जयशंकर प्रसाद जी के काव्य की विशेषतायें छायावादी प्रवृत्तियों के आधार पर लिखिए।
छायावादी काव्य प्रवृत्तियों के आधार पर प्रसाद जी के काव्यों का मूल्यांकन अति महत्तवपूर्ण है। हिन्दी काव्य के युग प्रर्वतक कवि जयशंकर प्रसाद ने अपनी प्रतिभा से हिन्दी काव्य को अलोकित किया। प्रसाद जी ने आधुनिक कविता में एक नई काव्यधारा का प्रर्वतन किया जिसे छायावाद कहा जाता है। अतः छायावादी काव्य की प्रवृत्तियों के आधार पर प्रसाद जी की काव्यगत विशेषताओं को निम्न बिन्दुओं के आधार पर विवेचित किया जा सकता है-
1. भाव पक्ष- प्रसाद जी के काव्य की भावगत विशेषताओं को निम्नवत दर्शा सकते हैं, जैसे सौन्दर्य भावना, प्रेम भावना, जीवन के बदलते मूल्यों का चित्रण, मानवतावादी दृष्टिकोण, वैयक्तिकता या आत्माभिव्यंजना, वेदना और करुणा का आधिक्य, रहस्य भावना, कल्पना का प्राचुर्य, नारी विषयक नवीन दृष्टि श्रृंगार भावना एवं ऐन्द्रिकता, प्रेम, देश प्रेम तथा बौद्धिकता, स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह आदि ।
(2) कला पक्ष- प्रसाद जी के काव्यों में कलापक्ष को हम निम्न के माध्यम से दर्शा सकते हैं भाषा में प्रतीकात्मकता, नूतन अलंकारों का प्रयोग, गीत एवं प्रगीत, मुक्तक, शैली तथा मूर्त के लिए अमूर्त और अमूर्त के लिए मूर्त का प्रयोग आदि। प्रसाद जी सौन्दर्य के उपासक हैं।
छायावादी कवियों की सौन्दर्य दृष्टि पूर्ववर्ती कवियों की तरह वाह्य सौन्दर्य के आकर्षण जाल में ही उलझ कर नहीं रह गई है। उसमें सौन्दर्य के अन्तराल तक पहुँचने की सूक्ष्मता एवं वेग है। उनकी दृष्टि बाह्य आकार तक ही नहीं सीमित है। उनमें सौन्दर्य की भीतरी सत्य से सम्पर्क करने की क्षमता है-
नित्य यौवन छवि से ही दीख, विश्व की करुणा मूर्ति ।
स्पर्श के आकर्षण पूर्ण, प्रकृत करती जड़ में स्फूर्ति ॥
( 3 ) प्रेम भावना छायावाद मूलतः प्रेम काव्य है। प्रसाद जी ने अपने काव्य में प्रेम का ऐसा दीप अलोकित किया है जिसकी शिखा में प्रस्फुटित होने वाली किरणों ने सम्पूर्ण मानवता को आकर्षित कर लिया।
श्रद्धा सर्ग में प्रेम भावना की कितनी सूक्ष्म अभिव्यक्ति कवि ने की है। जब मनु श्रद्धा को देखते हैं तो आकर्षण से प्रेरित उनके मन में हलचल पैदा हो जाती है, साथ ही उनके मन की उद्विग्नता शिथिल होने लगती है-
कौन हो तुम बसन्त के दूत, विरस पतझड़ में अति सुकुमार।
घन तिमिर में चपला की रेख, पतन में शीतल मंद बयार॥
( 4 ) मानवतावादी दृष्टिकोण- प्रसाद जी मानवता के प्रति असीम श्रद्धा रखने वाले कवि हैं उन्हें विश्व मानवता के कल्याण की चिन्ता है। मानव के आत्मिक, आध्यात्मिक और शारीरिक शक्ति पर प्रसाद का अत्यधिक विश्वास है वे देव जाति की अपेक्षा मानव जाति को श्रेष्ठतर समझते हैं।
( 5 ) कल्पना का प्राचुर्य- प्रसाद जी की कल्पना नवोन्मेषालिनी है जिसमें सौन्दर्य के शत-शत चित्र साकार हो उठते हैं। कल्पना का आश्रय लेकर ही कवि सौन्दर्य का अपार्थिव एवं अतीन्द्रिय चित्र प्रस्तुत करने में समर्थ हुआ है। स्थान-स्थान पर अप्रस्तुत विधानों की संरचना में कवि ने अपनी जिस कल्पना सौन्दर्य का परिचय दिया है वह अनुपम हैं।
( 6 ) नारी भावना- प्रसाद का दृष्टिकोण नारी सौन्दर्य के चित्रण के विषय में वासनात्मक और उत्तेजक न होकर सात्विक है-श्रद्धा और सहनायिका इड़ा का सौन्दर्य वर्णन इसका प्रमाण है।
( 7 ) प्रेम प्रकृति- प्रकृति प्रेम के प्रति छायावाद कवियों का विशेष लगाव है। श्रद्धा सर्ग स्वयं प्रसाद जी के अगाध प्रकृति के प्रति प्रेम का परिचय देता है। यहाँ प्रकृति अप्रस्तुत विधान, आलम्बन, मानवीकरण, रहस्यात्मक, प्रतीकात्मक और उपदेशात्मक आदि अनेक रूपों में व्यक्त हुई है।
( 8 ) देश प्रेम-छायावादी काव्य में स्वदेश प्रेम की भावना व्यापक रूप में निरूपित हुई है-
अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।
(9) बौद्धिकता- विज्ञान के विकास का भी प्रभाव छायावादी काव्य पर पड़ा है। उसी कारण इसमें बौद्धिकता का समावेश हुआ। कामायनी में इड़ा का सौन्दर्य वर्णन करते समय बौद्धिकता का परिचय दिया है। ‘श्रद्धा सर्ग’ में श्रद्धा द्वारा दुःख की व्याख्या आनन्द एवं दार्शनिक मान्यताओं के विवेचन आदि में बौद्धिक पक्ष का ही निरुपण हुआ है।
( 10 ) वेदना एवं करुणा- छायावादी काव्य में वेदना तथा करुणा की तीव्र अनुभूति देखने को मिलती है। प्रसाद ने तो सृष्टि का आरम्भ ही वेदना से माना है। श्रद्धा सर्ग में श्रद्धा द्वारा मनु का परिचय पूछे जाने पर परिचय कम मनु की मनोव्यथा अधिक व्यक्त हुई है।
(11) दार्शनिकता- आत्मा और परमात्मा की चिन्तन शैली का नाम रहस्यवाद है। प्रसाद जी की आध्यात्मिक विचारधारा को आनन्दवाद कहा जाता है। कामायनी का चरम उद्देश्य आनन्द की उपलब्धि है। यह उपलब्धि समस्त मानव समूह के लिए है, व्यक्ति विशेष के लिए नहीं। उनकी दार्शनिकता शैवागम पर आधारित हैं।
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