शिक्षाशास्त्र / Education

अभिक्रमित अध्ययन की शिक्षा में भूमिका | Role of Programmed Learning in Education in Hindi

अभिक्रमित अध्ययन की शिक्षा में भूमिका | Role of Programmed Learning in Education in Hindi
अभिक्रमित अध्ययन की शिक्षा में भूमिका | Role of Programmed Learning in Education in Hindi

अभिक्रमित अध्ययन की शिक्षा में भूमिका

अभिक्रमित अध्ययन का शिक्षा में भूमिका का वर्णन निम्न है-

(1) शिक्षण के लिये उपयुक्त विषय वस्तु का चयन- उपयुक्त विषय-वस्तु का चयन करने के लिए पाठ्यक्रम को आधार बनाया जाता है, पाठ्यक्रम में दिये गये प्रकरणों में से ऐसे प्रकरण का चयन किया जाता है, जिस पर पहले से कोई प्रोग्राम या अभिक्रम बनाया न गया हो। इसके बाद इसके शिक्षण की विभिन्न विधियों का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए यह निर्णय लिया जाता है कि अभिक्रमित अनुदेशन विधि से इसका अध्यापन उचित होगा या नहीं। इतना करने के बाद समय सीमा का निर्धारण तथा सुयोग्य अभिक्रम निर्माणकर्ता का चयन किया जाता है। विषय का चयन करने में यह भी ध्यान रखा जाता है कि इसमें अभिक्रमित अनुदेशन के सिद्धांतों का पालन किस प्रकार और किस सीमा तक किया जा सकता है।

( 2 ) वांछित अनुक्रिआओं या उद्देश्यों का निर्धारण- प्रत्येक प्रकरण के अध्यापन के अपने निश्चित उद्देश्य होते हैं। किन्तु अभिक्रमित अनुदेशन में इन उद्देश्यों की पूर्ति छात्रों द्वारा की गई अनुक्रियाओं के माध्यम से की गयी है। शिक्षक को यह सुनिश्चित करना होता है कि किसी प्रकरण में स्थायी अधिगम प्राप्त करने के लिये छात्रों की क्या अनुक्रियाएं होनी चाहिये? दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि किसी समस्या का समाधान अथवा किसी प्रश्न का छात्र को क्या उत्तर देना चाहिये, यह पहले से ही शिक्षण मशीन में भर दिया जाता है। ऐसा इसलिये आवश्यक कि विद्यार्थी द्वारा दिया गया उत्तर सही है या गलत, इसकी जानकारी उसे मशीन द्वारा तुरन्त प्रदान कर दी जाती है। सही उत्तर होने पर छात्र को सकारात्मक या धनात्मक प्रतिपुष्टि तथा पुनर्बलन प्राप्त होता है, जो उसे उत्साहित कर देता है। इस उत्साह के कारण ही वह स्वतः प्रेरित होकर आगे बढ़ता है।

( 3 ) छात्रों की व्यक्तिगत योग्यताओं व क्षमताओं पर विचार करना- अभिक्रमित सामग्री का निर्माण करने से पहले छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं पर विचार कर लेना भी, निर्माणकर्ता के लिये बहुत आवश्यक होता है। व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अंतर्गत छात्रों की आयु, स्तर, लिंग, रुचि, योग्यताएं, क्षमतायें, अभियोग्यतायें तथा बुद्धि आदि में पाये जाने वाली विभिन्नताओं पर ध्यान दिया जाता हैं। इस कार्य के लिये छात्रों के संचयी अभिलेख तथा एनेक्डाटल अभिलेख को देखा जाता है। अभिभावकों, अन्य शिक्षकों तथा सहचरों-मित्रों आदि से भी आवश्यक जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

(4) विषय वस्तु को क्रमिक लघु पदों में विभाजित करना- विषय वस्तु को क्रमबद्ध रूप में लघु-पदों में विभाजित करना अभिक्रमित अनुदेशन सामग्री की निर्माण प्रक्रिया का प्रमुख अंग है। इसमें विषय-सामग्री का विश्लेषण कर उसे छोटे-छोटे सार्थक भागों में विभाजित कर लिया जाता है। इसके बाद इन अंशों को क्रमिक रूप से इस प्रकार व्यवस्थित किया जाता है कि एक पद का अगले पद से तार्किक रूप से संबंध बना रहे। इस प्रकार निर्मित की गई श्रृंखला की एक-एक कड़ी स्वयं में विषय की एक पूर्ण इकाई के रूप में होती है। इन इकाइयों को सरल से कठिन की ओर का सिद्धांत अपनाते हुए क्रमशः छात्रों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।

