आदत का अर्थ, परिभाषा तथा आदत के मुख्य प्रकारों का संक्षिप्त विवरण दीजिए। आदतों का निर्माण किस प्रकार होता है ? बुरी आदतों को किस प्रकार तोड़ा जा सकता है ? आदतों का शिक्षा तथा सीखने में क्या महत्व है ?
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आदत का अर्थ तथा परिभाषा (Meaning & Definition of Habit)
जो कार्य हमें पहले कठिन जान पड़ता है, वह सीखने के बाद सरल हो जाता है। हम उसे जितना अधिक दोहराते हैं, उतना ही अधिक वह सरल होता चला जाता है। कुछ समय के बाद, हम उसे बिना ध्यान दिए, बिना प्रयास किए, बिना सोचे-समझे, ज्यों का त्यों करने लगते हैं। इसी प्रकार के कार्य को आदत कहते हैं। दूसरे शब्दों में, “आदत एक सीखा हुआ कार्य या अर्जित व्यवहार है, जो स्वतः होता है।”
‘आदत’ के अर्थ को और अधिक स्पष्ट करने के लिए तीन परिभाषाएँ अग्र प्रकार हैं-
1. लैडेल– “आदत, कार्य का वह रूप है, जो आरम्भ में स्वेच्छा से और जान-बूझकर किया जाता है, पर जो बार-बार किए जाने के कारण स्वतः होता है।”
“Habit is a form of activity originally willed and conscious, which by repetition has become automatic.” – Ledell
2. गैरेट- “आदत उस व्यवहार को दिया जाने वाला नाम है, जो इतनी अधिक बार दोहराया जाता है कि यंत्रवत् हो जाता है।”
“Habit is the name given to behaviour so often repeated as to be automatic.” – Garrett
3. मरसेल-“आदतें, व्यवहार करने की और परिस्थितियों एवं समस्याओं का सामना करने की निश्चित विधियाँ होती हैं। “
“Habits are routine ways of behaving, routine ways of dealing with situations and problems.” – Mursell
आदतों के प्रकार (Kinds of Habits )
आदतें, अच्छी और बुरी- दोनों प्रकार की होती हैं। इनका सम्बन्ध जानने, सोचने, कार्य करने और अनुभव करने से होता है। वैलेनटीन (Valentine) ने इनका वर्गीकरण निम्नलिखित प्रकार से किया है –
1. शारीरिक अभिलाषा-सम्बन्धी आदतें (Habits of Physiological Craving) – इनका सम्बन्ध शरीर की अभिलाषाओं की पूर्ति से होता है; जैसे-सिगरेट पीना या पान खांना ।
2. भाषा सम्बन्धी आदतें (Habits of Speech) इनका सम्बन बोलने से होता है। जिस प्रकार दूसरे बोलते हैं, उसी प्रकार बोलकर हम इन आदतों का निर्माण करते हैं। यदि शिक्षक शब्दों का गलत उच्चारण करता है, तो बालकों में भी वैसी ही आदत पड़ जाती हैं।
3. भावना सम्बन्धी आदतें (Habits of Feeling) – इनका सम्बन्ध व्यक्ति की भावनाओं से होता है; जैसे—प्रेम, घृणा या सहानुभूति की भावना ।
4. यान्त्रिक आदत (Mechanical Habits)- इनका सम्बन्ध शरीर की विभिन्न गतियों से होता है और हम इनको बिना किसी प्रकार के प्रयास के करते हैं; जैसे—कोट के बटन लगाना या जूते के फीते बाँधना ।
5. नैतिक आदतें (Moral Habits) – इनका सम्बन्ध नैतिकता से होता है; जैसे—सत्य बोलना या पवित्र जीवन व्यतीत करना ।
6. नाड़ी-मण्डल सम्बन्धी आदतें (Nervous Habits) – इनका सम्बन्ध मस्तिष्क के किसी प्रकार से होता है। ये व्यक्ति के संवेगात्मक असंतुलन (Emotional Instability) को व्यक्त करती हैं; जैसे-नाखून या कलम चबाना ।
7. विचार सम्बन्धी आदतें (Habits of Thought) – इनका सम्बन्ध आंशिक रूप से व्यक्ति के ज्ञान और आंशिक रूप से उसकी रुचियों एवं इच्छाओं से होता है; जैसे—समय-तत्परता, तर्क या कारण सम्बन्धी विचार ।
आदतों का निर्माण (Formation of Habits)
आदतों का निर्माण करने के लिए अनेक नियम, उपाय या सिद्धान्त हैं, जिनमें से मुख्य निम्न प्रकार हैं-
