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पाठ्यचर्या के मूलतत्त्व कौन से है? एवं इनमें सम्बन्ध

पाठ्यचर्या के मूलतत्त्व कौन से है? एवं इनमें सम्बन्ध
पाठ्यचर्या के मूलतत्त्व कौन से है? एवं इनमें सम्बन्ध

पाठ्यचर्या के मूलतत्त्व कौनसे है एवं इनमें सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।

पाठ्यचर्या के मूलतत्त्व शिक्षा की प्रक्रिया का सम्पादन शिक्षक द्वारा किया जाता है। शिक्षक अपनी क्रियाओं का नियोजन कक्षा शिक्षण के लिये करता है उसके प्रमुख तीन तत्व होते हैं- उद्देश्य, पाठ्यवस्तु एवं शिक्षण विधियाँ। ‘पाठ्यचर्या विकास’ में पाठ्यवस्तु तथा शिक्षण विधियों को महत्त्व दिया जाता है। पाठ्यवस्तु तथा शिक्षण विधियों का नियोजन उद्देश्यों की दृष्टि से किया जाता है। एक पाठ्यवस्तु के कई उद्देश्य प्राप्त किये जा सकते हैं। परन्तु अधिगम अवसरों एवं परिस्थितियाँ उद्देश्यों के स्वरूप को सुनिश्चित करते हैं। विशिष्ट उद्देश्यों हेतु विशिष्ट अधिगम परिस्थितियों का नियोजन किया जाता है। शिक्षण तथा अधिगम क्रियायें पाठ्यचर्या के ही प्रमुख तत्त्व माने जाते हैं। इस प्रकार पाठ्यचर्या के चार मूल तत्त्व माने जाते हैं- उद्देश्य, पाठ्यवस्तु, शिक्षण विधियाँ तथा मूल्यांकन।

पाठ्यचर्या के मूल तत्त्वों में सम्बन्ध 

इन तत्त्वों में गहन सम्बन्ध होता है।

1. उद्देश्य – पाठ्यवस्तु शिक्षण विधियों तथा परीक्षणों का नियोजन उद्देश्यों की दृष्टि से किया जाता है। अधिगम परिस्थितियों के स्वरूप से इन्हें प्राप्त करते हैं।

2. पाठ्यवस्तु – पाठ्यवस्तु का स्वरूप अधिक व्यापक होता है। अधिगम परिस्थितियां उस स्वरूप को सुनिश्चित करती हैं।

3. शिक्षण विधियाँ – उपर्युक्त शब्द शिक्षण आव्यूह का चयन उद्देश्यों की प्राप्ति से किया जाता है। शिक्षण विधियों का सम्बन्ध पाठ्यवस्तु से होता है। शिक्षण आव्यूह अधिगम परिस्थितियों को उत्पन्न करती है जिससे छात्रों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन किये जाते हैं। जो पाठ्यवस्तु के स्वरूप को सुनिश्चित करते हैं।

4. मूल्यांकन – परीक्षा द्वारा पाठ्यवस्तु तथा शिक्षण विधियों की उपादेयता के सन्बन्ध में जानकारी होती है और जो पाठ्यवस्तु के स्वरूप को सुनिश्चित करते हैं।

शिक्षण के चारों पक्षों में अन्तःप्रक्रिया का स्वरूप

  1. इसमें पाठ्यचर्या के उस पक्ष को शैक्षिक नियोजन में सम्मिलित किया जाता है। जिसमें शिक्षक की आवश्यकता नहीं होती है।
  2. इसमें शिक्षक, छात्र तथा पाठ्यचर्या तीनों के मध्य अन्तः प्रक्रिया होती है।
  3. छात्र शैक्षिक नियोजन में बिना पाठ्यचर्या तथा शिक्षक के अन्तःप्रक्रिया होती है।
  4. छात्र तथा शिक्षक में पाठ्यचर्या के बिना शैक्षिक आयोजन से अन्तः प्रक्रिया होती है।
  5. शिक्षक तथा पाठ्यचर्या के मध्य शैक्षिक आयोजन के अन्तर्गत अन्तः प्रक्रिया होती है।
  6. शिक्षक तथा शैक्षिक आयोजन के मध्य बिना पाठ्यचर्या के अन्तःप्रक्रिया होती है।
  7. शिक्षक तथा छात्र के मध्य बिना पाठ्यचर्या तथा शैक्षिक नियोजन के अन्तर्गत अन्तःप्रक्रिया होती है।
  8. शिक्षक का व्यवहार बिना पाठ्यचर्या तथा शैक्षिक आयोजन के द्वारा होता है।
  9. पाठ्यचर्या तथा शैक्षिक आयोजन की अन्तःप्रक्रिया, जो छात्र तक नहीं पहुँचती है।
  10. पाठ्यचर्या तथा शैक्षिक आयोजन में प्रयोग न किया जायें और न छात्रों तक पहुँच सकें।
  11. शैक्षिक आयोजन का वह कार्यक्रम जिसे प्रयुक्त न किया जा सकें।
  12. छात्र का समस्त अधिगम शैक्षिक आयोजन, शिक्षण तथा पाठ्यचर्या के द्वारा ही नहीं होता है। इसमें छात्र का वह अधिगम सम्मिलित किया जाता है जो अन्य माध्यमों से होता है।

इस प्रकार पाठ्यचर्या तत्त्व की भूमिका शिक्षा परिस्थितियों के नियोजन के लिये अहम् होती है।

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Anjali Yadav

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