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राजनीति विज्ञान के परम्परागत एवं आधुनिक दृष्टिकोण में अन्तर

राजनीति विज्ञान के परम्परागत एवं आधुनिक दृष्टिकोण में अन्तर
राजनीति विज्ञान के परम्परागत एवं आधुनिक दृष्टिकोण में अन्तर
राजनीति विज्ञान के परम्परागत एवं आधुनिक दृष्टिकोण में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

यूनानी विचारकों के समय से लेकर आधुनिक काल तक के विभिन्न चिन्तको, सिद्धान्तवेत्ताओं और विश्लेषकों के योगदानों से राजनीति विज्ञान के रूप, अध्ययन सामग्री एवं उसकी परम्पराएँ समय-समय पर परिवर्तित होती रही हैं तदनुरूप इस विषय का निरन्तर विकास होता रहा हैं। इस विकास क्रम में राजनीति विज्ञान के अध्ययन के सम्बन्ध में दो प्रमुख दृष्टिकोणों का उदय हुआ है प्रथम परम्परागत दृष्टिकोण एवं द्वितीय-आधुनिक दृष्टिकोण । राजनीति विज्ञान की समग्र समझ हेतु दोनों दृष्टिकोणों का अध्ययन आवश्यक है। इसकी परिभाषा एवं विषय वस्तु को व्यापक सन्दर्भों में देखा व परखा जा सकता है पारम्परिक या परम्परागत एवम् आधुनिक काल क्रम की जटिलताओं में न जाते हुये यहां केवल यह स्पष्ट करना पर्याप्त होगा कि पारम्परिक या परम्परागत दृष्टिकोण राज्य प्रधानता का परिचय देता है जबकि आधुनिक दृष्टिकोण प्रक्रिया प्रधानता का।

उपरोक्त दोनो दृष्टिकोणों का विवेचन करने के बाद दोनो दृष्टिकोणों के मध्य अंतर को निम्न बिंदुओं के अंतर्गत स्पष्ट किया जा सकता है-

परम्परागत दृष्टिकोण आधुनिक दृष्टिकोण
1. परम्परागत दृष्टिकोण का काल मुख्यतः द्वितीय महायुद्ध तक माना जाता है। आधुनिक दृष्टिकोण का उद्भव द्वितीय महायुद्ध के बाद हुआ।
2. परम्परागत दृष्टिकोण के अन्तर्गत राज्य, सरकार एवम् राजनीतिक संस्थाओं के संगठन व कार्यो व्यक्ति व राज्य के मध्य संबंधों का अध्ययन वैधानिक विधि से किया जाता था। आधुनिक दृष्टिकोण व्यक्ति के राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन पर बल देता है। वह राजनीतिक संस्थाओं के अध्ययन को भी व्यवहारवादी दृष्टि से करने पर बल देता है।
3. परम्परागत दृष्टिकोण राजनीति विज्ञान की विषय वस्तु का राजनीतिक दृष्टि से अध्ययन करता है । आधुनिक दृष्टिकोण अन्य सामाजिक विषयों से मदद का पक्षधर है। वह अन्तर-विषयक दृष्टिकोण का समर्थक है।
4. परम्परागत राजनीति विज्ञान राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन मुख्यतः वैधानिक दृष्टि से करता है इसे औपचारिक अध्ययन भी कहते है। आधुनिक दृष्टिकोण राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन उन प्रक्रियाओं एवं प्रभावों के संदर्भ में करता है जो इन संस्थाओं को प्रभावित करती है
5. परम्परागत दृष्टिकोण के अंतर्गत ऐतिहासिक दार्शनिक व तुलनात्मक पद्धतियों का प्रयोग किया जाता था। आधुनिक दृष्टिकोण के अंतर्गत वैज्ञानिक प्रविधि-सांख्यिकीय, गणितीय, सर्वेक्षणात्मक आदि पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है।
6. परम्परागत दृष्टिकोण मूल्य, आदर्श, कल्पना पर आधारित था। आधुनिक दृष्टिकोण मूल्य निरपेक्ष यथार्थवादी अध्ययन पर बल देता है।

7. परम्परागत दृष्टिकोण में प्रामाणिकता एवं निश्चयात्मकता का अभाव है।

आधुनिक दृष्टिकोण में प्रामाणिकता एवं निश्चयात्मकता अधिक पायी जाती है।

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Anjali Yadav

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