उद्देश्यों के प्रकारों का वर्णन कीजिये। विज्ञान शिक्षण के उद्देश्यों का निर्धारण किस प्रकार किया जाता है? विज्ञान शिक्षण के उद्देश्यों का क्या महत्त्व है ?
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उद्देश्यों के प्रकार (Types of Objectives)
उद्देश्य वास्तविक रूप में एक कथन होता है जो वांछित व्यावहारिक परिवर्तन को प्रदर्शित करता है। यह निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-
- शैक्षिक उद्देश्य (Educational Objectives),
- शिक्षण उद्देश्य (Teaching Objectives)
1. शैक्षिक उद्देश्य (Educational Objectives)– शैक्षिक उद्देश्य उन व्यावहारिक परिवर्तनों से सम्बन्धित होते हैं, जो कि छात्रों में निश्चित सुनियोजित रूप से पूर्व नियोजित शिक्षण क्रियाओं के माध्यम से लाये जाते हैं। इनका स्वरूप विस्तृत व व्यापक होता है और इसकी पृष्ठभूमि दार्शनिक होती है। यह स्पष्ट रूप से शिक्षण प्रक्रिया को कोई दिशा प्रदान नहीं करते हैं। इस कारण शिक्षण विधि व अधिगम प्रक्रिया से भी यह प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित नहीं होते हैं।
अतएव इनका सम्बन्ध सम्पूर्ण शिक्षा से होता है। इस कारण इनकी प्रकृति, औपचारिक, सैद्धान्तिक और अप्रत्यक्ष होती है। आई० के० डेविस के शब्दों में, “सीखने का उद्देश्य अपेक्षित परिवर्तन का वर्णन है। “
“Learning Objectives is a statement of proposal change.” – I. K. Davis
बी० एस० ब्लूम की इस परिभाषा में इसे अधिक स्पष्टता से समझा जा सकता है-
“शैक्षिक उद्देश्य वह लक्ष्य मात्र ही नहीं होते, जिनकी सहायता से पाठ्यक्रम को निर्मित किया जाता हो व अनुदेशन के लिये निर्देशन दिया जाता हो, बल्कि यह मूल्यांकन की तकनीक की रचना के विशिष्टीकरण में भी सहायक होता है। “
“Educational objectives are not only the goals towards which the curriculum is shaped and towards which instruction is guided, but they are also the goals that provide the detailed specification for the construction and use of evaluation techniques.” – B. S. Bloom
2. शिक्षण उद्देश्य (Teaching Objectives) – शैक्षिक उद्देश्यों तरह ही शिक्षण उद्देश्य भी छात्रों के व्यावहारिक परिवर्तन से ही सम्बन्धित होते हैं, किन्तु इनका स्वरूप संकुचित, सीमित व विशिष्ट होता है। इनकी पृष्ठभूमि मनोवैज्ञानिक होती है और यह स्पष्ट रूप से शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को दिशा प्रदान करते हैं। इसका कारण अधिगम प्रक्रिया व शिक्षण विधि से यह सीधे सम्बन्धित होते हैं।
अतएव इनका सम्बन्ध कला की वास्तविक शिक्षण प्रणाली से होता है। इस कारण यह कार्यपरक (Functional), व्यावहारिक व प्रत्यक्ष होते हैं। N.C.E.R.T. के मूल्यांकन व परीक्षा अंक ने इन्हें अग्रलिखित प्रकार से परिभाषित किया हैं।
विज्ञान शिक्षण के उद्देश्यों का निर्धारण (Formulation of Science Teaching Objectives)
घर्बर तथा कोलेट ने अपनी पुस्तक “Science Teaching in Secondary School” में विज्ञान-शिक्षण के उद्देश्य के निर्धारण के लिये निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किये हैं-
1. उपयोगिता (Usefulness)- छात्रों के तात्कालिक तथा भावी जीवन में प्राप्त ज्ञान का उपयोग होना चाहिये।
2. योग्यता (Fitness) – प्राप्त ज्ञान को व्यापक उद्देश्यों में सहायक अनुक्रम के अनुकूल होना चाहिये।
3. सामयिकता (Timeness) – विज्ञान शिक्षण भूतकाल के ज्ञान तथा मान्यताओं पर आधारित न होकर वर्तमान से प्रत्यक्षतः सम्बन्धित होना चाहिये।
4. व्यावहारिक (Practicability)- ज्ञान के विकास के लिये आवश्यक अनुभव प्राप्य तथा सम्भव होने चाहियें। इसी प्रकार विज्ञान शिक्षण के उद्देश्य सुदृढ़ दार्शनिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक आधार पर होने चाहियें। इसलिये विज्ञान शिक्षण उद्देश्य निर्धारण के निम्नलिखित आधार हो जाते हैं-
- छात्र की योग्यता तथा आवश्यकतायें।
- समाज की तात्कालिक आवश्यकतायें ।
- पाठ्य-वस्तु की प्रकृति ।
5. औचित्य (Appropriateness) – प्राप्त ज्ञान छात्रों के स्तर, आवश्यकता तथा परिपक्वता के अनुरूप होना चाहिये।
विज्ञान शिक्षण के उद्देश्यों का महत्त्व (Importance of Objectives of Teaching Science)
विज्ञान शिक्षण के उद्देश्यों का महत्त्व निम्न प्रकार है-
1. मूल्यांकन तथा मापन में सहायता के लिये- मूल्यांकन शिक्षण प्रक्रिया का अन्तिम चरण है। यह एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है, जिसमें नियमों व सिद्धान्तों तथा पाठ्यक्रम के तथ्यों के विषय में आलोचनात्मक निर्णय लिया जाता है। छात्रों ने कक्षा में जो सीखने के लिये अनुभव उत्पन्न किये हैं, वह किस सीमा तक प्रभावशाली रहे, यह जानना शिक्षण उद्देश्यों की स्पष्ट व्याख्या पर निर्भर करता है।
2. शिक्षण कार्य को सीमित करने के लिये- शिक्षण एक विस्तृत प्रक्रिया है। शिक्षक के लिये इसे निश्चित सीमा में बाँधना जिससे कि वांछित लाभ भी प्राप्त हो सके, बहुत कठिन कार्य है। यदि शिक्षण के उद्देश्य की व्याख्या स्पष्ट रूप से हो तो इस कठिनाई से बचा जा सकता है तथा शिक्षण व व्याख्या से सम्बन्धित अनिश्चितता दूर हो जाती है।
3. पाठ्यक्रम को प्रभावशाली बनाने के लिये- विज्ञान के द्वारा पाठ्यक्रम के सम्पूर्ण स्तरों को प्रस्तुत करने में सहायता मिलती है। पाठ्यक्रम का स्तर सीखने में प्रत्यात्मक व्यवस्था एवं आगामी व्यवस्था के रूप में कार्य करता है, जिस कारण पाठ्यक्रम को प्रभावशाली रूप से शिक्षण के साधन के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है
4. व्यावहारिक परिवर्तनों में अन्तर के लिये- अधिगम नीतियों को निर्धारित करने से वांछित परिवर्तन लाये जा सकते हैं। इन व्यावहारिक परिवर्तनों को प्राप्त करने का ज्ञान आरम्भ में निर्धारित उद्देश्यों को आधार मानकर किया जा सकता है।
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