गर्भित आश्वासनों को स्पष्ट कीजिए। शर्त तथा आश्वासन में अन्तर बताइए। एक वस्तु विक्रय अनुबन्ध में गर्भित शर्तों एवं आश्वासनों का वर्णन कीजिए।
‘शर्त’ से आशय- वस्तु विक्रय अनुबन्ध की धारा 12 (2) के अनुसार,”शर्त एक ऐसा बन्धन है जो अनुबन्ध के मुख्य आशय के लिए परम आवश्यक है और जिसका खण्डन होने पर अनुबन्ध को परित्याग करने का अधिकार उत्पन्न हो जाता है। “
उदाहरण– राम, एक स्कूटर के व्यापारी श्याम के पास जाता है तथा कहता है कि मैं एक ऐसा स्कूटर खरीदना चाहता हूँ कि जो एक लीटर पेट्रोल में 35 किमी चल सके। श्याम उसको एक स्कूटर देता है और कहता है कि यह तुम्हारा उद्देश्य पूरा करेगा। यहाँ स्कूटर को एक लीटर पेट्रोल में 35 किमी चलना अनुबन्ध के लिए एक आवश्यक शर्त है। यदि विक्रय के पश्चात यह पता चलता है कि स्कूटर एक लीटर पेट्रोल में केवल 25 किमी. ही चल सकता है तो राम का अनुबन्ध मानने का अधिकार सुरक्षित रहेगा क्योंकि यहाँ यह कथन एक शर्त है जिसका पूरा किया जाना आवश्यक है।
‘आश्वासन’ से आशय वस्तु विक्रय अनुबन्ध की धारा 12 (3) के अनुसार, “आश्वासन एक ऐसा बन्धन है जो अनुबन्ध के मुख्य उद्देश्य के लिए समपार्रिवक होता है और जिसके भंग होने पर केवल हजाने के लिए वाद प्रस्तुत करने का अधिकार प्राप्त होता है किन्तु वस्तु को अस्वीकार करने अथवा अनुबन्ध को परित्याग करने का अधिकार प्राप्त नहीं होता है, जब कोई ‘शर्त’ पक्षकारों द्वारा आवश्यक न समझी जाय तो वह ‘आश्वासन’ मात्र रह जाती है।”
उदाहरण– राम एक स्कूटर के व्यापारी श्याम के पास जाता है और कहता है कि मैं एक अच्छा स्कूटर खरीदना चाहता हूँ। व्यापारी श्याम राम को एक स्कूटर देकर कहता है कि यह एक लीटर पेट्रोल में 35 किमी. दौड सकता है। राम स्कूटर खरीद लेता है, बाद में पता चलता है। कि यह एक लीटर पेट्रोल में केवल 25 किमी. ही चल सकता है। यहाँ पर व्यापारी द्वारा दिये गये विवरण केवल आश्वासन मात्र हैं, अनुबन्ध की शर्त नहीं। अत: राम को आश्वासन के भंग होने से केवल क्षतिपूर्ति प्राप्ति करने का अधिकार प्राप्त होता है अनुबन्ध को खण्डित मानने का अधिकार प्राप्त नहीं होता।
शर्त और आश्वासन में अन्तर
अन्तर का आधार | शर्त | आश्वासन |
अनुबन्ध उद्देश्य की पूर्ति हेतु आवश्यक | शर्त अनुबन्ध मुख्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए परम आवश्यक होती है। | आश्वासन, अनुबन्ध के मुख्य उद्देश्य के लिए समपार्शिवक (सहायक) होती है। |
अनुबन्ध भंग होने का प्रभाव | शर्त भंग होने पर निर्दोष पक्षकार को अनुबन्ध को त्याग करने का अधिकार होता है। | आश्वासन भंग होने पर निर्दोष पक्षकार अनुबन्ध का त्याग नहीं कर सकता केवल वह हर्जाने के लिए वाद प्रस्तुत कर सकता है। |
अनुबन्ध के निष्पादन से मुक्ति | शर्त भंग की दशा में पीड़ित पक्षकार को अनुबन्ध के निष्पादन से मुक्ति मिल जाती है तथा यह इस सम्बन्ध में स्वतन्त्र होता है। | आश्वासन भंग की दशा में पीड़ित पक्षकार को निष्पादन से मुक्ति नहीं मिल सकती। |
व्यापकता | शर्त भंग को आश्वासन भंग माना जा सकता है। | आश्वासन भंग को शर्त भंग नहीं माना जा सकता है। |
प्रतिफल का प्रभाव | शर्त का सम्पूर्ण प्रतिफल पर प्रभाव पड़ता है। | आश्वासन का प्रतिफल के किसी एक भाग पर ही प्रभाव पड़ता है। |
स्वत्व का हस्तान्तरण | शर्त के पालन के बिना स्वत्य का हस्तान्तरण नहीं किया जा सकता है। | शर्त के पालन के बिना ही स्वत्व का हस्तान्तरण किया जा सकता है। |
गर्भित शर्ते- वस्तु विक्रय अनुबन्ध में निम्नलिखित शर्तें होती हैं-
1. माल पर स्वामित्व सम्बन्धी शर्त- जब तक अनुबन्ध में परिस्थिति से कोई विपरीत अभिप्राय प्रकट न होता हो, एक वस्तु विक्रय अनुबन्ध में यह गर्भित शर्त होती है कि विक्रय की दशा में विक्रेता को वस्तु बेचने का अधिकार प्राप्त होता है तथा विक्रय के ठहराव की दशा में स्वामित्व हस्तान्तरण के समय उसे बेचने का अधिकार प्राप्त रहेगा। उदाहरण के लिए-