1. क्रियाशीलता (Activity)- हम जिस कार्य को करने की आदत डालना चाहते हैं, उसके लिए केवल संकल्प ही पर्याप्त नहीं है। संकल्प को कार्य रूप में परिणत करना भी आवश्यक है। जेम्स का कथन है—“जो संकल्प आप करें, उसे पहले अवसर पर ही पूर्ण कीजिए।”
“Seize the very first opportunity to act on every resolution you make.” -James
2. अभ्यास (Exercise)- हम जिस कार्य को करने की आदत डालना चाहते हैं, उसका हमें प्रतिदिन अभ्यास करना चाहिए। जेम्स (James) का मत है- “प्रतिदिन थोड़े से ऐच्छिक अभ्यास के द्वारा कार्य करने की शक्ति को जीवित रखिए।” इस मूल मंत्र को सदैव याद रखिए- “करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।”
3. पुरस्कार (Reward) – अच्छी आदतों का निर्माण करने में पुरस्कार का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। अतः बालकों को अच्छी आदतों का निर्माण करने के लिए पुरस्कार देकर प्रोत्साहित करना चाहिए। भाटिया (Bhatia) के अनुसार “बालकों को अच्छी आदतों का निर्माण करने के लिए पुरस्कार दिया जाना चाहिए।”
4. संकल्प (Resolution)- हम जिस कार्य को करने की आदत डालना चाहते हैं, उसके बारे में हमें दृढ़ संकल्प करना चाहिए। यदि हम प्रातःकाल व्यायाम करने की आदत डालना चाहते हैं, तो हमें यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि हम व्यायाम अवश्य करेंगे, चाहे कुछ भी क्यों न हो। जेम्स (James) के अनुसार- “हमें नए कार्य को अधिक-से-अधिक सम्भव दृढ़ता और निश्चय से आरम्भ करना चाहिए।”
5. निरन्तरता (Continuity)- हम जिस कार्य को करने की आदत डालना चाहते हैं, उसे हमें निरन्तर करते रहना चाहिए। उसमें कभी भी किसी प्रकार का विराम या शिथिलता नहीं आने देनी चाहिए। जेम्स (James) के अनुसार- “जब तक नई आदत आपके जीवन में पूर्ण रूप से स्थायी न हो जाए तब तक उसमें किसी प्रकार का अपवाद नहीं होने देना चाहिए।”
6. अच्छे उदाहरण (Good Examples) – अच्छी आदतों का निर्माण करने के लिए अच्छे उदाहरण परम आवश्यक हैं। अतः शिक्षक को अच्छी आदतों के सम्बन्ध में उपदेश देने के बजाए बालकों के समक्ष अच्छे उदाहरण प्रस्तुत करने चाहिए। जेम्स का शिक्षक को परामर्श है— “अपने छात्रों को बहुत अधिक उपदेश मत दीजिए।”
“Don’t speak too much to your pupils.” -James. Quoted by Jha
बुरी आदतों को तोड़ना (Breaking Bad Habits)
व्यक्ति समाज से अस्वीकृत व्यवहार को भी आदत बना लेता है। यह व्यवहार उसके जीवन का अंग बन जाता है। इस प्रकार की आदतों से उसका तथा समाज दोनों का नुकसान होता है। अतः ऐसी आदतों को तोड़ना भी पड़ता है।
स्टर्ट व ओकडन के अनुसार- “शिक्षक का कार्य न केवल आदतों का निर्माण करना है, वरन् उसको तोड़ना भी है।”
“The task of the educator is not only to form habits, but also to break them.” – Sturt & Oakden
बुरी आदतों को तोड़ने के लिए शिक्षक और बालक निम्नलिखित विधियों का प्रयोग कर सकते हैं-
1. आत्म-सुझाव- बालक आत्म-सुझाव द्वारा अपनी किसी भी बुरी आदत को तोड़ने में सफलता प्राप्त कर सकता है; उदाहरणार्थ, यदि वह सिगरेट पीने की आदत छोड़ना चाहता है, तो उसे अपने आप से यह कहते रहना चाहिए-सिगरेट पीने से कैंसर हो जाता है। इसलिए, मुझे सिगरेट पीना छोड़ देना चाहिए।
2. नई आदत का निर्माण- यदि बालक किसी बुरी आदत का परित्याग करना चाहता है, तो उसे उसके स्थान पर किसी नई और अच्छी आदत का निर्माण करना चाहिए। भाटिया (Bhatia) के शब्दों में-“अच्छी आदत बुरी आदत के प्रकटीकरण को अवसर नहीं देती है। अतः उसका स्वयं ही अन्त हो जाता है।”
