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शैक्षिक तकनीकी के इतिहास का विस्तारण एवं आधुनिक प्रवृत्तियाँ | Elaboration the History of Educational Technology and Modern Trends in Hindi

शैक्षिक तकनीकी के इतिहास का विस्तारण एवं आधुनिक प्रवृत्तियाँ |  Elaboration the History of Educational Technology and Modern Trends in Hindi
शैक्षिक तकनीकी के इतिहास का विस्तारण एवं आधुनिक प्रवृत्तियाँ | Elaboration the History of Educational Technology and Modern Trends in Hindi

शैक्षिक तकनीकी के इतिहास का विस्तारण देते हुए इसकी आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए।

शैक्षिक तकनीकी के इतिहास का विस्तारण एवं आधुनिक प्रवृत्तियाँ (Elaboration the History of Educational Technology and Modern Trends)

शैक्षिक तकनीकी कोई नवीन प्रत्यय नहीं हैं। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो अपने प्रत्येक काल में शिक्षा अपनी तकनीकों को व्यवस्थित करने की दिशा में प्रयासरत रही है। प्राचीन काल में ज्ञान को सम्प्रेषित करने की तकनीकी मौखिक थी। उस काल में “कण्ठस्थ” करने की विधि द्वारा ज्ञान को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाने का कार्य किया जाता था। बदला और “कण्ठस्थ” करने के साथ ही इसे “ताड़-पत्र” पर लिखने का कार्य आरम्भ हुआ और इसमें लेखनी एवं स्याही का प्रयोग नवीन तकनीक के रूप में माना गया। कुछ समय बाद इनके संरक्षण के संकट ने मुद्रण तकनीक के आविष्कार की नीवं डाली। यह तकनीकी अत्यधिक महत्त्वपूर्ण क्रान्ति के रूप में मानी जा सकती है।

इसके प्रयोग के पश्चात् ज्ञान का संचय एवं प्रसार सरलता से होने लगा। आधुनिक स्वरूप में शैक्षिक तकनीकी ने विशाल रूप ले लिया है। आज शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को अधिक सटीक स्पष्ट, सरल एवं प्रभावी बनाने में शैक्षिक तकनीकी ने महती योगदान दिया है। आज शिक्षा में शैक्षिक तकनीकी के योगदान को हम निम्न प्रमुख बिन्दुओं में अंकित कर सकते हैं-

(1) उद्देश्यों का निर्धारण करना- जिस प्रकार कोई भी प्रत्यय उद्देश्य निर्धारित किए बिना व्यर्थ है, शिक्षा के उद्देश्यों को निर्धारित करना अति आवश्यक है। शिक्षा के उद्देश्य सामान्य एवं विशिष्ट दोनों के निर्धारण से विधियों के निर्धारण के साथ-साथ मूल्यांकन का कार्य भी सहज एवं सरल हो गया है।

(2) शैक्षिक नीति/व्यूहों की रचना- शैक्षिक तकनीकी ने प्रजातान्त्रिक / प्रभुत्ववादी नीतियों को समयानुसार उपयोग करने की आवश्यकता पर बल दिया है। इसी प्रकार नयी-नयी शैक्षिक नीतियों को भी आवश्यकता के अनुसार प्रयोग करने पर बल दिया है, जिससे अधिगम में अपेक्षित सुधार हुआ है और कक्षा का वातावरण छात्रों के अनुसार अधिक उपयोगी सिद्ध हुआ है। शिक्षा अब छात्र केन्द्रित हुई है और छात्र इसमें अधिक रूचि लेने लगे हैं।

(3) दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रयोग- पाठ को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न चार्ट, मॉडल, ग्लोब, नक्शे आदि के प्रयोग ने शिक्षा को अधिक स्पष्ट करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भाषा-प्रयोगशाला ने भाषा को अधिक स्पष्ट किया है। विज्ञान विषय में कम्प्यूटर के प्रयोग ने के नवीन अनुसन्धानों से छात्रों को सीधे जोड़ दिया है।

(4) मूल्यांकन- पाठ के मूल्यांकन में भी शैक्षिक तकनीकी ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

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Anjali Yadav

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