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आगमन विधि (Inductive Method)
भूगोल शिक्षण की यह विधि ‘विशिष्ट से सामान्य’ (Specific to General) की ओर अग्रसर होने वाले शिक्षण सूत्र पर आधारित है। आगमन विधि में शिक्षक द्वारा छात्रों के सामने अनेक उदाहरण रखे जाते हैं, जिनसे वे सामान्य नियम व सिद्धान्त निकालते हैं। इस प्रकार इस विधि से छात्रों को नये नियम या नये सिद्धान्त का ज्ञान कराया जाता है।
1. अफ्रीका के उत्तर में पश्चिमी अटलस प्रान्त में यूरोप के दक्षिणी भाग व पश्चिमी भाग में भी जाड़ों की ऋतु में वर्षा होती है।
2. उत्तरी गोलार्द्ध में संयुक्त राज्य तथा कनाडा के पश्चिमी तटों पर जाड़ों में वर्षा होती है।
3. एशिया के पश्चिमी भाग में टर्की, सीरिया, पेलेस्टाइन तथा इराक में भी जाड़ों में वर्षा होती है।
दक्षिणी गोलार्द्ध में मध्यचिली, केपकालोनी एवं द० प० आस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैण्ड में जाड़ों की ऋतु में वर्षा होती है।
इन बहुत से उदाहरणों के माध्यम से छात्र इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि ये प्रदेश 30° से 45° अक्षांशों के बीच पड़ते हैं और जाड़ों की ऋतु में इन अक्षांशों में पछुवा हवायें चलती हैं। जो समुद्रों पर से होकर आती हैं। इसलिये अन्त में वे इस सिद्धान्त पर पहुंचते हैं कि 30° से 45° अक्षांशों के बीच महाद्वीपों के पश्चिमी भाग में जाड़ों में वर्षा होती है।
इसी प्रकार एक अन्य उदाहरण भी दिया जा सकता है।
1. अरब के रेगिस्तान में वर्षा मामूली और तेज गर्मी पड़ती है।
2. आस्ट्रेलिया व कालाहारी के रेगिस्तानों में कड़ाके की गर्मी पड़ती है और ये प्रायः शुष्क रहते हैं।
3. सहारा के रेगिस्तान में बहुत अधिक गर्मी पड़ती है, और वर्षा साल भर में 5 से भी कम होती है।
4. भारत में धार के मरुस्थल में तापक्रम बहुत अधिक रहता है और वर्षा प्रायः नाम मात्र की होती है।
इन उदाहरणों के माध्यम से छात्र इस सिद्धान्त पर पहुँचते हैं कि रेगिस्तान गर्म और शुष्क होते हैं।
इसी प्रकार छात्र ताप, वर्षा, व मानचित्रों तथा ऋतु चार्टों का अध्ययन कर बहुत से सामान्य नियम निकाल सकते हैं। इस विधि की सफलता के लिये यह आवश्यक है कि छात्रों के सम्मुख उदाहरणों की संख्या पर्याप्त एवं सही हो । इसके साथ ही साथ शिक्षक को नियम निकलवाने के लिये शीघ्रता नहीं करनी चाहिये। छात्रों को सोचने, समझने तथा तर्क तथा खोज के माध्यम से सही नियम निकालने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिये।
गुण
1. यह एक स्वाभाविक एवं वैज्ञानिक विधि है। मानव जाति ने समस्त ज्ञान इसी आधार पर प्राप्त किया है।
2. यह विधि मनोवैज्ञानिक विधि है, क्योंकि इसमें मूर्त (Concrete) से अमूर्त (Abstract) की ओर चलते हैं अर्थात् विशेष उदाहरणों से सिद्धान्तों की ओर आते हैं।
3. छात्र अपने निर्णय, अनुभव एवं निरीक्षण पर विश्वास करना सीखते हैं।
4. इस विधि में बालक स्वयं सामान्य सिद्धान्तों की खोज करके सामान्यीकरण करते हैं। इस प्रकार उनका ज्ञान अधिक स्थायी होता है।
5. बालकों की अनुसंधानात्मक शक्ति का विकास होता है।