3. आदत का एकदम या धीरे-धीरे त्याग-जेम्स (James) के अनुसार- चालक कुछ आदतों का परित्याग उनको एकदम तोड़कर और कुछ को धीरे-धीरे तोड़कर कर सकता है; उदाहरणार्थ, यदि उसमें किसी नशीली वस्तु का प्रयोग करने की आदत है, तो वह उसका प्रयोग सदैव के लिए एकदम बन्द कर सकता है। यदि आदत इससे कम खराब है, तो वह धीरे-धीरे तोड़ सकता है। उदाहरणार्थ, वह चाय पीना धीरे-धीरे कम करके बिल्कुल समाप्त कर सकता है।
4. संकल्प- बालक को अपनी बुरी आदत के तोड़ने के लिए दृढ़ संकल्प करना चाहिए। जेम्स (James) का सुझाव है कि उसे यह संकल्प एकान्त में न करके अपने मित्रों, सम्बन्धियों, माता-पिता आदि के समक्ष करना चाहिए।
5. ठीक अभ्यास- नाईट डनलप (Knight Dunlop) के अनुसार यदि बालक में कोई गलत कार्य करने की आ पड़ गई है, तो वह उसका ठीक अभ्यास करके उसका अन्त कर सकता है; उदाहरणार्थ, यदि वह कुछ शब्दों को गलत बोलता या लिखता है, तो उसे उनको बोलने या लिखने का सही अभ्यास करना चाहिए।
6. पुरानी आदत पर ध्यान- जब तक बालक अपनी पुरानी आदत को बिल्कुल न तोड़ दे, तब तक उसे उस पर अपना ध्यान केन्द्रित रखना चाहिए और उसके प्रति तनिक भी लापरवाह नहीं होना चाहिए।
7. संगति में परिवर्तन- कभी-कभी बालक में बुरे बालकों की संगति के कारण चोरी करने, झूठ बोलने, विद्यालय से भाग जाने आदि की कोई बुरी आदत पड़ जाती है। ऐसी दशा में शिक्षक को यह प्रयास करना चाहिए कि बालक बुरी संगति को छोड़ दे। उसे इस कार्य में बालक के माता-पिता का सहयोग प्राप्त करना चाहिए।
8. पुरस्कार- बालक की बुरी आदत तुड़वाने के लिए पुरस्कार का सफलता से प्रयोग किया जा सकता है। इस सम्बन्ध में बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वील्ड ने लिखा है-“पुरस्कार, दण्ड’ से उत्तम है। प्रशंसा, निन्दा से उत्तम है।”
“Reward is better than punishment, praise is better than reproof.” – Boring, Langfeld & Weld
9. अप्रत्यक्ष आलोचना- बालक में कुछ आदतें संवेगात्मक असन्तुलन के कारण होती हैं, जैसे-नाखून या कलम चबाना । शिक्षक इस प्रकार की आदत की अप्रत्यक्ष आलोचना करके उसको तुड़वा सकता है; उदाहरणार्थ, वह बालक से यह कह सकता है— “नाखून चबाना हानिकारक आदत है; क्योंकि नाखूनों की गंदगी पेट में पहुँचकर हानि पहुँचाती है।”
10. दण्ड– शिक्षक, दण्ड का प्रयोग करके बालक की बुरी आदत को तुड़वा सकता है। पर दण्ड गलत कार्य के तुरन्त बाद ही दिया जाना चाहिए। बहुत समय बाद दिए जाने वाले दण्ड को बालक अपने प्रति अन्याय समझता है। बोरिंग लैंगफील्ड एवं वील्ड (Boring, Langfeld & Weld) के अनुसार- “कभी-कभी दण्ड, आदतों को तोड़ने में लाभप्रद होता है, पर दण्ड उचित अवसर पर ही दिया जाना चाहिए।”
शिक्षा के द्वारा हम व्यक्ति के व्यवहार को वांछित दिशा प्रदान कर उसमें स्थायित्व लाते हैं। शिक्षा में आदत का महत्व इस प्रकार है-
आदतों का शिक्षा तथा सीखने में महत्व (Importance of Habits in Education & Learning)
रेबर्न ने लिखा है- “सीखना, आदतों के निर्माण की प्रक्रिया है।”
“Learning is the process of building up habits.” – Reyburn
यह कथन, शिक्षा और सीखने में आदतों की उपयोगिता को प्रमाणित करता है। हम इसकी पुष्टि निम्नलिखित तथ्यों से कर सकते हैं-
1. आदतें, बालक के चरित्र का निर्माण करती हैं। वह अपनी आदतों के कारण ही कर्मठ या अकर्मण्य, उदार या स्वार्थी, दयालु या कठोर बनता है। इसीलिए कहा गया है— “चरित्र आदतों का पुंज है।” (“Character is a bundle of habits.”)
