यह पद्धति शिक्षा शास्त्र के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त ‘ज्ञात से अज्ञात’ के आधार पर भूगोल का ज्ञान प्रदान करती है। इस विधि में स्थानीय भूगोल को आधार माना जाता है और अन्य प्रदेशों के भूगोल से इसकी तुलना की जाती है। इस विधि में किन्हीं दो अथवा उससे अधिक भू-भागों की समानता, विभिन्नता, संतुलन तथा समन्वय पर जोर दिया जाता है।
प्रारम्भिक कक्षाओं में बालकों की परिचित वस्तुयें भूगोल में पढ़ाई जाती हैं। जैसे—विद्यालय के आस-पास की वस्तुयें, गाँव के खेत, मिट्टियाँ, सिंचाई के साधन एवं यातायात के मार्ग। इस प्रकार बालकों को अपने घरेलू भूगोल का ज्ञान कराकर उन्हें जिला, प्रान्त, देश तथा महाद्वीप का ज्ञान कराया जाता है। इस प्रकार बालकों का घरेलू भूगोल का ज्ञान बालकों को अन्य भागों के भूगोल से तुलना करने में बड़ा सहायक होता है। इस प्रकार बालकों को भूगोल पढ़ाते समय निरीक्षण तथा वर्णन के साथ तुलना करते हुये आगे बढ़ना चाहिये। इससे बालक घरेलू भूगोल के आधार पर प्रान्त तथा देश के भूगोल की तुलना करके भूगोल को आसानी से समझ सकते हैं।
उच्च कक्षाओं में इस विधि का सफल प्रयोग किया जा सकता है, जैसा कि बी० सी० वालिस ने कहा है, “उच्च कक्षाओं में तुलना, समानता तथा विषमता आदि ही भूगोल शिक्षण के प्राण हैं।”
“Comparison and Contrast’s are the essence of geography teaching at the senior stage.”
उच्च कक्षाओं में प्रादेशिक पद्धति से भूगोल पढ़ाते समय तुलनात्मक पद्धति का सहारा लेना चाहिये। किसी प्रदेश की जलवायु, उपज, वनस्पति, यातायात तथा आयात-निर्यात की तुलना दूसरे प्रदेश से की जा सकती है।
तुलनात्मक विधि से भूगोल का अध्ययन करने के लिये घरेलू भूगोल अथवा अपने देश के भूगोल के कुछ आँकड़े अवश्य याद रखने चाहियें। जैसे—क्षेत्रफल, अक्षांश देशान्तर, जनसंख्या तथा जलवायु सम्बन्धी आंकड़े आदि। इस प्रकार छात्र हिन्दचीन, चीन, उत्तरी आस्ट्रेलिया तथा पूर्वी अफ्रीका की तुलना मानसून पढ़ाते समय भारतवर्ष के मानसून से कर सकते है। इसी प्रकार दक्षिणी भारत के पठार की तुलना दक्षिणी अमेरिका के ब्राजील पठार तथा आस्ट्रेलिया के पश्चिमी पठारी भाग से आसानी से कर सकते हैं। स्विटरजरलैण्ड के भूगोल की तुलना काश्मीर के भूगोल से करना उपयुक्त होगा।
इसी प्रकार जापान व ग्रेट ब्रिटेन की तुलना, भू-मध्यरेखीय प्रदेश तथा भूमध्यसागरीय प्रदेश की तुलना, उष्ण घास के मैदान और शीतल के मैदान की तुलना, मानसूनी प्रदेश और भूमध्य सागरीय प्रदेश में वर्षा की तुलना, कृषि प्रधान देश तथा औद्योगिक देश की तुलना करना उपयोगी होगा।
तुलनात्मक विधि से भूगोल पढ़ाते समय किन्हीं भी दो प्रदेशों की समानता असमानता दोनों ही बताना आवश्यक है। असमानता बताने से मस्तिष्क में एक सम्बन्ध जुड़ता है। इससे ज्ञान स्थायी हो जाता है।
तुलनात्मक विधि से भूगोल पढ़ाते समय रेखाचित्रों का उपयोग करना बहुत ही आवश्यक है। एक प्रदेश के उपज, जनसंख्या, क्षेत्रफल व आयात-निर्यात की तुलना दूसरे देश के आंकड़ों से करते समय रेखाचित्रों द्वारा करनी चाहिये। इससे बच्चे तुलनात्मक अध्ययन को स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं।
गुण
1. छात्रों की तर्क शक्ति में सहायता मिलती है और वे स्वयं निष्कर्ष निकाल सकते हैं।
2. छात्रों का पुराना ज्ञान सजग हो जाता है और वे नवीन ज्ञान आसानी से ग्रहण कर लेते हैं।
3. इस विधि से भौगोलिक सिद्धान्तों की जानकारी आसानी से करायी जा सकती है।
4. वह विधि उच्च कक्षाओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण विधि है।
5. यह विधि शिक्षा सिद्धान्तों के अनुकूल एवं मनोवैज्ञानिक है।
दोष
1. बालक अपने स्थानीय भूगोल के आँकड़े स्मरण नहीं रख सकते हैं, इससे दूसरे देशों के आँकड़ों से तुलना करने में परेशानी होती है।
2. यह विधि स्वतन्त्र रूप से प्रयोग की जा सकती है। इसका प्रयोग प्रादेशिक विधि के साथ ही किया जा सकता है।
3. इस विधि का अनुसरण निम्न कक्षाओं में नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इस अवस्था में छात्रों की बुद्धि परिपक्व नहीं होती है।
Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: targetnotes1@gmail.com
इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..