6. इस विधि में छात्र स्वयं सक्रिय रहता है, और नया ज्ञान प्राप्त कर आत्म-सन्तोष प्राप्त करता है।
7. छात्रों का मानसिक विकास होता है।
दोष
1. यह विधि कभी-कभी छात्रों को दूषित एवं गलत निष्कर्ष तथा सामान्यीकरण की ओर ले जाती है। छात्र अपने सिद्धान्त निरूपण में दोष उसी समय समझ पायेगा, जबकि वह निगमन विधि का प्रयोग करे।
2. इस विधि की सफलता के लिये अध्यापक को काफी परिश्रम एवं समझदारी की आवश्यकता होती है।
3. ज्ञान प्राप्ति करने की प्रगति बहुत धीमी होती है। बालक एक सिद्धान्त पर पहुँचने में बहुत समय ले लेते हैं।
4. वयस्कों के लिये इस विधि का प्रयोग अमनोवैज्ञानिक है।
2. निगमन विधि (Deductive Method)
निगमन विधि आगमन विधि के बिल्कुल विपरीत है। इसमें सामान्य से विशिष्ट (General to Specific) की ओर चलते हैं। इस विधि में शिक्षक पहले सामान्य नियम का स्पष्टीकरण करता है, और फिर विशिष्ट उदाहरणों द्वारा उस सामान्य नियम की पुष्टि करता है।
उदाहरणार्थ, शिक्षक छात्रों को पहले सामान्य नियम बता देगा कि रेगिस्तान गर्म और शुष्क होते हैं। इसके बाद इस नियम का स्पष्टीकरण वह अरब, सहारा, थार, कालाहारी आदि रेगिस्तानों के गर्म ताप तथा शुष्कता के उदाहरण देकर करेगा, जिससे सामान्य नियम की पुष्टि हो जाये।
इसी प्रकार एक अन्य उदाहरण भी दिया जा सकता है। शिक्षक पहले एक सामान्य नियम यह बता देता है कि भूमध्यरेखीय प्रदेश अत्यधिक ताप तथा वर्षा के क्षेत्र हैं। इस नियम की पुष्टि अमेजन, कांगो, बेसिन एवं पूर्वी और पश्चिमी द्वीप समूह के ताप व वर्षा के उदाहरण प्रस्तुत करके किया जा सकता है।
इस प्रकार इस विधि में पहिले नियम बताकर उस नियम की सत्यता विशिष्ट उदाहरणों को प्रस्तुत करके की जाती वास्तव में, निगमन विधि आगमन विधि की सहायक है।
गुण
1. आगमन विधि द्वारा निकाले हुये सामान्य सिद्धान्त की सत्यता निगमन विधि द्वारा ही सम्भव है। दूसरे शब्दों में, यह विधि आगमन विधि की पूरक है।
2. छात्र एवं अध्यापक दोनों को ही कम परिश्रम करना पड़ता है।
3. इस विधि में ज्ञान प्राप्ति की गति काफी तेज होती है। दो या तीन विशिष्ट उदाहरणों से सामान्य नियम की सत्यता को सिद्ध कर दिया जाता है।
4. उच्च कक्षाओं में यह विधि अधिक उपयोगी है।
दोष
1. यह विधि बालकों की अनुसंधान शक्ति का विकास करने के बजाय रटने की प्रवृत्ति को जन्म देती है।
2. छात्र अध्यापक पर निर्भर रहते हैं। उनमें आत्म-सन्तोष एवं आत्म-विश्वास की भावना नहीं आ पाती है।
3. यह विधि अमनोवैज्ञानिक है, क्योंकि इसमें छात्र अमूर्त (Abstract) से मूर्त (Concrete) की ओर चलते हैं।
4. लघु कक्षाओं के लिए यह विधि उपयुक्त नहीं है।
5. इसमें सोचने व तर्क करने का अवसर नहीं मिलता है।
आगमन-निगमन विधि (Inductive Deductive Method)
भूगोल शिक्षण में आगमन व निगमन विधियों का समन्वय होना चाहिए। वास्तव में देखा जाय तो आगमन व निगमन विधियाँ एक-दूसरे की विरोधी नहीं बल्कि पूरक हैं। आगमन विधि द्वारा प्राप्त किये हुए सामान्य सिद्धान्तों का परीक्षण करना आवश्यक है और वह निगमन विधि द्वारा ही सम्भव है। भूगोल की वास्तविक शिक्षण विधि आगमन-निगमन विधि का सम्मिश्रण ही है।
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