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विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम (फेमा), 2000 क्या है?

विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम (फेमा), 2000 क्या है?
विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम (फेमा), 2000 क्या है?
विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम (फेमा), 2000 क्या है? इसके प्रमुख उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।

विदेश विनिमय प्रबन्धन अधिनियम (फेमा), 2000- भारत सरकार ने 4 अगस्त 1998 को संसद में विदेशी विनिमय प्रबन्धन बिल पेश किया। इस बिल को 1999 में संसद की स्वीकृति मिल गयी और यह अधिनियम बन गया। इस अधिनियम के नाम से ही स्पष्ट है कि इसका उद्देश्य विदेशी विनिमय का नियन्त्रण न करके केवल उसका प्रबन्धन करना है। इस प्रबन्धन का उद्देश्य यह है कि विदेशी व्यापार से सम्बन्धित भुगतानों में कोई रुकावट या कठिनाई न आने पाये तथा साथ ही साथ भारत के विदेशी विनिमय बाजार का सुचारु ढंग से विकास हो सके। इस अधिनियम के अध्याय-II में विदेशी विनिमय के नियंत्रण व प्रबन्धन की व्यवस्था की गयी है। धारा 3 में यह कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति अधिनियम में वर्णित तरीकों के अलावा किसी भी अनाधिकृत व्यक्ति से विदेशी विनिमय या विदेशी प्रतिभूतियों का आदान-प्रदान नहीं कर सकता है।

धारा 4 के अनुसार, अधिनियम में वर्णित तरीकी के अलावा कोई भी भारतीय किसी भी अन्य देश में विदेशी विनिमय के आदान-प्रदान में हिस्सा नहीं ले सकता, विदेशी विनिमय या विदेशी प्रतिभूतियाँ नहीं रख सकता, उनका अंतरण नहीं कर सकता और न ही निदेशों में अचल सम्पत्ति खरीद सकता है। धारा 5 व 6 चालू खातों के लेनदेन से सम्बन्धित हैं।

अधिकृत व्यक्ति- धारा 2(c) के अनुसार अधिकृत व्यक्ति से आशय किसी अधिकृत डीलर, मेनीचेन्जर, ऑफ-शोर बैंकिग यूनिट या अन्य किसी व्यक्ति से है जो उस समय के लिए धारा 10 की उपधारा (1) के अन्तर्गत विदेशी विनियोगो में लेन-देन करने के लिए अधिकृत किया गया हो।

विदेशी विनिमय- धारा (3) के अनुसार विदेशी विनिमय में निम्न सम्मिलित हैं-

  1. विदेशी विनिमय, विदेशी प्रतिभूति का लेनदेन अथवा हस्तांतरण।
  2. भारत के बाहर किसी व्यक्ति को भुगतान अथवा साख प्रदान करना।
  3. भारत के बाहर किसी सम्पत्ति के सम्बन्ध में प्रतिफल प्राप्त करना ।

विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम 2000 (F.E.M.A.) को, 1999 में सरकार ने अपनी स्वीकृति प्रदान की। इसमें विदेशी विनिमय अधिनियम 1973 का स्थान लिया था। इस अधिनियम में सनसेट प्रावधान के अधीन फेरा के लम्बित मामलों को 2 वर्ष का समय दिया गया जिसके तहत 31 मई 2002 तक फेरा के लम्बित मामलों को निपटाने का प्रावधान किया गया था।

इस अधिनियम में उपबन्धित प्रावधान विदेशी विनिमय बेहतर प्रबन्धन की आवश्यकता को पूर्ण करते हैं। इस अधिनियम का विस्तार पूरे भारत में हैं यह अधिनियम उस समय भी प्रभावी होता है जब कोई भारत का निवासी भारत के बाहर इस अधिनियम का उल्लंघन करता है। इसमें भारत के निवासी किसी भी व्यक्ति के स्वामित्व या नियन्त्रण वाली भारत के बाहर सभी शाखाओं, कार्यालयों तथा एजेन्सियों पर भी प्रभावी होता है। विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम 2000 में 49 धारायें हैं।

फेमा के प्रमुख उद्देश्य-

इसके उद्देश्य निम्नवत् हैं-

1 जून, 2000 से लागू विदेशी विनिमय प्रबन्धन, 2000 के प्रमुख उद्देश्य निम्न हैं-

  1. भारत में विदेशी पूँजी की प्रविष्टि का नियमन करना ।
  2. भारत में विदेशियों को रोजगार का नियमन करना।
  3. विदेशी विनिमय के क्रय-विक्रय पर नियन्त्रण रखना ।
  4. विदेशी विनिमय दर में स्थिरता लाना।
  5. विदेशों से एवं विदेशों को होने वाले भुगतानों का नियमन करना।
  6. भारत में विदेशी विनिमय बाजार को सुदृढ़ विकसित एवं बनाये रखना।
  7. भुगतान असन्तुलन को दूर करने में सहायता करना।
  8. भारत में पूँजी के बहिर्गमन पर रोक लगाना।
  9. आर्थिक कार्यक्रमों के लिए विदेशी मुद्रा की पूर्ति बनाये रखने में सहायता प्रदान नियमन करना ।
  10. अनिवासी भारतीयों के भारत में रोजगार, व्यवसाय, विनियोजन, पेशा आदि का करना।
  11. विदेशी बिलों में होने वाली हेरा-फेरी को रोकना।
  12. देश के विनिमय संसाधनों का अनुरक्षण करना ।

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Anjali Yadav

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