए माल को जमानत के रूप में गिरवी रखा जा सकता है।
  5. ऋण के चुकता हो जाने पर अथवा वचन के पश्चात् माल को वापस कर दिया जाता है।

गिरवी तथा ग्रहणाधिकार में अन्तर

1. परिणाम- गिरवी किसी कुप्रबन्ध के परिणाम स्वरूप उत्पन्न निक्षेप है, जबकि ग्रहणाधिकार कानून की व्यवस्था का परिणाम है।

2. उद्देश्य – गिरवी में ऋणी ऋणदाता के पास माल का निक्षेप ऋण के भुगतान या किसी वचन को पूरा करने के लिए जमानत के रूप में करता है, जबकि ग्रहणाधिकार द्वारा किसी व्यक्ति को यह अधिकार प्राप्त होता है कि वह अपने पास रखी हुई दूसरे की वस्तु को तब तक रोक रखे, जब तक कि उस वस्तु से सम्बन्धित व्ययों का भुगतान न कर दिया जाय।

3. माल विक्रय का अधिकार- ग्रहणाधिकार रोके गये माल को बेच देने का अधिकार नहीं देता जबकि गिरवी में गिरवी रखने वाले की त्रुटि हो जाने के बाद गिरवी स्वीकार करने वाले को गिरवी रखा माल बेचने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।

4. समाप्ति – ग्रहणाधिकारी तब तक रहता है जब तक कि उसका अधिकारी व्यक्ति माल को अपने पास रोके रखे। गिरवी माल के लौटा देने पर भी ग्रहणाधिकार बना रह सकता है।

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Anjali Yadav

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