2. आदतें, बालक के स्वभाव का अंग बन जाती हैं। अतः उसे बाध्य होकर उन्हीं के अनुसार कार्य करना पड़ता है। ड्यूक ऑफ वेलिंगटन के अनुसार- “आदत दूसरा स्वभाव है। आदत, स्वभाव से दस गुना अधिक शक्तिशाली है।”
“Habit is second nature. Habit is ten times nature.” – Duke of Wellington, Quoted by James
3. आदत, बालक में जीवन के कठिनतम कार्यों के प्रति घृणा उत्पन्न नहीं होने देती है। यही कारण है कि मनुष्य अँधेरी खानों, हिमाच्छादित प्रदेशों और ऐसे ही अन्य स्थानों में कार्य करते है।
4. जब बालक को किसी कार्य को करने की आदत पड़ जाती है, तब उसे करने में उसको थकान का अनुभव नहीं होता है।
5. जब बालक में किसी कार्य को करने की आदत पड़ जाती है, तब वह उसे शीघ्रता, कुशलता और सरलता से कर लेता है। इससे होने वाले एक अन्य लाभ की ओर संकेत करते हुए रेबर्न के अनुसार “आदत हममें जीवन के अधिक महत्वपूर्ण कार्यों के लिए समय और मानसिक शक्ति की बचत करने की क्षमता उत्पन्न करती है।”
6. अच्छी आदतें, बालक के संतुलित शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक विकास में योग देती हैं।
7. आदतें, बालक के व्यक्तित्व का निर्माण करती हैं। उनके अभाव में उसका व्यक्तित्व प्रभावहीन हो जाता है। क्लेपर ने ठीक ही लिखा है- “आदतें व्यक्तित्व की आवरण हैं।”
“Personality is clothed in habits.” – Klapper, Quoted by Bhatia.
8. आदत, बालक को निश्चित सीमाओं के अन्तर्गत रखती है। अतः वह अनैतिक, अधार्मिक या असामाजिक कार्य नहीं करता है।
9. आदत, बालक को समाज से अनुकूलन और समाज-विरोधी कार्य न करने में सहायता देती है। इस प्रकार, आदत समाज के स्थायित्व में योग देती है। जेम्स (James) के अनुसार- “आदत, समाज का विशाल चक्र और उसकी परम श्रेष्ठ संरक्षिका है।”
10. जब कोई सीखी हुई बात बालक की आदत में आ जाती है, तब उसको स्मरण रखने में उसे किसी प्रकार की कठिनाई का अनुभव नहीं होता है।
उपर्युक्त पंक्तियों में शिक्षा और सीखने में आदत की उपयोगिता की पुष्टि अनेक तथ्यों से की गई है। किन्तु, हाल के शैक्षिक प्रयोगों ने यह प्रमाणित किया है कि शिक्षकों को बालकों में आदतों का निर्माण करने के बजाय शिक्षण की अधिक प्रभावशाली विधियों को खोजना और प्रयोग करना चाहिए। इसका कारण बताते हुए मरसेल ने लिखा है-आदत का निर्माण केवल संतोष को चिन्ह है, और जब आदतों का निर्माण हो जाता है तब अधिगम और उन्नति का कार्य अवरुद्ध हो जाता है।
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