आधुनिक हिन्दी काव्य में मैथिलीशरण गुप्त के योगदान पर प्रकाश डालते हुए उनका स्थान और महत्व निश्चित कीजिए।
साहित्य में आधुनिकता एक व्यापक अवधारणा है। किसी काव्य-कृति के आधुनिक कहलाने के लिए केवल यही कसौटी नहीं है कि वह आधुनिक युग में रची गयी हो। राम की कथा शताब्दियों पुरानी है किन्तु उसमें भी आवश्यकतानुसार संशोधन एवं परिशोधन करके आधुनिकता लायी जा सकती है। उसी प्रकार आधुनिक युग में विरचित काव्यकृति भी अनिवार्यतः आधुनिक नहीं हो सकती। समय के साथ-साथ मनुष्य के सोचने-विचारने का ढंग, उसके नैतिक और सामाजिक आदर्श, उसकी धार्मिक मान्यताएँ बदलती रहती हैं। विज्ञान और सभ्यता की दौड़ में बहुत आगे पहुँचे हुए देशों की अपनी अलग आवश्यकताएँ और अपेक्षाएँ होती हैं। आज का प्रबुद्ध पाठक राम को निराकार ब्रम्ह मानने के स्थान पर एक युगपुरुष मानना चाहता है। कदाचित इसीलिए मैथिलीशरण जी ने राम का चित्रण एक महान युगपुरुष के रुप में किया है और इसका मूल कारण यही है कि आज के युग को राम के इसी मानवीय रूप की आवश्यकता है। कदाचित् इसीलिए अनेक विद्वान आलोचकों ने साकेत को हिन्दी का प्रथम मानवतादर्शवादी या आदर्श मानवतावादी रचना का गौरव प्रदान किया है। इस स्थिति का विश्लेषण करते हुए आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी ने एक स्थान पर लिखा है कि “यदि हम गोस्वामी तुलसीदास के मानस की आधारभूमि से साकेत की आधार-भूमि की तुलना करें तो साकेत की आधुनिकता का स्पष्ट प्रमाण मिलेगा। मानस में गोस्वामी जी ने अवतारवाद का सिद्धांत स्वीकार किया है। साकेत में ठीक इसका उल्टा क्रम हैं। इसमें ईश्वर की मानवता के स्थान पर मानवता की ईश्वरता का निरुपण किया गया है जो दार्शनिक दृष्टि से ठेठ आधुनिक युग की वस्तु है। साकेत में प्रथम बार मानव का उत्कर्ष अपनी चरम सीमा पर ईश्वर के समकक्ष लाकर रखा है जो मध्ययुग में किसी प्रकार सम्भव न था।”
साकेत के रचयिता ने राम को युगपुरुष के रुप में चित्रित करके अपनी आधुनिकता का परिचय दिया है। उनके राम त्रेता युग के राम नहीं बल्कि मानवता के चरम उत्कर्ष हैं। गुप्तजी के राम की कल्पना इस प्रकार हैं-
मैं आर्यों का आदर्श बताने आया
जन सम्मुख धन को तुच्छ जताने आया।
आज के वैज्ञानिकता और बौद्धिकता वाले युग में स्वर्ग-नरक की बात करना केवल कल्पना मात्र है। आज का मनुष्य धरती पर रहता है। वह इसी धरती को उपादेय बनाना अपना परम धर्म मानता है। साकेत के राम भी तो इसी भूतल को स्वर्ग बनाने का संकल्प लिए है।
साकेत में आधुनिकता का चित्रण राम के अतिरिक्त अन्य पात्रों के चरित्र में भी मिलता है। उदाहरण के लिए लक्ष्मण और उर्मिला के चरित्रों को देखा जा सकता है जो कि सर्वदृष्ट्या आधुनिक बन पड़े हैं। उनके आचरण, उनका रहन-सहन, उनका पास्परिक व्यवहार हर दृष्टि से मानवोचित है। इसी प्रकार साकेत की सीता भी स्वालम्बिनी बनने के लिए कृतसंकल्प हैं। सीता के चरित्र को देखकर ऐसा नहीं लगता कि वह कोई अलौकिक, असाधारण चरित्र हैं। सीता का कथन है
औरों के हाथों में यहाँ नहीं पलती हूँ
मेरी कुटिया में राज-भवन मन भाया ।
सीता के उक्त कथन को देखकर किसी विद्वान् आलोचक ने कहा है कि “मैं नहीं समझता कि राजवंश का वर्णन करने वाले किसी प्राचीन कवि की लेखनी इस आशय की पंक्तियों का सृजन कर सकती थी। वे सर्वथा नवीन-जीवन-दृष्टि की परिचायक पंक्तियाँ हैं।