(5) वांछित अनुक्रिया के लिये संकेतों की योजना- यह योजना स्किनर के अधिगम संबंधी क्रिया प्रसूत अनुबंध सिद्धांत (Theory of operant conditioning) पर आधारित होती है। इसके अंतर्गत दो प्रकार की अनुक्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है। पहली क्रिया बाह्य व्यवहार से संबंधित होती है जिसे ओवर्ट (Overt) कहते हैं और दूसरी आंतरिक व्यवहार से संबद्ध होती है जिसे कोवर्ट (Covert) कहा जाता है। ओवर्ट छात्रों के शारीरिक अंगों द्वारा की जाने वाली वे अनुक्रियायें होती हैं जो प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देती है। और जिनका मापन किया जा सकता है। कोर्ट में आन्तरिक क्रियायें होती रहती हैं, किन्तु प्रत्यक्ष रूप से देखी नहीं जा सकती है।

अभिक्रमित अनुदेशन में शिक्षक को उद्दीपक के रूप में फ्रेमों या पदों में ऐसी सामग्री का समावेश करना होता है, जिससे छात्रों को वांछित अनुक्रियायें करने के लिए स्वतः प्रेरित किया जा सके। प्रत्येक फ्रेम पर छात्र दोनों प्रकार की (Overt तथा Covert) प्रतिक्रियायें करते हुए आगे बढ़ते हैं। प्रत्येक पद एक उद्दीपक का कार्य करता है और छात्र उस उद्दीपक से प्रेरित हो कर अपनी अनुक्रिया उद्दीपन और प्रतिक्रिया (Stimulus and Response ) के सिद्धांत के आधार पर प्रदर्शित करता है। प्रतिक्रिया के तत्काल बाद मशीन छात्र का सही उत्तर दिखाकर पुनर्बलन प्रदान करती है और यह क्रम आगे बढ़ता चला जाता है।

(6) प्रतिपुष्टि और पुनर्बलन के लिए मानदंड परीक्षा का निर्माण करना- उक्त चरण में निश्चित किये गये संकेतों का प्रयोग करते हुए प्रत्येक पद के लिये छात्र अनुक्रियाओं का मूल्यांकन किया जाता है। उसके लिये समस्त पदों की पृथक-पृथक मानदंड परीक्षाओं का निर्माण किया जाता है। प्रत्येक परीक्षण में कम से कम तीन-चार वस्तुनिष्ठ प्रश्न रखे जाते हैं। इन प्रश्नों को हल करने के लिए आवश्यक निर्देश एवं आदेश स्पष्ट रूप से दिये जाते हैं।

प्रश्नों का निर्माण इस प्रकार किया जाता है, जिससे उन व्यवहारों और कौशलों की प्राप्ति का मूल्यांकन किया जा सके जिनको छात्रों को सिखाने का लक्ष्य शिक्षकों ने अपने उद्देश्यों के अंतर्गत निर्धारित किया है। इन परीक्षाओं द्वारा यह भी जानने का प्रयास किया जाता है कि छात्रों के अधिगम का स्वरूप क्या है? वे किस स्तर तक और कितने स्थायी रूप में अधिगम-लक्ष्य की ओर आगे बढ़ रहे हैं, यह जानना भी इस प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग है? छात्रों के अधिगम स्तर में कोई कमी या बाधा पाये जाने पर अन्य सरल प्रकार के परीक्षणों का निर्माण करना भी इसी चरण के अंतर्गत किया जाता है। ऐसा करना व्यक्तिगत विभिन्नताओं के सिद्धांत का पालन करने के लिये आवश्यक होता है।

(7) ड्रॉफ्ट निर्माण करना- अभिक्रमित अनुदेशन के सिद्धांतों और ऊपर बताये गये चरणों के अनुसार लघु-पदों (फ्रेमों) की भाषा, संकल्पना, आकार आदि पर अंतिम रूप से विचार करते हुए एक प्रोग्राम ड्रॉफ्ट तैयार किया जाता है। छात्रों को, सही उत्तर देने वाले संकेतों (उपक्रमक) तथा गलत अनुक्रियाओं को सही करने में सहायक संकेतों (अनुबोधक) को भी इस ड्राफ्ट में समुचित स्थान प्रदान किया जाता है। इस स्तर पर तैयार अनुदेशन कार्यक्रम में भाषागत अस्पष्टता, वर्तनी की अशुद्धियाँ, व्याकरण संबंधी त्रुटियां तथा अन्य प्रकार के तकनीकी दोषों को पुनरावलोकन द्वारा दूर कर दिया जाता है।

( 8 ) परीक्षण करना- ऊपर वर्णित ड्राफ्ट का परीक्षण करना अभिक्रमित सामग्री के निर्माण का एक महत्वपूर्ण चरण है। इन परीक्षणों के बाद ही अभिक्रमित सामग्री को छात्रों के समक्ष अधिगम के लिये प्रस्तुत किया जाता है, अतः इसे एक प्रकार से सामग्री निर्माण का अंतिम चरण भी कहा जा सकता है।

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Anjali Yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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