पुस्तकालय कक्ष
पुस्तकालय भवन का क्षेत्रफल 20 x 30 के कक्षा – कक्ष से प्रारम्भ होकर 22 × 90 के हॉल या 30 x 90 के हॉल तथा एक स्टोर 15 x 20 का हो सकता है। इसकी स्थिति केन्द्रीय होनी चाहिए ताकि शिक्षकों और विद्यार्थियों को पुस्तकालय की सुविधा आसानी से उपलब्ध । साथ ही उस स्थान से दूर हो जहाँ शोर शराबा होता हो। अतः जहाँ तक हो, खेल के मैदान, आवागमन मार्ग जिस पर भारी वाहन आते-जाते हैं, से दूर होना चाहिए।
पुस्तकालय में प्राकृतिक प्रकाश व हवा आनी चाहिए साथ ही विद्युत प्रकाश की आवश्यक व्यवस्था हो। भवन का फर्श आवाज नहीं करे ताकि गंभीर अध्ययन करने वाले छात्रों पर प्रभाव नहीं पड़े तथा संभव हो तो दरी या जूट का फर्श इस पर बिछाया जाना चाहिए।
पुस्तकालय भवन के साथ, स्टोर कक्ष हो जहाँ नई आने वाली पुस्तकों तथा जिल्दी चढ़ने वाली या ठीक की जाने वाली पुस्तकें, पुराने अखबार तथा पत्रिकाएँ रखी जा सकें।
फर्नीचर – पुस्तकालय का फर्नीचर आकर्षक होना चाहिए।
- कुर्सियाँ – कुर्सियाँ हल्की हों तथा मजबूत हों और बिना हत्थों की होनी चाहिए जिन्हें आसानी से उठाया जा सकें तथा मेजों की ऊँचाई के अनुरूप हों।
- पुस्तकालय की मेज/काउण्टर-लाइब्रेरियन के लिए काउण्टर या मेज हो जहाँ से पुस्तकें छात्रों को प्रदान की जा सकें।
- डिस्प्ले बोर्ड-2-4 डिस्प्लेबोर्ड होने चाहिए जिन पर पुस्तकालय नियम, नवीन पुस्तकों का प्रदर्शन, सूचना प्रदर्शन किया जा सकें।
- पत्रिका स्टैण्ड पत्र-पत्रिकाओं के लिए मेग्जीन स्टैण्ड हो जहाँ उन्हें प्रदर्शित किया जा सकें।
- मेजें-इसमें पढ़ने वाली मेजों की व्यवस्था हो। इनका आकार 35 होना चाहिए।
- कार्य तालिका बोक्स-पुस्तकों की तलाश में कार्ड तालिका बोक्स बहुत उपयोगी होता है।
- पुस्तकों की अलमारियाँ-पुस्तकालय के लिए अलग से अलमारियाँ बनती हैं, इन्हें ही मंगाना चाहिए।
अन्त में हम कह सकते हैं कि पुस्तकालय का सीधा सम्बन्ध विद्यार्थियों के अध्ययन से होता है। पुस्तकालय वह स्थान है जहाँ मानव के पूर्वजों द्वारा अर्जित ज्ञान पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं के रूप में धरोहर रखा हुआ है, जिसे पढ़ कर उसे युगों के उतार-चढ़ाव का ज्ञान होता है। यह न केवल छात्रों के बौद्धिक विकास वरन् उनमें स्वाध्याय की प्रवृत्ति, अवकाश के सदुपयोग की प्रवृत्ति का विकास भी करता है। उनमें साहित्यिक रूचि को विकसित करता है। यह अध्यापकों के व्यावसायिक उन्नयन हेतु भी बहुत भी बहुत उपयोगी है। यह छात्रों की ज्ञान पिपासा को शांत करता है। उनमें विभिन्न रूचियों का विकास करता है तथा उन्हें विभिन्न पाठ्य सहगामी क्रियाओं में भाग लेने को प्रोत्साहित करता है।
महान् दार्शनिक सिसरों के अनुसार “A room without book is a body without soul.” अर्थात् “पुस्तक विहीन कक्ष लाश के समान है।” यह कथन पुस्तकालय के महत्त्व को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है। पुस्तकालय ज्ञान का भण्डार है। पुस्तकालय वह झरना है, जहाँ से ज्ञान प्रवाहित हो कर शिक्षा और संस्कृति के विस्तृत मैदान को सींचता है।
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