मानवाधिकार की विश्वव्यापी घोषणा प्रकरण हेतु विषय-वस्तु का उल्लेख कीजिए।
मानव अधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा:- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मानव अधिकारों पर कुठाराघात के कारण भविष्य में मानव अधिकारों की रक्षा हेतु कोई ठोस व्यवस्था किये जाने की आवश्यकता अनुभव हुई। व्यवस्था संबंधी इस आवश्यकता की पूर्ति का दायित्व संयुक्त राष्ट्र संघ ने ग्रहण किया और इसके लिए उसने श्रीमती एलोनोर रूजवेल्ट की अध्यक्षता में मानव अधिकार आयोग की स्थापना की। इस आयोग ने मानव अधिकारों के घोषणा पत्र का प्रारूप तैयार करके संघ की महासभा में प्रस्तुत किया और महासभा ने 10 दिसम्बर, 1948 को सर्वसम्मति से उसे स्वीकार कर लिया। आयोग द्वारा निर्मित और महासभा द्वारा स्वीकृत इस अधिकार पत्र को ही मानव अधिकारों की सार्वलौकिक या विश्वव्यापी घोषणा के नाम से जाना जाता है। मानव अधिकारों का व्यापक रूप से प्रचार करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 10 दिसम्बर के दिन को मानव अधिकार दिवस के रूप में मनाया जाता है।
घोषणा पत्र में विश्व के समस्त राष्ट्रों की संपूर्ण मानव जाति के लिए एक समान मानक निर्धारित किया गया है। परंतु इस संबंध में उल्लेखनीय है कि यह घोषणा संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के प्रस्ताव के रूप में स्वीकार की गई थी। अतः इसका कानूनी रूप से बाध्य करने वाला कोई स्वरूप नहीं है। घोषणा पत्र की प्रस्तावना में मानव जाति की जन्मजात गरिमा सम्मान और अधिकारों पर बल दिया गया है। प्रस्तावना सहित घोषणा में 30 अनुच्छेद है जिनमें नागरिक और राजनैतिक अधिकारों के साथ-साथ सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकार भी सम्मिलित है। घोषणा पत्र के पहले अनुच्छेद में कहा गया है कि सभी मनुष्य जन्म से स्वतंत्र और अधिकार तथा मर्यादा में समान है। घोषणा पत्र के दूसरे अनुच्छेद में कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति जाति, रंग, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक अथवा सामाजिक उत्पत्ति अथवा अन्य किसी प्रकार के भेदभाव के बिना सभी प्रकार के अधिकारों और स्वतंत्रताओं का अधिकारी है।
अधिकारों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है। पहली श्रेणी में अनुच्छेद 1 से लेकर 18 तक नागरिक व राजनीतिक अधिकारों का उल्लेख है जिनमें जीवन, स्वतंत्रता, सुरक्षा का अधिकार, पराधीनता और वासना से मुक्ति का अधिकार, कानून के समक्ष समता का अधिकार, मनमाने रूप से बंदी बनाये जाने और देश निकाले जाने से रक्षा का अधिकार, सार्वजनिक और न्यायपूर्ण मुकदमों का अधिकार, अपराधी प्रमाणित न होने तक निर्दोष समझे जाने का अधिकार, राष्ट्रीयता का अधिकार, परिवार की सुरक्षा का अधिकार राज्य से बाहर आने जाने, विचार विवेक और धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, पति पत्नि की समानता का अधिकार, शांतिपूर्ण ढंग से एकत्रित होने और संघ बनाने का अधिकार अच्छानुसार सरकार बनाने का अधिकार, मताधिकार का अधिकार और राजनैतिक कार्यों में भाग लेने का अधिकार आदि सम्मिलित है।
दूसरी श्रेणी में अनुच्छेद 19 से लेकर 25 तक आर्थिक सामाजिक व धार्मिक अधिकारों का उल्लेख है। जिसमें सामाजिक सुरक्षा, इच्छानुसार कार्य चुनने व करने तथा समाज के धार्मिक कार्यों में भाग लेने का अधिकार, समान कार्य के लिए समान और न्यायपूर्ण वेतन का अधिकार, बेकारी, बीमारी और वृद्धावस्था में सामाजिक सहायता प्राप्ति “का अधिकार आदि सम्मिलित है। घोषणा पत्र की अंतिम श्रेणी में अनुच्छेद 26 से 30 में यह स्वीकार किया गया है कि प्रत्येक मानव को ऐसी शैक्षिक सांस्कृतिक और अन्य अधिकार है जिसमें विश्वशांति और सुरक्षा हो तथा व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास करने का पूर्ण अवसर प्राप्त हो। घोषणा पत्र में यह भी उल्लेख है कि घोषणा पत्र प्रदत्त अधिकारों और स्वतंत्रताओं का संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों एवं सिद्धांतों के विरूद्ध किसी भी दशा में प्रयोग न किया जाये।
इस विश्वव्यापी घोषणा के प्रारूप को तैयार करके संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा से स्वीकत कराने वाले संघ के मानव अधिकार आयोग की अध्यक्ष श्रीमती एलोनोट रूजवेल्ट ने इस घोषणा पत्र को संपूर्ण मानव समाज के मेग्नाकार्टा नाम दिया था। परंतु घोषणा पत्र के वास्तविक स्वरूप के संबंध में पामर और पार्किन्स के शब्दों में कहा जा सकता है कि यह घोषणा केवल आदर्शों का प्रतिपादन है कानूनी रूप से बाध्य करने वाला कोई समझौता नहीं परंतु यह एक महत्वपूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय दस्तावेज है।
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