विवाद – रोलैण्ड बनाम दीवाल- B एक कार A से खरीदता है। कार का 4 माह प्रयोग करने के बाद उसे कार के असली स्वामी C को कार वापस करनी पड़ती है क्योंकि A ने चोरी की कार B को बेची थी। यहाँ B.A से दी गयी समस्त राशि वापस प्राप्त करने का अधिकारी है।
2. वर्णन सम्बन्धी शर्त- यह एक गर्भित शर्त है कि यदि माल वर्णन के आधार पर बेचा गया है तो माल वैसा ही होगा और यदि माल वर्णन और नमूने के आधार पर बेचा जाता है तो भाल दोनों के अनुसार हो होगा।
उदाहरण- ‘अ’ ‘ब’ को ‘लम्बे रेशे वाली कपास’ बेचने का अनुबन्ध करता है, किन्तु सुपुर्दगी देते समय ‘वेस्टर्न मद्रास कपास’ देता है। यहाँ ‘ब’ कपास लेने से इन्कार कर सकता है।
3. नमूने के सम्बन्ध में गर्भित शर्त- नमूने के आधार पर विक्रेता का अनुबन्ध होने पर यह मानी हुई आवश्यक शर्त होगी कि कुल माल की किस्म नमूने जैसी ही होगी और क्रेता को कुल माल को बिकने के साथ तुलना करने के लिए काफी समय दिया जायेगा।
4. वर्णन तथा नमूने के सम्बन्ध में गर्भित शर्त- यदि माल का विक्रय वर्णन तथा नमूने दोनों के आधार पर होता है तो ऐसी स्थिति में माल केवल नमूने के अनुसार ही नहीं होना चाहिए बल्कि वर्णन के अनुसार भी होना चाहिए।
5. वस्तु के गुण तथा उपयुक्तता से सम्बन्धी शर्त – जहाँ क्रेता स्पष्ट या गर्भित रूप से विक्रेता को वह विशेष उद्देश्य बता देता है जिसके लिए उसे वस्तु की आवश्यकता है तथा जिससे यह प्रकट होता है कि क्रेता विक्रेता की चतुराई या निर्णय पर विश्वास करता है तथा वस्तु इस प्रकार की है, जिसकी पूर्ति विक्रेता अपने व्यापार की साधारण प्रगति में करता है (चाहे वह निर्माता या उत्पादक हो अथवा न हो) तो यह गर्भित शर्त होती है कि वस्तु उद्देश्य के लिए उचित रूप उपयुक्त होग इस प्रकार इस धार के अन्तर्गत वस्तु के गुण एवं उपयुक्तता के सम्बन्ध में गर्भित शर्त मानने के लिए क्रेता को निम्न बातों को सिद्ध करना होगा-
- क्रेता ने विक्रेता को वह विशेष उद्देश्य बता दिया है, जिसके लिए उसे वस्तु की आवश्यकता है।
- क्रेता विक्रेता की चतुराई या निर्णय पर विश्वास करता है।
- वस्तुएँ ऐसी हैं जिनकी पूर्ति विक्रेता अपने व्यापार की साधारण प्रगति में करता है।
गर्भित आश्वासन- वस्तु विक्रय अनुबन्ध में निम्नलिखित आश्वासन गर्भित होते है-
1. शान्तिपूर्ण अधिकार के सम्बन्ध में- धारा 14 (b) के अनुसार, जब कोई व्यक्ति किसी वस्तु को खरीदता है तो यह गर्भित आश्वासन होता है कि वह उस वस्तु को शान्तिपूर्ण रख सकेगा तथा उसका उपयोग कर सकेगा। विक्रेता के माल पर गर्भित अधिकार होने के कारण यदि वह प्रयोग नहीं कर पाता तो उसकी विक्रेता के माल की क्षतिपूर्ति कराने का अधिकार होता है।
2. ऋणभार से मुक्ति के सम्बन्ध में- धारा 14(c) के अनुसार, ऋणभार से मुक्ति के सम्बन्ध में गर्भित आश्वासन यह है कि माल तृतीय पक्षकार के ऐसे ऋणभार से मुक्त है जो अनुबन्ध के समय घोषित नहीं किया है, अथवा क्रेता को अनुबन्ध के समय अथवा इसके पहले जिसकी जानकारी नहीं थी।
उदाहरण- ‘अ’ अपना स्कूटर ‘ब’ के पास गिरवी रख देता है। कुछ दिनों बाद ‘अ’ अपना स्कूटर कुछ समय के लिए ‘ब’ से माँग कर लाता है। ‘अ’ वह स्कूटर ‘स’ को बेच देता है। यहाँ ‘अ’ ने ‘स’ के साथ आश्वासन भंग किया है। यहाँ ‘ख’अ’ से क्षतिपूर्ति पाने का अधिकारी है।
3. व्यापारिक रीति के सम्बन्ध में- धारा 163 के अनुसार, किसी विशेष उद्देश्य के लिए, वस्तु की किस्म व उपयुक्तता के सम्बन्ध में कोई गर्भित व्यापार आश्वासन की रीति के अनुसार हो सकता है।
4. विशिष्ट सावधानी के सम्बन्ध में- विशिष्ट सावधानी का आश्वासन सदैव गर्भित होता है। अतः माल का विक्रय करते समय विक्रेता का यह कर्तव्य है कि वह क्रेता को माल के प्रयोग के सम्बन्ध में रखी जाने वाली विशेष सावधानी से अवगत करा दे।
5. गर्भित आश्वसन की उपस्थिति- एक विक्रेता आश्वासन न देने की उपस्थित की सूचना लगाकर भी गर्भित आश्वासन से नहीं बच सकता क्योंकि गर्भित आश्वासन हमेशा उपस्थित रहते हैं। गर्भित आश्वासनों से मुक्ति पाना सम्भव नहीं है।
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