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जीवनी क्या है? आत्मकथा व जीवनी की तुलना कीजिए।
जीवनी – साहित्य- जीवनी में किसी विशिष्ट व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक का सांगोपांग चित्रण रहता है। सम्पूर्ण जीवन की घटनाओं का संकलन, अन्तर्बाहय प्रवृत्तियों का आकलन, लेखक की अन्तरंगता का मिश्रण सफल जीवनी-लेखन के लिये आवश्यक है। जीवनी न तो पूर्ण इतिहास है, न काल्पनिक कथा। पर्याप्त तथ्य एकत्र करने के लिये चरितनायक के पत्र, डायरी, साक्षात्कार-विवरण की भी आवश्यकता होती है। इसके लिये प्रामाणिक तथ्यों का एकत्रीकरण अपेक्षित है। चरितनायक के निवास स्थान का विविधपक्षीय अवलोकन पार्श्वतर्ती परिस्थितियों सहपाठी एवं सहकर्मी, पड़ोसी एवं सम्बन्धी आदि से सम्पर्क स्थापित करना भी आवश्यक है। जीवन मृत तथा जीवित दोनों प्रकार के व्यक्तियों पर लिखी जा सकती है। जीवित व्यक्ति की दशा में उसके तात्कालिक कृत्यों, वाणी-उद्गार, भाषण, व्याख्यान, सामाजिक व्यवहार आचार-विचार आदि का सूक्ष्म विश्लेषण करना होता है। जीवनी लिखना श्रम साध्य कर्म है। इसमें लेखक को पूर्ण सतर्क रहना होता है। अतिशय प्रशंसा अथवा निन्दा से बचना होता है। पूर्वाग्रह और दुराग्रह से पृथक लेखक को निजी विवेकशीलता का अवलम्ब लेना होता है।
हिन्दी में श्रेष्ठकोटि का जीवनी-साहित्य कम मिलता है क्योंकि यहाँ आध्यात्मिक दृष्टिकोण की प्रधानता है और मात्र परमात्मा के गुण-गान को जीवन का अभीष्ट समझा जाता है। कहा गया है- कीन्हें प्राकृत जन गुन गाना, सिर धुनि गिरा लागि पछताना; तुलसीदास अर्थात सामान्य जन का गुणगान करने से सरस्वती का अपमान होता है। अवतारों तथा संतों को जीवनी का नायक बनाकर बहुत लिखा गया है परन्तु अन्य संसारी ‘व्यक्तियों का महत्व नहीं दिया गया। मध्यकाल में भक्तिमान’ चौरासी वैष्णव की वार्ता दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता ‘आदि में जीवनी लेखन के तत्व मिलते है।
आत्मकथा व जीवनी में तुलना
जीवनी ऐसी विधा है जिसमें किन्हीं महत्वपूर्ण व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन का उल्लेख किया जाता है। जबकि आत्मकथा किसी व्यक्ति की जीवनी होती है। जबकि जीवनी लिखना कम कठिन होता है जबकि आत्मकथा लिखना कठिन काम माना जाता है। आत्मकथा जीवनी साहित्य के अन्तर्गत होते हुए भी जीवनी से पृथक एक स्वतन्त्र विधा के रूप में विकासशील है। आत्म कथा में लेखक जीवन के सम्पूर्ण अथवा एक बड़े अंश का कालक्रमानुसार वर्णन करता है। जीवनी लेखक अनुमान के आधार पर दूसरे के अनुभव को स्वयं के शब्दों में लिखता है। एक निष्कपट व्यक्ति की आत्मकथा से प्रामाणिक दूसरे द्वारा लिखी जीवनी नहीं हो सकती। आत्मकथा आत्मनिष्ठ है तो जीवनी वस्तुनिष्ठ, जीवन के छोटे काल-खण्ड की घटनाओं का वर्णन संस्मरण होता है। कोई भी आत्मकथा, संस्मरणों पर आधारित होती है और कोई भी संस्मरण आत्मकथात्मक तत्व से अछूता नहीं रहता। ये दोनों विधाएँ व्यक्तिगत अनुभूति पर खड़ी हैं, लेकिन दोनों में विधागत वैषम्य को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया जा सकता है। आत्मकथा का चरित्र नायक लेखक स्वयं होता है। एक विशिष्ट परिवेश के मध्य जिये गये विशिष्ट क्षणों का पुनः सृजन आत्मकथा है, आत्मकथा यथार्थ और प्रामाणिक तथ्यों पर आधारित होती है। आत्मकथा लेखक को तटस्थ निष्पक्ष और ईमानदार होना चाहिए। आत्मकथा के लिए सार्थक दृष्टिकोण, भाषा और शिल्प का लालित्य आवश्यक है। आत्मकथा में काल्पनिक प्रसगों के लिए कोई स्थान नहीं है। जीवनी में नायक के जीवन की घटनाओं का कालक्रमानुसार वर्णन होता है। जीवनी का चरितनायक कोई प्रसिद्ध व्यक्ति होता है। जीवनी में चरितनायक के आन्तरिक एवं बाह्य व्यक्तित्व का वास्तविक चित्रण तथा उसकी सफलताओं और असफलताओं का वर्णन और विवेचन किया जाता है। जीवनी का लक्ष्य सत्य का साहित्यिक और प्रभावोत्पादक उद्घाटन होता है लेकिन कल्पना और चमत्कार एवं अलौकिक घटनाओं के लिए स्थान नहीं होता है। जीवनी में लेखक को अपने विषय में कुछ भी लिखने की आवश्यकता नहीं है।
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