आप सामाजिक न्याय सम्प्रत्यय विद्यार्थियों में किस प्रकार विकसित करेंगे?
भारतीय संविधान में क्रांति सामाजिक न्याय भारतीय संविधान की आधारशिला है। यद्यपि सामाजिक न्याय को संविधान में कहीं परिभाषित नहीं किया गया है। फिर भी भारतीय संविधान का प्रमुख स्वर और अनुभूति सामाजिक न्याय ही है। यहां समाज और न्याय के प्रति लचीला रूख अपनाते हुए न्यायिक व्यवस्था को मुक्त रखा गया है ताकि सामाजिक परिस्थितियों, आयोजनों, संस्कृति समय तथा लक्ष्य के अनुरूप इसमें आवश्यक परिवर्तन किये जा सकें। डा. अंबेडकर का कहना था कि लोकतंत्र को बनाये रखने के लिए संवैधानिक मूल्यों-अधिकारों का पालन करना होगा।
संविधान सभा की कई बैठकों के बाद भारत के संविधान की रचना की गई, जो विश्व का सबसे बडा, लिखित, अनूठा, संविधान है जिसमें सामाजिक न्याय को सर्वोच्चता प्रदान की गई है। यह दुनिया का सामाजिक न्याय को दर्शित करने वाला एक प्रमाणिक अभिलेख है। सामाजिक न्याय का मुख्य उद्देश्य व्यक्तिगत हित और सामाजिक हित के बीच सामन्जस्य स्थापित करना है। इसलिए कल्याणकारी राज्य की कल्पना संविधान निर्माताओं ने की है। बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय को ध्यान में रखते हुये समाजवादी व्यवस्था स्थापित की गई है। भारतीय समाजवाद अन्य राष्ट्रों के समाजवाद से अलग है। सामाजिक न्याय के लिए संविधान में जो प्रावधान दिये गये हैं उनका मुख्य उद्देश्य वितरण की असमानता को दूर करना तथा असमानों में संव्यवहारों में असमानता को दूर करना व कानून का प्रयोग वितरण योग साधन के रूप में समाज में धन का उचित बटवारां करने में किया जाये। इसका विशेष ध्यान रखा गया है। हमारे संविधान की उद्देशीयका संविधान का आधारभूत की जाती है। हालांकि, सभी नागरिकों के लिए इन बुनियादी शर्तों की पूर्ति, खासकर भारत जैसे देश में जहाँ गरीबों की बड़ी तादाद है, सरकार पर भारी बोझ बन सकती है। अगर हम सब इस बात पर सहमत भी हो जाएं, कि राज्य को समाज के सबसे वंचित सदस्यों की मदद करनी चाहिए, जिससे वे बाकियों के साथ एक हद तक समानता का आनंद ले सकें, तब भी इस बात पर असहमति हो सकती है कि इस लक्ष्य को पाने का सर्वोत्तम तरीका क्या होगा तथा वह तरीका सामाजिक न्याय ही होगा।
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