साकेत से पूर्व उपलब्ध रामकथा-साहित्य में ऐसा उल्लेख कहीं नहीं आया कि राम दक्षिण भारत से आर्य और वैदिक धर्म की स्थापना करने के लिए आये थे अथवा यह कि श्रीराम ने लंका पर इसलिए धावा बोला था कि वे आर्यत्व का प्रसार करने के लिए दृढ़ संकल्प थे। भगवान राम भी दक्षिण भारत होकर ही लंका की ओर गये थे। गुप्त जी की आधुनिक जीवन दृष्टि का परिचय इस प्रसंग में भी मिलता है। क्योंकि कवि ने राम का चित्रण वैदिक धर्म और आर्य सभ्यता के प्रचारक के रुप में ही किया है-
वर्तमान देश-भक्ति भी आधुनिकता की परिचायक है। आधुनिक भारतवर्ष में देश भक्ति की एक व्यापक लहर स्पष्टतः देखी जा सकती है। त्रेता युग में निश्चय ही इस प्रकार की भावना की उतनी आवश्यकता नहीं रही होंगे जितनी कि आज के युग में है। साकेत के राम भी देशभक्ति की इस पुनीत भावना से अपूरित हैं। उन्हीं के शब्दों में अथवा
आकर्षण पुण्य भूमि का ऐसा
अवतरित हुआ मैं आप उच्च फल जैसा।
राम के लिए भारत देश पुण्यभूमि है। इसी प्रकार शत्रुघ्न, उर्मिला आदि भी भारत के प्रति समुचित आदर का भाव रखते हैं। कवि के शब्दों में-
भारतखण्ड के पुरुष अभी मर नहीं गये हैं
कट उनके वे कोटि-कोटि कर नहीं गये हैं।
गंगा, सरयू, यमुना नदियों के प्रति आदर का भाव पुनः आधुनिक राष्ट्रीयता की ओर ही संकेत करता है।
चढ़कर उतर न जाए सुनो कुल मौक्तिक मानी
गंगा यमुना सिन्धु और सरयू का पानी।
आधुनिक युग में गांधीवादी विचाराधारा का व्यापक महत्व है और साकेत के कवि के चिंतन पर गाँधी दर्शन का गहरा प्रभाव रहा है। गाँधी दर्शन का मूलाधार सत्याग्रह है। स्वराज प्राप्ति के लिए गाँधीजी ने सत्याग्रह को एक सशक्त साधन माना था। साकेत के कवि ने भी सत्याग्रह के साधन की उपयोगिता प्रमाणित की है। जब श्रीराम, लक्ष्मण, तथा सीतादि 14 वर्षो के वनवास के लिए अयोध्या से चलने को होते हैं। तो अयोध्यावासी उन्हें रोकने के लिए इसी सत्याग्रह के मार्ग का अनुसरण करते दिखाई देते हैं
राजा हमने राम तुम्हीं को चुना
यों कह पथ में लेट गये बहुजन वहाँ।
आधुनिक युग में अधिकार की प्राप्ति और अन्याय के दमन की बात प्रायः कहीं और सुनी जाती है। कभी-कभी अधिकार प्राप्ति के लिए शक्ति तथा अन्य उपायों का भी आश्रय लेना पड़ता है। इसी प्रकार अन्याय को चुपचाप सहना कायरता कहलाती है। साकेत में भी कैकेयी अधिकार की प्राप्ति के लिये आत्मदाह तक की धमकी देने में संकोच नहीं करती
सत्य पालन है यही नरेश?
मरुँ मैं करके अपनी घात।
साकेत की आधुनिकता के सम्बन्ध में आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी का यह कथन दृष्टव्य है कि “रामायण के प्रमुख चरित्रों और क्रमागत कथानक को छोड़कर कवि ने उर्मिला और भरत का साधनामय जीवन चित्रित किया है। महाकाव्य की पद्धति के विरुद्ध भरत को नायक और वियुक्ता उर्मिला को नायिका बनाया गया है। यह केवल एक साहित्यिक मौलिकता ही नहीं हैं उसमें सम्पूर्ण जीवन दर्शन की एक क्रांतिकारी झलक भी दिखायी देती है।”
इस प्रकार आधुनिक हिन्दी काव्य में मैथिलीशरण गुप्त का अमूल्य योगदान है। यद्यपि, भारत में ‘राष्ट्रकवि’ के नाम से प्रदान की जाने वाली कोई उपाधि नही है तथापि राष्ट्रोत्थान के आवश्यक तत्व मैथिलीशरण गुप्त के काव्य में पाये जाते हैं अतः उन्हें आधुनिक युग के ‘राष्ट्रकवि’ की संज्ञा दी जा सकती है।
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